पुल गिरने की यह रचना जिस किसी की भी है, श्रेष्ठ है, उम्दा है। लेखक को 21 तोपो की सलामी। किसी ने यह नहीं पढ़ी तो कुछ नहीं पढ़ा। ,,,,
कोई पुल ऐसे ही नहीं गिरता
एक आम भारतीय होने के नाते मैं जानता हूँ कि कोई पुल एक झटके में नहीं गिरता।
गिरने की प्रक्रिया बहुत पहले से चल रही होती है।
सबसे पहले नेता गिरते हैं,
फिर अधिकारी गिरते हैं,
उसके बाद इंजीनियर गिरता है।
तीनों के गिरने से फिसलन हो जाती है सो ठेकेदार भी गिर जाता है। बात यहीं नहीं रुकती, इस फिसलन को देख कर आम जनता भी खुद को रोक नहीं पाती, देखादेखी वह भी गिरने लगती है।
जब इतने लोग गिर जाते हैं तो पुल को भी अपने खड़े होने पर शर्म आने लगती है। तो अपने निर्माताओं का साथ देने के लिए वह भी गिर जाता है। बात खत्म…
सच कहूँ तो हमारे देश में गिरना कभी लज्जा का विषय नहीं रहा। व्यक्ति जितना गिरता है, उसकी प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ती जाती है।
आप फेसबुक इंस्टा पर ही देख लीजिये, जो जितना ही गिरता/गिरती है, उसका रील उतना ही वायरल होता है। सिनेमा की कोई अभिनेत्री जितना गिरती है, उतना ही आगे बढ़ती जाती है। यहाँ तक कि एक लेखक भी जबतक गिरता नहीं… छोड़िये!
हमारे देश में हर व्यक्ति अब गिरना चाहता है। वह केवल मौका तलाश रहा है। कब मौका मिले कि वह गिरे… पुल अकेले नहीं हैं, गिरने की यात्रा में सारा देश उनके साथ चल रहा है।
एक बात और कहूँ? यह तो नदियों के दोनों तटों को जोड़ने वाले पुल हैं दोस्तो!
हमारे यहाँ तो आदमी को आदमी से जोड़ने वाले पुल कबके ढह गए हैं।
हम जब उसपर दुखी नहीं हुए तो इसपर क्या ही होंगे। है न?
– अजित सिंह राठी के ट्विटर से साभार