गरुड़ पुराण के अनुसार, शरीर के नौ अंगों से प्राणों का निकलना होता है, पापी मनुष्य कैसे त्याग करता है प्राण –
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि शरीर के नौ द्वार होते हैं जिससे शरीर से प्राण बाहर निकलता है
यह व्यक्ति के स्वभाव और कर्मों पर निर्भर करता है कि उसकी आत्मा किस अंग से निकलती है। जानिए, किस स्वभाव के व्यक्ति के किस अंग से प्राण निकलते हैं!
गरुड़ पुराण: हिंदू धर्म में अनेक महत्त्वपूर्ण पुराण हैं, जो विभिन्न विषयों की व्याख्या करते हैं। गरुड़ पुराण मृत्यु और आत्मा से जुड़े गूढ़ रहस्यों को उजागर करता है। इसमें भगवान विष्णु और उनके भक्त गरुड़ के बीच संवाद का वर्णन है। इसी संवाद में यह बताया गया है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसके प्राण शरीर के किस अंग से निकलते हैं और वह अंग उस व्यक्ति के स्वभाव के अनुसार कैसे निर्धारित होता है।
किसी मनुष्य का प्राण किस द्वार से बाहर निकलता है?
- गरुड़ पुराण में बताया गया है कि शरीर के नौ द्वार होते हैं जिससे शरीर से प्राण बाहर निकलता है
- नाक से प्राण निकालना बहुत ही शुभ माना जाता है
- किस व्यक्ति की मरते वक्त आंखें खुली रहती हैं या उलट जाती हैं?
पापी व्यक्ति एवं दुराचारी इस तरह त्यागते हैं प्राण
आपने अक्सर देखा होगा कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उसका मुख या आंखें खुली रह जाती हैं। इसका कारण यह है कि उसके प्राण मुख या आंखों के माध्यम से निकले होते हैं। लेकिन हिंदू धर्म के अनुसार, प्राण निकलने का मार्ग केवल मुख ही नहीं है। शरीर के कई अन्य अंग या द्वार भी प्राणों के निकलने के मार्ग हो सकते हैं। यह मार्ग व्यक्ति के स्वभाव और उसके कर्मों के आधार पर निर्धारित होता है।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि शरीर के नौ द्वार होते हैं जिससे शरीर से प्राण बाहर निकलता है। ये द्वार हैं – दोनों आंखें, दोनों कान, मुख, दोनों नासिकाएं और शरीर के दोनों उत्सर्जन अंग। इनमें से किसी एक द्वारा से ही मृत्यु के दौरान व्यक्ति के प्राण निकलते हैं।
किस प्रकार के व्यक्ति के प्राण किस अंग से निकलते हैं?
गरुड़ पुराण में इस विषय की भी व्याख्या की गई है कि किस स्वभाव या परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति के प्राण किस अंग से बाहर निकलते हैं। इस पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति अपने जीवन को पूरी निष्ठा से कर्तव्यों का पालन करते हुए या भगवान की भक्ति में लीन होकर व्यतीत करता है, उसके प्राण नाक के माध्यम से निकलते हैं। नाक से प्राणों का निकलना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि यह केवल सदाचारी और पुण्यात्मा व्यक्तियों के साथ ही होता है। वहीं, जो व्यक्ति अपने पूरे जीवन को धर्म के मार्ग पर चलकर व्यतीत करता है, उसके प्राण मुख से निकलते हैं। मुख से प्राणों का निकलना भी एक शुभ और उत्तम आत्मा का प्रतीक माना जाता है।
किस व्यक्ति की मृत्यु के समय आंखें खुली रहती हैं या उलट जाती हैं?
जो व्यक्ति जीवन के प्रति अत्यधिक मोहग्रस्त हो, जिसे जीने की प्रबल इच्छा हो, और जिसे अपने परिवार से गहरा लगाव हो, ऐसे व्यक्ति के प्राण आंखों के माध्यम से निकलते हैं। यही कारण है कि ऐसे लोगों की मृत्यु के समय उनकी आंखें खुली रह जाती हैं। ऐसे लोग मोह के कारण अपने प्राण त्यागना नहीं चाहते, लेकिन यमराज बलपूर्वक उनके प्राण हर लेते हैं। इसी वजह से कई बार इन व्यक्तियों की आंखें उलट जाती हैं।
पापी व्यक्ति और दुराचारी इस प्रकार त्यागते हैं प्राण
जो व्यक्ति स्वार्थी हो, जिसने जीवनभर केवल अपने और अपने परिवार के हित के बारे में ही सोचा हो, अपना अधिकांश समय धन-संपत्ति कमाने में लगाया हो, जनकल्याण के कार्यों से दूर रहा हो और जिसने अपने जीवन में कामवासना को प्राथमिकता दी हो, ऐसे लोग मृत्यु के समय यमदूतों को देखकर भयभीत हो जाते हैं। इस घबराहट के कारण उनके प्राण नीचे की ओर सरक जाते हैं। इसी कारण उनके प्राण शरीर के निचले उत्सर्जन अंगों, अर्थात मल द्वार और मूत्र द्वार से निकलते हैं। ऐसे लोग मृत्यु के समय मल-मूत्र का त्याग भी कर देते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, यमदूत ऐसे पापी व्यक्तियों की आत्माओं के गले में पाश बांधकर उन्हें यमलोक ले जाते हैं।
जानिए आपके प्राण कहाँ से निकलेंगे…
प्रत्येक व्यक्ति अलग इंद्रिय से मरता है। किसी की मौत आंख से होती है, तो आंख खुली रह जाती है—हंस आंख से उड़ा। किसी की मृत्यु कान से होती है। किसी की मृत्यु मुंह से होती है, तो मुंह खुला रह जाता है।
अधिक लोगों की मृत्यु जननेंद्रिय से होती है, क्योंकि अधिक लोग जीवन में जननेंद्रिय के आसपास ही भटकते रहते हैं, उसके ऊपर नहीं जा पाते।
आपकी जिंदगी जिस इंद्रिय के पास जीयी गई है, उसी इंद्रिय से मौत होगी। औपचारिक रूप से हम मृतक को जब मरघट ले जाते हैं तो उसकी कपाल—क्रिया करते हैं, उसका सिर तोड़ते हैं। वह सिर्फ प्रतीक है। पर समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु उस तरह होती है। समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु सहस्रार से होती है।
जननेंद्रिय सबसे नीचा द्वार है। जैसे कोई अपने घर की नाली में से प्रवेश करके बाहर निकले। सहस्रार, जो तुम्हारे मस्तिष्क में है द्वार, वह श्रेष्ठतम द्वार है।
जननेंद्रिय पृथ्वी से जोड़ती है, सहस्रार आकाश से। जननेंद्रिय देह से जोड़ती है, सहस्रार आत्मा से। जो लोग समाधिस्थ हो गए हैं, जिन्होंने ध्यान को अनुभव किया है, जो बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं, उनकी मृत्यु सहस्रार से होती है। उस प्रतीक में हम अभी भी कपाल क्रिया करते हैं।
यह दरवाजा मरने के बाद नहीं खोला जाता, यह दरवाजा जिंदगी में खोलना पड़ता है। इसी दरवाजे की तलाश में सारे योग, तंत्र की विद्याओं का जन्म हुआ। इसी दरवाजे को खोलने की कुंजियां हैं योग में, तंत्र में।
इसी दरवाजे को जिसने खोल लिया, वह परमात्मा को जानकर मरता है। उसकी मृत्यु समाधि हो जाती है।
प्रत्येक व्यक्ति उस इंद्रिय से मरता है, जिस इंद्रिय के पास जीया। जो लोग रूप के दीवाने हैं, वे आंख से मरेंगे; इसलिए चित्रकार, मूर्तिकार आंख से मरते हैं। उनकी आंख खुली रह जाती है। जिंदगी—भर उन्होंने रूप और रंग में ही अपने को तलाशा, अपनी खोज की। संगीतज्ञ कान से मरते हैं, उसके बाद दृष्टि और फिर श्रवण इन्द्रिय मन में विलीन हो जाती हैं । उस समय वह न देख पाता है, न बोल पाता है और न ही सुन पाता है ।
उसके बाद मन इन इंद्रियों के साथ प्राण में विलीन हो जाता है उस समय सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है, केवल श्वास-प्रश्वास चलती रहती है ।
इसके बाद सबके साथ प्राण सूक्ष्म शरीर मे प्रवेश करता है । फिर जीव सूक्ष्म रूप से पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश (पञ्च तन्मात्राओं) का आश्रय लेकर हृदय देश से निकलने वाली 101 नाड़ियों में से किसी एक में प्रवेश करता है ।
हृदय देश से जो 101 नाड़ियां निकली हुई है, मृत्यु के समय जीव इन्हीं में से किसी एक नाड़ी में प्रवेश कर देह-त्याग करता है । मोक्ष प्राप्त करने वाला जीव जिस नाड़ी में प्रवेश करता है, वह नाड़ी हृदय से मस्तिष्क तक फैली हुई है । जो मृत्यु के समय आवागमन से मुक्त नहीं हो रहे होते वे जीव किसी दूसरी नाड़ी में प्रवेश करते हैं ।
जीव जब तक नाड़ी में प्रवेश नही करता तब तक ज्ञानी और मूर्ख दोनों की एक गति एक ही तरह की होती है । नाड़ी में प्रवेश करने के बाद जीवन की अलग अलग गतियां होती हैं।
श्री आदि शंकराचार्य जी का कथन है कि ‘जो लोग ब्रह्मविद्या की प्राप्ति करते हैं वो मृत्यु के बाद देह ग्रहण नही करते, बल्कि मृत्यु के बाद उनको मोक्ष प्राप्त हो जाता है’ । श्री रामानुज स्वामी का कहना है ‘ब्रह्मविद्या प्राप्त होने के बाद भी जीव जीव देवयान पथ पर गमन करने के बाद ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है, उसके बाद मुक्त हो जाता है।
- तहक्षी से साभार