बहुत समय पहले की बात है एक घना जंगल था। जंगल के बीच से होकर एक नदी बहती थी। उस में भरपूर पानी था। नदी में एक कछुआ रहता था। कभी-कभी वह पानी से बाहर आता और किनारे पर धूप सेंकता रहता था। एक दिन एक गीदड़ घूमता- घूमता नदी किनारे आया।
दिन भर में उसे कोई शिकार नहीं मिला था। वह बहुत भूखा था। उस दिन वह कछुआ अपने मित्रों के साथ नदी के किनारे घूमने निकला था। उसे देखकर गीदड़ धीरे-धीरे उसकी और आने लगा, वह दबे कदमों से आगे बढ़ रहा था और वह कछुआ पकड़ने की फिराक में था। इतने में उसे छींक आ गई, छींकने की आवाज सुनते ही सभी कछुए नदी में कूद गए। वह कुछ इधर-उधर देखने लगा।
उसने कहा सभी भाग क्यों गए? और तभी उसे गीदड़ ने पकड़ लिया। और उसे अब खाने का प्रयास करने लगा परंतु कछुए ने अपने सभी अंग अंदर कर लिए। कछुए की पीठ बहुत मजबूत होती है। हमला करने वाले प्राणी के दांत भले टूट जाए पर कछुए की पीठ नहीं टूट सकती।
कछुए को एक युक्ति सूझी वह बोला ‘गीदड़ भैया मेरी पथ बहुत सख्त है अत वह टूटेगी नहीं। आप मुझे पानी में डाल दीजिए पानी में भीगने पर हो वह नरम हो जाएगी, इसके बाद आप मुझे सरलता से खा सकेंगे।
गीदड़ को यह बात ठीक लगी। उसने कछुए को पानी में सरका दिया। कछुवा तो वैसे भी पानी का राजा होता है। वह प्रवाह के बीच पहुंचकर बोला कि ‘भैया आप अकलमंद है इसमें कोई शक नहीं है किन्तु अक्लमंदी केवल आपकी ही बपौती नहीं है।”
भूखे गीदड़ के हाथ से शिकार निकल गया और अब उसे अपनी मूर्खता पर पछतावा हो रहा था।
- यह कहानी बच्चों के मनोरंजन हेतु ‘चटपटी कहानियां’ से साभार ली गयी है।