एक धनवान धार्मिक व्यक्ति था। एक दिन उसने अपने लड़के को कुछ पैसे दिए और कहा- ‘जा बाजार से कुछ ले फल आओ ! लड़का पैसे लेकर चला। वह सोचता जा रहा था कि क्या- क्या फल खरीदेगा? तभी देखता क्या है कि रास्ते के एक तरफ को एक आदमी बैठा है। उसके तन पर चिथड़े लिपटे हुए हैं और वह भूख से छटपटा रहा है।
बालक का हृदय द्रवित हो गया। वह दौड़ा हुआ बाजार गया और उसकी जेब में जो पैसे थे। उनसे खाने की चीजें लाकर उस भूखे को दे दी। खाना खाकर उस आदमी की परेशानी दूर हो गई। यह देखकर बालक को बड़ी खुशी हुई, उसके पैरों में जैसे पंख लग गए वह ख़ुशी से उछलता हुआ घर आया और सीधे अपने पिता के पास पहुंचा।
उसे खाली हाथ आया देखकर पिता ने कहा अरे तू फल नहीं लाया?
लड़का बोला- पिताजी मैं लाया हूं किंतु फल नहीं अमर फल लाया हूं। थोड़ा रुक कर लड़के ने सारा हाल कह सुनाया फिर बोला पिताजी अगर मै फल लाता और हम लोग उन्हें खा लेते तो उसे हमें कितना लाभ होता, लेकिन उस आदमी को खाना मिल जाने से उसके पेट की ज्वाला शांत हो गई। इससे बढ़कर आनंद की बात हमारे लिए और क्या हो सकती है।
यह सुनकर पिता ने गदगद होकर अपने बेटे को सीने से लगा लिया। ऐसी संतान पर किसी भी पिता को गर्व हो सकता था।