प्रेरक प्रसंग: आदमी के जीवन का ध्येय पैसा कमाना और आराम से रहना नहीं है। उसे आत्मिक उन्नत्ति के लिए भी कुछ करना चाहिए। आखिर आदमी का जन्म बार-बार तो मिलता नहीं है
एक समय की बात है। एक महात्मा थे। उनके पास एक दिन एक साहुकार आकर ठहरा। वह महात्मा के त्याग और तपस्या से बहुत प्रभावित हुआ। चलते समय उसने महात्मा के चरणों में सिर झुकाते हुए निवेदन किया, “यदि आपकी आज्ञा हो तो आपके लिए एक चादर और लंगोटी का कपड़ा भिजवा दू।”
महात्मा ने इन्कार कर दिया। बोलें, “मुझे जरूरत नहीं है। मेरे पास है।”
साहुकार चला गया।
कुछ दिन बाद साहुकार को लगा कि आदमी के जीवन का ध्येय पैसा कमाना और आराम से रहना नहीं है। उसे आत्मिक उन्नत्ति के लिए भी कुछ करना चाहिए। आखिर आदमी का जन्म बार-बार तो मिलता नहीं है।
इसके बाद उसने धन-दौलत, सम्पत्ति, सबकुछ त्याग दिया और संन्यासी बन गया।
एक बार वह फिर उस महात्मा से मिले, जिसे देखकर उसके मन में वैराग्य की भावना उत्पन हुई थी। उसने महात्मा से कहा, “आप धन्य हैं। आपका त्याग अद्भुत है।”
महात्मा ने कहा, “यह तुम क्या कहते हो? अरे, तुम्हारा त्याग तो मुझसे भी बढ़कर है। मेरा जीवन तो आरम्भ से ही ऐसा रहा है, पर सच्चे त्यागी तो तुम हो, जिसने कुबेर के पद को छोड़कर फकीरी धारण की।”