एक बार एक आदमी संत सादिक के पास गया। सादिक बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति थे। उस आदमी ने उनसे कहा ‘मुझे अल्लाहताला से मिलवा दीजिए।’ संत बोले ‘तुम्हें मालूम नहीं कि मूसा से कहा गया था कि तू मुझे नहीं देख सकता।
वह आदमी बोला जानता हूं लेकिन एक सख्श यह भी तो कहता है कि मेरे दिल ने परवरदिगार को देखा। एक दूसरा आदमी कहता है कि मैं अपने उस ईश्वर की उपासना करूंगा, जिसको मैं देख सकूं!
उसकी यह बातें सुनकर संत ने कहा- ‘इसके हाथ पैर बांधकर इसे नदी में डाल दो! यही किया गया। उसे नदी फेंक दिया गया। नदी में गिरते ही पानी ने उसे ऊपर उछाल दिया। फिर वह नीचे चला गया। कई बार ऐसा ही हुआ। उसने चिल्ला- चिल्ला कर मदद मांगी! पर किसी ने मदद न की।
अंत में निराश होकर उसने कहा- ‘या अल्लाह!’ उसके इतना कहते ही संत ने उसे बाहर निकलवा लिया। पूछा क्या तूने अल्लाह को देखा! वह बोला जब तक मैं दूसरों को पुकारता रहा तब तक मैं पर्दे में रहा, लेकिन आखिर में निराश होकर जब मैंने अल्लाह से फरियाद की तो मेरे दिल में एक सुराख़ सा खुला।
संत ने कहा ”देख जब तक तू दूसरों को पुकारता रहा, झूठा था। अब तू उसकी हिफाजत कर जिससे तुझे ईश्वर का दर्शन होगा।
किसी ने ठीक ही कहा है, प्रभु का दर्शन कष्ट में ही होता है!