दिलीप अग्निहोत्री

इस आधार पर दो बातों का अनुमान लगाया जा सकता है। राज्यपाल के रूप में लालजी टण्डन सबको साथ लेकर चलने का प्रयास करेंगे , दूसरा यह कि आमलोगों के लिए भी बिहार राजभवन के दरवाजे खुलेंगे। इसका अनुभव लाल जी ने राम नाईक के साथ भी किया। उत्तर प्रदेश के वर्तमान राज्यपाल राम नाईक को भी ज्यादा लोगों की उपस्थिति आनन्दित करती है। टण्डन जी लखनऊ राजभवन में राम नाईक के प्रत्येक आमंत्रण में अवश्य पहुंचते थे। यहां लखनऊ के लोगों से मिल कर उन्हें अच्छा लगता था। ऐसे ही दृश्य अब बिहार राजभवन में दिखाई देंगे।
लाल जी टण्डन ने राजनीतिक मर्यादा के साथ साथ वैचारिक निष्ठा पर भी अमल किया। वह उत्तर प्रदेश में जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे। तब यह माना जाता था कि इस पार्टी का गठन विपक्ष की राजनीति के लिए हुआ है। सत्ता की चाहत रखने वाले इस पार्टी से दूर रहते थे। इसमें अपना ही धन लगाकर समाजसेवा करनी होती थी। लालजी टण्डन इसी में समर्पित भाव से लगे रहे । लंबे राजनीतिक जीवन में अपवाद स्वरूप कुछ वर्ष सत्ता में रहे , लेकिन मूल चिंतन निःस्वार्थ समाज सेवा का ही रहा।

लालजी टंडन कहते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी उनके साथी, भाई और पिता तुल्य रहे। अटल के साथ उनका करीब साठ का साथ रहा। राज्यपाल मनोनीत होने के बाद लालजी टंडन ने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन पर विश्वास जताया है। वह बिहार के विकास में योगदान देने का प्रयास करेंगे। राज्य के अभिभावक की भूमिका में वह रहेंगे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लाल जी के अच्छे संबन्ध रहे है।
लालजी टंडन का जन्म लखनऊ में बढ़ अप्रैल उन्नीस सौ पैतीस को हुआ था। उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से हुई थी। इसी दौरान वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपर्क में आए।
भाजपाऔर बसपा गठबंधन की सरकार बनाने में भी उनका अहम भूमिका थी। बसपा प्रमुख मायावती ने उन्हें भाई माना। राखी बांधने उनके आवास पर जाती थी। लाल जी टण्डन उन्नीस सौ अठहत्तर से चौरासी फिर उन्नीस सौ नब्बे से छियानबे तक दो बार उत्तर प्रदेश विधानपरिषद सदस्य रहे। उन्नीस सौ इक्यानबे बानवे इसके बाद सत्तानवे में कैबिनेट मंत्री बने। इसी दौरान तीन बार विधानसभा का चुनाव जीत। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। फो हजार नौ में अटल जी ने चुनावी राजनीति से सन्यास लिया। तब लखनऊ लोकसभा क्षेत्र का उत्तराधिकार टण्डन जी को मिला। वह विजयी होकर लोकसभा पहुंचे थे। नई दिल्ली में वह अक्सर अटल जी को देखने जाते थे। लालजी टण्डन की वरिष्ठता और अनुभव को देखते हुए उनको राजपाल बनाने का निर्णय हुआ। उम्मीद है कि वह बिहार में अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों के निर्वाह में सफल होंगे।