डॉ दिलीप अग्निहोत्री


प्रजातन्त्र में विपक्ष की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। इसके माध्यम से सरकार की कमियां सामने लाई जाती है। प्रधानमंत्री सत्ता के केंद्र में होता है। ऐसे में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ वह भी विपक्ष के निशान पर रहता है। लेकिन विरोध की भी एक सीमा होनी चाहिए। यह सत्तापक्ष तक सीमित रहना चाहिए। बयान ऐसे नहीं होने चाहिए जिनसे देश की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
लेकिन कांग्रेस के नेता इस तथ्य को समझने कर लिए तैयार नहीं है। इसके एक नेता का ऐसा बयान ठंडा नहीं पड़ता है, दूसरा सामने आ जाता है। ऐसे बयान छुटभैये करते तो नजर अंदाज किया जा सकता है। लेकिन ये बयान शीर्ष स्तर से आते है। कुछ दिन पहले शशि थरूर ने हिन्दू तालिबान का बयान दिया था। वह चर्चा धीमी पड़ी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मोर्चा संभाल लिया। राजस्थान की हिंसक घटना पर राहुल का बयान गैर जिम्मेदाराना है। उनके बयान को दो हिस्सों में बांटकर देखा जा सकता है। पहला जिसमें उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी बताया , दूसरा यह जिसमें उन्होंने इसे क्रूर न्यू इंडिया की तस्वीर से जोड़ दिया। उनका बयान देश की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाला है। यदि राहुल के बयान पर विश्वास करें तो भारत को आतंकी मुल्कों की सूची में रखना पड़ेगा। जहाँ पूरा मुल्क हिंसा की चपेट में होता है।
यदि यह नरेंद्र मोदी के न्यू इंडिया की तस्वीर है, सिख दंगे के लिए क्या कहा जायेगा। वस्तुतः राहुल ऐसे बयान देते है, जिनसे उनकी ही पार्टी की सरकार कठघरे में आ जाती है। राजनाथ सिंह ने लोकसभा में ठीक कहा था को मॉब लीचिंग का सबसे बड़ा प्रकरण सिख दंगा था। राहुल के बयान से पुराने प्रसंग सामने आते है , जिनका कांग्रेस को ही नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसा भी नहीं कि राहुल यह कार्य पहली बार कर रहे है। भाजपा शासित राज्यों में कानून व्यवस्था से जुड़ी घटनाओं पर राहुल का यही रुख रहता है। पश्चिम बंगाल और केरल की राजनीतिक हिंसा पर राहुल का एक बयान भी नहीं आता।
वस्तुतः राहुल गांधी कभी नरेंद्र मोदी से अलग कुछ भी सोचने को तैयार नही है। इसी लिए उनके बयानों में गंभीरता नहीं होती। साढ़े चार वर्षों में मोदी सरकार ने मजहबी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया है। ऐसे में प्रत्येक घटना के लिए उन पर ठीकरा फोड़ना बेतुका लगता है।
हिंसा की प्रत्येक घटना निंदनीय होती है। भारतीय समाज के लिए ये कलंक की बात है। राज्य सरकारों को इन्हें रोकने के लिए गंभीरता से प्रयास करने चाहिए। दोषियों को कठोर सजा दिलानी चाहिए। ऐसी घटनाएं भारत की मुल सँस्कृति के विरुद्ध होती है। हमारा समाज इसकी निंदा करता है। चंद लोग ऐसी विभत्स वारदात करते है। पुलिस के चंद लोग लापरवाही और असंवेदनशीलता का व्यवहार करते है। लेकिन इसके लिए पूरे देश को बदनाम करने भी अपराध है।
राजस्थान के अलवर की हिंसा की घटना की जितनीं भर्त्सना की जाए कम है। लेकिन इसे न्यू इंडिया के रूप में प्रचारित करना बेहद आपत्तिजनक है। राहुल गांधी ने यही किया है।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ठीक कहा कि हर बार जब कोई अपराध होता है तो राहुल गांधी खुशी से उस पर कूदने लगते है। राज्य ने पहले से ही सख्त और त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। राहुल समाज अपने लाभ के लिए हर तरह से बांटते हैं और फिर मगरमच्छ की तरह आंसू बहाते हैं। गोयल ने उन्हें नफरत का सौदागर बताया है।
राहुल हिंसा और कानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दे को राष्ट्रीय समस्या के रूप में प्रचारित करते है। उनके कहने का मतलब यह होता कि पूरे देश मे हिंसा का माहौल है। लोगो को मारा जा रहा है, इनको मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है।
इसके लिए भी राहुल सीधे नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते है। घटना राजस्थान के एक शहर में हुई। कुछ लोगों ने एक व्यक्ति पर हमला किया। पुलिस ने घायल व्यक्ति को समय से अस्पताल नहीं पहुंचाया। राहुल की नजर में इसके लिए भी नरेंद्र मोदी ही दोषी है। कांस्टेबल की गलती के लिए मोदी पर हमला बोलकर राहुल अपनी ही समझ ही उजागर की है। अलवर के प्रशासन को घेरते, राजस्थान की मुख्यमंत्री पर हमला बोलते , यहां तक सब ठीक था। राहुल ऐसा करते तो उंसकी निंदा नही हो सकती थी। राहुल को यह विचार करना चाहिए कि उनके बयानों से कांग्रेस और देश को क्या हासिल हो रहा है। राहुल को देश की प्रतिष्ठा का ध्यान रखना चाहिए। अन्यथा उन्हें कोई भी गंभीरता से नहीं लेगा।