डॉ दिलीप अग्निहोत्री


ऐसा आंदोलन संविधान और गांधीवादी विचार का उल्लंघन भी है। ऐसे में दस सितंबर को हुए भारत बंद मर्यादापूर्ण नहीं माना जा सकता। यह बिडंबना है कि पिछले चार वर्षों में ऐसे कोई भी आंदोलन अहिंसक नहीं रह सके। इसमें जातिवादी आंदोलन भी शुमार है। यह सही है कि रुपये की गिरती कीमत और पेट्रोल की बढ़ी कीमत पर भाजपा ने यूपीए सरकार के विरोध में मोर्चा खोला था। लेकिन अराजक भारत बंद से वह भी बचती रही थी।
कांग्रेस ने इक्कीस पार्टियों के समर्थन की बात कही थी। लेकिन सपा, बसपा सहित अनेक पार्टियों ने इससे किनारा कर लिया। यह फजीहत चल ही रही थी कि कोर्ट ने नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल की याचिका खारिज कर दी। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस ने इस संभावित चर्चा से ध्यान हटाने के लिए भारत बंद का आयोजन किया था। लेकिन यह मकसद सफल नहीं रहा। इस पर चर्चा गर्म रही। इसके अलावा भारत बंद के बाद बसपा प्रमुख मायावती का कांग्रेस के विरोध में बयान आ गया। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ने फोन लोन बाटने के लिए यूपीए सरकार को गुनाहगार बताया। अमेठी से राहुल गांधी को चुनौती देने वाली स्मृति ईरानी ने भी कांग्रेस पर निशाना लगाया, मोदी सरकार में किसी डिफाल्टर को कर्ज नहीं दिया गया।
साढ़े चार सालों में सरकार ने पचास करोड़ रुपये से अधिक के बड़े कर्जो की समीक्षा की गई। भगोड़ों की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। बड़े कर्ज लेने वालों के कागजात कब्जे में रखे जाएंगे। पौने दो लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेकर अदा न करने वाले बारह सबसे बड़े डिफाल्टरों पर तेजी से कार्रवाई हो रही है। जबकि एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेकर अदा न करने वाले सत्ताईसअन्य लोगों से वसूली के भी पक्के इंतजाम किए जा रहे हैं।


मोदी ने दावा किया कि अब तक दिए गए सारे बड़े कर्जो में इस सरकार का दिया एक भी ऋण नहीं है। देश का नौ लाख करोड़ कुछ उद्योगपतियों की जेब में चला गया था। राजग सरकार ने सुधार के कदम उठाए। मोदी सरकार जनता को तेल का पूरा फायदा इसलिए नहीं दे पाई क्योंकि भारत पुराने तेल के कर्ज में डूबा देश हो गया था। ईरान से लगभग पांच लाख बैरल प्रतिदिन तेल लेते हैं उसका भारत पर करीब करीब चालीस हजार करोड़ का उधार हो गया था। ये उधार चार साल पहले से हुआ है। जब भारत ईरान से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध के बाद तेल तो लेता था लेकिन रोक की वजह से उसे भुगतान नहीं कर पाता था।
मायावती ने कहा कि पेट्रोल डीजल की कीमतों को सरकार के नियंत्रण से बाहर रखने की शुरुआत तो कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार में हुई थी। भारत बंद के दौरान कुछ राज्यों में हिंसा को लेकर भी मायावती ने कहा कि इस तरह की हिंसा का समर्थन नहीं करती। सपा बसपा दोनों ने ही अपने को भारत बंद से अलग रखा। विपक्षी दलों के प्रस्तावित महागठबन्धन से ही कांग्रेस के खिलाफ आवाज निकलने लगी है। राजन के बयान और नेशनल हेराल्ड केस में राहुल गांधी की याचिका रद्द होने पर स्मृति ईरानी ने भी कांग्रेस पर हमला किया। कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों के चलते ही एनपीए बढ़ा और बैंक बदहाल हुए। राहुल गांधी ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सन दो हजार ग्यारह बारह के उनके टैक्स निर्धारण की फाइलें दोबारा खोले जाने को चुनौती दी थी। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
नेशनल हेराल्ड कंपनी को कांग्रेस की ओर से नब्बे करोड़ लोन दिया गया था। एसोसिएट्स जनरल नेशनल हेराल्ड समेत कांग्रेस के कई मुख्यपत्र प्रकाशित करता था। ईरानी ने एसोसिएटेड जनरल का नब्बे करोड़ कर्ज पचास लाख में खरीदने पर सवाल उठाया। जाहिर है कि कांग्रेस ने अपना ग्राफ बढ़ाने के लिए भारत बंद किया था। लेकिन उसको दोहरा नुकसान हुआ। एक तो यह कि बन्द से कुछ वह प्रतिद्वंदी दूर रहे ,जिनसे कांग्रेस को गठबन्धन की उम्मीद थी। दूसरा यह कि बन्द में हुई अराजकता के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगियों को जिम्मेदार माना गया। तीसरा यह कि कांग्रेस नेशनल हेराल्ड घोटाले से ध्यान हटाने में नाकाम रही। रही सही कसर रघुराम राजन, स्मृति ईरानी और मायावती के बयानों ने पूरी कर दी।
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