आखिरकार रामपाल को उसके कर्मों की सजा मिल ही गयी, आमतौर पर देखा जाता है रुसूख़ बढ़ते ही व्यक्ति का दम्भ भी बढ़ जाता है और वह समाज प्रतयेक व्यक्ति को अपनी जेब में रखने ख्याल पाल लेता है इसके साथ ही वह सभी कुकर्म करने लगता है वह यह भी नहीं देखता है कि इसमें क्या सही क्या गलत!
सबलोक आश्रम के संस्थापक धर्मगुरु रामपाल को 15 लोगों के साथ उम्र कैद की मिली सजा से किसी को आश्र्चय नहीं हुआ है। बता दें कि पिछले 11 अक्टूबर को ही हिसार के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के विशेष न्यायालय ने इनको हत्या, हत्या की साजिश आदि में दोषी करार दे दिया था। उसके बाद इनको सजा होनी ही थी। 2014 का दृश्य देश भूल नहीं सकता।
उस समय पुलिस सहित अन्य सुरक्षा बलों तथा आश्रम के बीच मोर्चाबंदी जैसी स्थिति थी। हालांकि इस बात पर विवाद है कि पुलिस ने उस तरह वहां हमला करने की जगह रात के समय छापा मारकर कार्रवाई क्यों नहीं की? पुलिस की अतिवादिता भी साफ दिख रही थी। किंतु न्यायालय के सामने जो तय आएंगे वह फैसला उसी आधार पर देगा। छह लोगों की उस घटना के दौरान मौत हुई थी। निश्चय ही इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी किंतु रामपाल के लिए बाहर निकलना इस समय मुश्किल लगता है।
कैद रहने के साथ ही उनके द्वारा स्थापित पंथ का भी अंत हो गया लगता है। उनके ज्यादातर आश्रम जब्त किए जा चुके हैं। उच्च न्यायालय के आदेश पर प्रमुख सामानों की भी नीलामी हो चुकी है। आशंकाओं के विपरीत सजा सुनाए जाने के बाद किसी तरह की हिंसा नहीं होना राहत की बात है।
माना जाता है कि रामपाल ने आर्यसमाज से अलग कई संतों के विचारों को मिलाकर एक अलग संप्रदाय चलाने की कोशिश की थी। इसका स्थानीय स्तर पर भी विरोध होता था, पर उसके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। किंतु यह बात समझ से परे है कि जब पुलिस ने आश्रम को घेरा तो अहिंसक तरीके से आत्मसमर्पण करने की बजाय उतना उत्पात क्यों मचाया गया? अगर रामपाल ने स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया होता तो वैसी भयानक स्थिति पैदा ही नहीं होती। हो सकता है उसके बाद वह रिहा भी हो जाते। एक धार्मिंक व्यक्ति की पहचान ऐसे ही अवसरों पर होती है। संकट के क्षण में आप कितना सात्विक व्यवहार कर पाते हैं, यही तो धार्मिंकता है।
रामपाल को एक सच्चे धर्मगुरु का आचरण करते हुए अपने समर्थकों को उस समय पुलिस से भिड़ने से रोकना चाहिए था जो वह नहीं कर पाए। वैसे यह भी सच है कि प्रचार के विपरीत अंदर आश्रम से कोई भी अवैध अस्त्र बरामद नहीं हुआ। आश्रमों में लाठियों आदि का मिलना सामान्य बात है। किंतु पुलिस को उस समय जो परेशानी उठानी पड़ी उसके बाद रामपाल एवं उनके सहयोगियों के लिए बचने के रास्ते लगभग बंद हो गए थे।