नयी टेक्नोलॉजी के दौर में सोशल मीडिया आधुनिक प्रगतिशील समाज में अभिव्यक्ति की नई उम्मीद लेकर आया है। पश्चिम से पूर्व तक इस फैलाव को दुनिया ने उन्मुक्त विचार से अपनाया, क्योंकि इस तकनीकी विकास में एक खुली पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी। जिस अकुलाहट को परंपरागत वैश्विक मीडिया ने कभी समुचित सम्मान नहीं दिया। उस कशमकश को उन्मुक्त और इस आभासी दुनिया ने खोला और एक सार्वजनिक मंच दिया। जिस सर्वहारा वर्ग को मीडिया अपनी आवाज नहीं बना पाई। उसे इस मीडिया ने नया ऑक्सीजन दिया, तकनीकी विकास ने विचारों के एक प्रश्न को उपलब्ध कराया जिसके लिए किसी पायलट की जरूरत भी नहीं थी।
सोशल मीडिया की उन्मुक्त जमीन का वैश्विक स्तर पर समाज ने अपने अपने तरीके से इस्तेमाल किया, इसके अलावा दुनिया में कई अहम बदलाव देखे गए। अगर देखा जाए तो भारत में आए राजनीतिक बदलाव में आभासी मीडिया की अहम भूमिका सामने आई, दुनिया को बेहद करीब लाने में यह कुछ अलग हटकर नए रुप में सामने आया। आधुनिक समाज में सूचना तकनीकी का विस्फोट इतनी तेजी से फैला के मीडिया हास्य पर चली गई और विचारधाराओं का सार्वजनिक वैश्विक मंच बन गई, और अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम मंच परंपरागत मीडिया के इर्द गिर्द घूमने लगी।
सोशल मीडिया ने अधिकारों के छोटे-छोटे मसलों पर जनमत बनाने का काम किया वैश्विक स्तर पर बदलाव की कड़ी बनी हालाँकि इसकी बिंदास, बेलौस अभिव्यक्ति और समाज के विघटन का कारण भी बनती दिख रही है अब यह घड़ा के प्लेटफार्म में तब्दील होती दिखती है।
मॉब लिचिंग और ट्रोल जैसी अनेक अनैतिकता से घिरी दिखती है इसकी बेलगामी समाज देश व्यवस्था और कानून को खटकने लगी है। इसका बेजा इस्तेमाल होने लगा है। फेसबुक, व्हाट्सप्प. ट्विटर, इंस्टाग्राम और दूसरे प्लेटफॉर्म पर सरकार ने नियंत्रित करने का मन बना लिया है। जिस पर संबंधित संस्थानों ने आज काम भी शुरू कर दिया है। देशभर में बढ़ती मॉब लिचिंग के साथ ट्रोल की वारदात के बाद सरकार इस पर सतर्क हो चली है। अब उन्मुक्त मीडिया के अतिवादी भक्तों के खिलाफ जेल दरबार भी सजने लगा है, वक्त रहते सरकार की तरफ से कदम उठाना आवश्यक था। लेकिन इस पर कोताही नहीं बरती जानी चाहिए, पूरी तरह प्लेटफार्म पर फैली बदबू एवं गंदगी को साफ किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें नियंत्रण की किसी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
नतीजा यह हुआ है कि दुनिया भर की विचारधाराओं ने इसका इस्तेमाल अपने -अपने तरीके से किया जिसका परिणाम समाज पर बुरा हुआ है। अभिव्यक्ति का अतिवाद अलगाववाद, आतंकवाद जातिवाद. संवाद सांप्रदायिकता. भाषावाद. नक्सलवाद का अभ्युदय तेजी से हुआ है। सोशल मीडिया आज के दौर में जातिवाद की परिभाषा तक पहुंच गई है। इस प्लेटफार्म का उपयोग लोकतंत्र में वैचारिक स्तर पर जनमत तैयार करने के बजाय अलगाववाद, जाति धर्म रूप में होने लगा है। वैचारिक मंच के बजाय यह प्रचारतंत्र का माध्यम बन गया है , जिसने भी जिस तरह चाहा जहां अपनी बाजारवाद की आड़ में ब्रांडिंग कर रहा है। हालांकि आभासी दुनिया का अद्भुत एक प्रयोगवाद के रूप में हुआ था लेकिन समाज और सभ्यताओं को विघटन की तरफ मोड़ने का इस मंच ने काम किया, जिसका एहसास हमें अब हो रहा है मावली सिंह की घटनाओं पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोशल मीडिया पर शिकंजा कसा जिस पर कार्यवाही करते हुए ट्विटर ने 7 लाख फर्जी अकॉउंट को बंद कर दिया। जबकि माइक्रो ब्लॉगिंग साइट इसके पूर्व अक्टूबर में 10 लाख खाते बंद कर चुकी है।
फसाद की असली जड़ भी फर्जी खाते हैं। भारत में ट्विटर के तीन करोड़ से अधिक उपयोग करता हैं व्हाट्सप्प और इंस्टाग्राम के दुनिया भर में 50 लाख यूजर हैं जिसकी वजह से हर दिन 70 लाख फोटो के साथ 10 करोड़ वीडियो वायरल किए जाते हैं। भारत मेक्सिको और ब्राजील में भी यह संख्या तेजी से बढ़ी है। जबकि सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर पूरी दुनिया में तकरीबन 2 अरब और भारत में 21 करोड़ 7 लाख उपयोग करता हैं।
सोशल मीडिया ने अपनी विचारधाराओं को समाज पर थोपने का काम किया। जिसकी वजह से स्थिति बदली और वैचारिक अभिव्यक्ति गाली- गलौज के साथ निजी हमले पर उतर आई समाज में अब मॉब लिचिंग जैसी बढ़ती वारदातों के पीछे की वजह से सोशल मीडिया है। महाराष्ट्र, कर्नाटक त्रिपुरा, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में 2 माह के भीतर 27 से अधिक लोग भीड़ की भेंट चढ़ गए। अभिजात आधुनिक समाज के लिए इससे बड़ी शर्म और क्या हो सकती है। जब कभी बच्चा चोरी, डायन, पॉकेटमार, गौ तस्करी की आशंका में निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
समाज में घृणा फैलाने के मुख्य वजह फर्जी अकाउंट वाले हैं। कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी को ट्रोल करने वाले ने खुद के वॉलपेपर भगवान राम की तस्वीर लगा रखी थी। जिसे बाद में महाराष्ट्र पुलिस ने जेल भेज दिया। ट्रोल की घटनाओं ने तो अनैतिकता की सारी मर्यादा ही लाँघ डाली है। लखनऊ की तन्वी सेठ मामले में तो अभिव्यक्ति का अतिवाद आतंकवाद से भी ज्यादा जहरीला निकला। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के खिलाफ बेहद शर्मसार टिप्पड़ी करने वाली स्थिति हुई। कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चौधरी, डांसर सपना चौधरी और टीवी एंकर के साथ किस तरह मां-बहन की गालियों से ट्रोल किया गया। इस तरह की घटनाएं हमारे सभ्य समाज में कोई नयी नहीं है। इसके पहले भी इस मंच पर कई हस्तियां अपमानित हुई हैं। जिसमें क्रिकेटर मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां, जायरा वसीम, कांग्रेस नेता ज्योति मणि, भाजपा के आईटी सेल के अमित मालवीय, कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह, फातिमा शेख, दंगल फिल्म से जुड़ी जायरा वसीम और दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा गुरमेहर कौर जैसे लोग शामिल हैं यह घटना रोज जारी भी हैं।
निश्चित तौर पर लोकतंत्र और स्वस्थ समाज के लिए अभिव्यक्ति की आजादी उतनी ही आवश्यक है जितनी जीवन के लिए ऑक्सीजन। हम जितना नैतिक, लोकतांत्रिक और सार्थक बहस के जरिए समाज को नई दिशा दे सकते हैं। उतनी अनैतिक्त असंसदीय जुबान बोलकर नहीं। सुषमा स्वराज हमारी विदेश मंत्री हैं। मोदी मंत्रिमंडल में उन्होंने अब तक सबसे बेहतर काम किया, लेकिन तन्वी सेठ मामले में पासपोर्ट जारी होने के मामले में उन्हें जाति धर्म में बांट दिया गया। जिसके मूल वजह में हिंदू और मुसलमान था। हम एक पंथ मजहब और धर्म से जुड़े हो सकते हैं। लेकिन कोई सरकार अपने को धर्म और सांप्रदायिकता में नहीं बांट सकती। उसका असली धर्म राष्ट्र प्रजातंत्र को उन्नति होगी। सुषमा स्वराज जिम्मेदार केंद्रीय सरकार की मंत्री हैं। वह धर्म और पंथ के नजरिए से नहीं चल सकती। भारत सहिष्णु राष्ट्र है इस पर जितना अधिकार हिंदू धर्म का उतना ही मुसलमान सिख और ईसाई और दूसरे भारतवासियों का भी हैं। हम अपनी बात लोकतांत्रिक तरीके के साथ रख सकते थे। आभासी दुनिया में हमने सिर्फ जीतना सीखा है। एकला चलने की बात कभी नहीं सोची, सारे अच्छे बुरे का फैसला सोशल मीडिया पर कर लेते हैं। फरियादी- वादी न्यायवादी की सारी भूमिका हम एक साथ निभाना चाहते हैं। जिसका अधिकार हमें लोकतंत्र नहीं देता। अभिव्यक्ति का यह अतिवाद आतंकवाद से भी खतरनाक है इस पर हमारी युवा पीढ़ी को गंभीरता से विचार करना होगा।
आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हमें सामाजिक संतुलन बनाने के लिए करना होगा। बहाव के इस दौर में हमें बेहद सतर्क रहना होगा। निगाहों के साथ दिमाग को भी खुला रखना होगा। हम सभी प्रकार की हवाओं के लिए घर की खिड़की नहीं खोल सकते हैं। अगर हमने ऐसा किया तो बेहद खतरनाक स्थिति होगी इस मुहिम के खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए जो अपनी सत्ता के लिए घड़ा फैलाती है समाज को बांटती है सोशल प्लेटफार्म का कोई राजनीतिक दल अभिनेता या आम आदमी गलत उपयोग करता है तो उसे तो उसके खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए जो कि सत्ता के लिए घृणा फैलाती है समाज को बांटती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का कोई राजनेता, दल, अभिनेता या आम आदमी गलत उपयोग करता है। तो एक साथ मिलकर उसकी घंटी बजाओ हमें एक ऐसी विचारधारा का प्रतिपादन करना है। जिसका उद्देश्य राजसत्ता नहीं आम आदमी की सत्ता हो।अभिव्यक्ति के मूल में समाज की तरक्की होनी चाहिए अलगाववाद नहीं।