डॉ दिलीप अग्निहोत्री
ग्यारह वर्षो से भगवा आतंकवाद की यंत्रणा झेल रहे असीमानन्द को अंततः न्याय मिला। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की विशेष अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया। यह मसला पांच लोगों की रिहाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से भगवा आतंकवाद शब्द भी निर्मूल साबित हुआ। यह शब्द दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को अपमानित करने वाला था। इस अपराध की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। न्यायपालिका की प्रक्रिया अपनी जगह है। उसका सम्मान होना चाहिए। किसी पर अपराध का आरोप हो तो उसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
न्यायिक प्रक्रिया पर भी विश्वास रहता। लेकिन इस मसले पर विस्फोट की घटना और उसके लिए कांग्रेस के नेताओं द्वारा इस्तेमाल किया गया शब्द दोनों का अलग- अलग महत्व था। मक्का मस्जिद या समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट करने का अपराध जघन्य था। जिसने भी इसे अंजाम दिया, उसे कानूनी शिकंजे में लाने का पूरा प्रयास करना चाहिए था। लेकिन इस मसलों पर तत्कालीन यूपीए सरकार का नजरिया हैरान करने वाला था। यह लग ही नहीं रहा था कि तत्कालीन सरकार की वास्तविक अपराधी को पकड़ने में दिलचस्पी थी। वह तो भगवा या हिन्दू आतंकवाद के प्रचार में लगी थी। इस मसले और शब्द को इतना तूल दिया गया कि तहकीकात का वास्तविक मकसद पीछे छूट गया। एक पल को मान भी लें कि इस बम ब्लास्ट में किसी हिन्दू का हाँथ था। फिर भी इस आधार पर भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग आपत्तिजनक था।
हिन्दू अपराधी हो सकते है। लेकिन आतंकवाद नहीं हो सकते। क्योंकि आतंकवाद खास किस्म की विचारधारा से पनपता है। सम्पूर्ण हिंदी वांग्मय में ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे किसी को आतंकवादी बनने की प्रेरणा मिले। दुनिया की सबसे प्राचीन इस सभ्यता के संदर्भ में आतंकवाद जैसा प्रयुक्त नहीं किया गया था। सभ्यताओं के टकराव में भी हिन्दू शामिल नहीं थे। इसमें तो वसुधा को कुटुंब माना गया। कभी तलवार के बल पर अपने मत के पचार का प्रयास नहीं किया। ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है। सभी पंथों के सम्मान का विचार केवल हिन्दू संस्कृति में ही है। इसमें परम् सत्ता तक पहुंचने के सभी मार्गो अर्थात उपासना पद्धति को सम्मान दिया गया। यह नहीं कहा गया कि हिन्दू हिन्दू संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है। या ईश्वर तक पहुंचने का यही एक मार्ग है। सबके कल्याण की कामना की गई। सभी पंथ, उपासना पद्धति को अच्छा बताया गया।
ऐसे चिंतन में कभी आतंकवाद पनप ही नही सकता। इसकी संभावना वही होती है, जो अन्य मजहबों के प्रति असहिष्णुता का विचार रखता है। आज दुनिया किस प्रकार के आतंकवाद से परेशान है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान से लेकर सीरिया, लेबनान तक आतंकवाद का कहर है। अमेरिका और यूरोप के देश भी आतंकी हमला झेल चुके है। आज भी इन्हें अपने को आतंकी हमले से बचने के लिए विशेष सुरक्षा प्रयास करने पड़ रहे है। विश्व की प्रायः सभी बड़ी आतंकी घटनाओं को उठा कर देखिये, कही भी हिन्दू आतंकवाद शब्द नहीं मिलेगा।
इस वैश्विक माहौल में कांग्रेस के दिग्गजों ने भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था। यह बात किसी साधारण नेता ने कही होती तो इसे नजरअंदाज किया जा सकता था। लेकिन यह बात देश के गृह मंत्री, वित्त मंत्री और कांग्रेस संघठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और महामंत्री जैसे लोगों के कही थी। इनमें से किसी के पास हिन्दू या भगवा आतंकवाद के कोई प्रमाण नहीं थी। यदि कुछ हिंदुओं को हिंसा का जिम्मेदार मान भी लें, तब भी यह हिन्दू आतंकवाद नहीं था।
यह शब्द गढ़ने वाले वही लोग थे, जो कहते रहे है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। हिन्दू आतंकवाद का झूठा शब्द गढ़ते समय इन्हें एक बार भी अपना कथन ध्यान नहीं आया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। लेकिन कांग्रेस के दिग्गज इसे बार बार दोहराते रहे। उनका आकलन था कि इससे मजहब विशेष के लोग उनसे खुश होंगे। उनका वोटबैंक मजबूत होगा।
इसके लिए इन्होंने भारतीय समाज और विदेशनीति दोनों का नुकसान किया था। हिन्दू आतंकवाद पर फोकस करने से वास्तविक अपराधी की ओर से ध्यान हट गया। सरकार और सत्ता पक्ष के इस नजरिए का सर्वाधिक फायदा इन्हीं तत्वों ने उठाया होगा। विदेश नीति के अंतर्गत उस सरकार ने भारत वीरोधी तत्वों को हमले का अवसर दिया। इससे सर्वाधिक खुशी पाकिस्तान को हुई। वह इस्लामी आतंकवाद को संरक्षण देने का आरोप झेल रहा था। प्रत्येक आतंकी घटना के तार किसी न किसी रूप में पाकिस्तान से जुड़े मिलते थे। वहां आतंकी संघठनो को खुली पनाह मिलती है। सेना आतंकियों को प्रशिक्षण देती है। ऐसा पाकिस्तान उल्टा भारत पर आरोप लगाने लगा। चोर कोतवाल को डांट रहा था। पाकिस्तान कहने लगा कि भारत हिन्दू आतंकवाद रोके। भारत जब मुंबई बम विस्फोट के आरोपियों को सजा देने की मांग करता था, तब पाकिस्तान जामा मस्जिद ,समझौता एक्सप्रेस बम ब्लास्ट के आरोपियों का सजा दिलाने की बात करना लगा। पाकिस्तान जैसे आतंकी मुल्क को यह मौका यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी ने दिया था।
कहा जा रहा है कि चौसठ गवाह मुकर गए। सवाल यह है कि हिन्दू आतंकवाद के नाम पर कुछ लोगों की गिरफ्तारी के बाद लगभग सात वर्षों तक केंद्र में यूपीए की सरकार थी। जांच एजेंसियां उसके नियंत्रण में थी। अनेक एजेंसियो से जांच कराई गई। अंत में राष्ट्रीय जांच एजेंसी को कार्य सौंपा गया। लेकिन हिन्दू आतंकवाद कहीं नजर नहीं आया।
जब सात वर्षों में कुछ नहीं हो सका तो चार वर्षों में क्या होता। इतना अवश्य हुआ कि कांग्रेस का चेहरा अवश्य बेनकाब हुआ। वोट बैंक की राजनीति के लिए ये किसी भी हद तक जा सकती है। पिछले कुछ महीने के उदाहरण भी सामने है। गुजरात कांग्रेस के नेता मंदिर मंदिर दौड़ते रहे। यह जनेऊधारी रूप था। पूर्वोत्तर राज्यों में चर्च का प्रभाव दिखा। कर्नाटक में वोट के लिए हिन्दू धर्म को ही विभाजित कर दिया। लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दे दिया। यह कार्य भी लोगो को मूर्ख बनाने के लिए किया गया। पहला यह कि राज्य सरकार को ऐसा करने का कोई अधिकार ही नहीं है। दूसरा यह कि विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के कुछ दिन पहले इसका वैसे भी कोई महत्व नहीं था। लेकिन मसला फिर वही है। वोट के लिए कुछ भी किया जा सकता है। भगवा आतंकवाद शब्द का जबाब मतदाताओं ने लोकसभा चुनाव में दिया था। कांग्रेस सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई थी। अब न्यायपालिका के निर्णय से भी स्थिति अपरोक्ष रूप से स्प्ष्ट हुई है। भगवा आतंकवाद के कोई सबूत नही है। कांग्रेस ने इस शब्द के माध्यम से भारतीय चिंतन और संस्कृति का अपमान किया था।
.लेखक वरिष्ठ पत्रकार है