दुनिया का चौतरफा दबाव झेल रहे पाकिस्तान ने आखिरकार अपने पोषित आतंकियों पर दिखावटी कार्रवाई कार्रवाई करने पर मजबूर हो ही गया। हालाँकि इस मामले कहा जाता है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों के खिलाफ वैसे तो किसी तरह का कदम उठाए जाने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि वहां की सरकार खुद इनको पालती-पोसती तथा पड़ोसी देशों के खिलाफ इनका इस्तेमाल करती है और इसलिए यह मामला एक तरह से वहां की राष्ट्रीय नीति बन चुका है लेकिन अब स्थिति में कुछ बदलाव आया है। बड़े आतंकी सरगनाओं को सजा देने के मामले में वहां की अदालतें अब सख्त रुख दिखा रही हैं। ऐसी ही एक विशेष अदालत ने लश्करे तैयबा के आतंकी जकी उर रहमान लखवी को तीन मामलों में पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई है।
पिछले साल नवंबर में लश्कर के सरगना हाफिज सईद सहित तीन लोगों को दस-दस साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। पाकिस्तान घोषित तौर पर हालांकि इस बात से इंकार करता रहा है कि उसकी जमीन पर आतंकी मौजूद हैं लेकिन अदालत ने सजा देकर साबित कर दिया है कि ये आतंकी हैं और आतंकी गतिविधियों में लिप्त हैं। सोचने की बात है कि जो देश लंबे समय से इन आतंकियों को पनाह दिए हुए है और इनका इस्तेमाल दुनिया भर में आतंकवाद फैलाने में करता रहा है, वह इनको इतनी आसानी से सजा कैसे दे सकता है।
असलियत यह है कि पाकिस्तान पर पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ गया है। इसमें भी वित्तीय कार्रवाई बल का मामला उसके गले की फांस बन चुका है जो उसे अपने देश में मौजूद आतंकी तत्वों का खात्मा करने की चेतावनी दे रहा है। इस बल का कहना है कि वरना पाक को निगरानी सूची से हटाकर काली सूची में डाल दिया जाएगा।
पाक को डर है कि अगर ऐसा हो गया तो हर तरह की विदेशी मदद पर पाबंदी लग जाएगी। उसकी अर्थव्यवस्था वैसे ही खस्ताहाल है। इसीलिए वह अब इन संगठनों के खिलाफ अभियान चलाता दिख रहा है और पाक अदालतें कड़ी सजा देने का दिखावा कर रही हैं। यदि पाकिस्तान सरकार ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ इनके खिलाफ कार्रवाई करती तो ये सारे गुनहगार काफी पहले ही सलाखों के पीछे होते।