2 दिसम्बर: राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस पर भोपाल गैस त्रासदी में
प्रदीप कुमार सिंह
इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक आपदा के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए जागरूकता फैलाना तथा प्रदूषण रोकने के लिए प्रयास करना है। इस त्रासदी में जान गवाने वाले लोगों के लिए विशेष श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाती है। इसके साथ ही इस दिन गैर सरकारी संगठनों, सिविल सोसायटी और नागरिकों द्वारा प्रदूषण को रोकने के लिए संगोष्ठी, भाषण कार्यक्रम जैसे कई सारे कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। राष्ट्रीय प्रदूषण दिवस को देखते हुए प्रदूषण नियंत्रण की देखरेख करने वाली संस्था भारतीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए इस मौके पर 2 दिसबंर के दिन भोपाल, कानपुर, दिल्ली और मुबंई जैसे शहरों में जन-जागरूकता रैली निकाली जाती है। जिसमें लोगो को बढ़ते प्रदूषण और प्रतिकूल प्रभावों के प्रति आगाह किया जाता है। इस दिन जन जागरूकता रैली निकालना काफी महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के 14 शहर शामिल हैं।
इस रैली में लोगों को बढ़ते प्रदूषण के कारण पर्यावरण में हो रहे जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के बढ़ते तापमान जैसे विषयों के बारे में बताया जाता है तथा इस बात पर चर्चा की जाती है कि कैसे छोटे-छोटे उपायों को अपनाकर हम प्रदूषण को रोकने में अपना अहम योगदान दे सकते हैं। इस लेख के द्वारा हम विश्व तथा देश के कुछ पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य कर रही हस्तियों के जिक्र करना चाहेंगे ताकि उनसे प्रेरणा लेकर हम अपने आसपास प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में यथाशक्ति अपना-अपना योगदान कर सकें।
सुश्री गौरा देवी के नेतृत्व में उत्तराखंड के जंगलों को वन माफिया से बचाने के लिए 1970 की शुरूआत में गढ़वाल के ग्रामीणों ने अहिंसात्मक तरीके से एक अनूठी पहल करते हुए पेड़ों से चिपककर हजारों-हजार पेड़ों को कटने से बचाया। यह अनूठा आंदोलन ‘चिपको आंदोलन’ नाम से प्रसिद्ध हुआ था। यह आंदोलन वर्तमान उत्तराखंड के चमोली जिले के हेंवलघाटी से गौरा देवी के नेतृत्व में शुरू होकर टिहरी से लेकर उत्तर प्रदेश के कई गांवों में इस कदर फैला कि इसने वन माफिया की नींद उड़ा दी। श्री सुन्दरलाल बहुगुणा प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेता थे। इन्हें सन 1984 के राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्व भर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। श्री सुंदरलाल बहुगुणा ‘पर्यावरण गांधी’ के नाम से भी जाने जाते है। चिपको आंदोलन की सफलता के बाद पर्यावरण की रक्षा के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध के विरोध में अपने स्वर बुलंद कर दिये थे।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित सुश्री वंगारी मथाई केन्याई पर्यावरणविद् और राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। यह महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली महान महिला के रूप में प्रसिद्ध है। उन्होंने अमेरिका और कीनिया में उच्च शिक्षा अर्जित की। 1970 के दशक में मथाई ने ग्रीन बेल्ट आंदोलन नामक गैर सरकारी संगठन की नींव डालकर पौधारोपण, पर्यावरण संरक्षण और महिलाओं के अधिकारों की ओर ध्यान दिलाया।
सुश्री मेधा पाटकर एक भारतीय पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्ता तथा समाज सुधारक है। मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक के नाम से भी जानी जाती है। श्रीमती मेनका गांधी प्रसिद्ध राजनेत्री, जानी-मानी पर्यावरणवादी एवं पशु-अधिकारवादी हैं। उन्हांेने अनेकों पुस्तकों की रचना की है तथा उनके लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रायः आते रहते हैं। वह भारत की एक अनुभवी सांसद है तथा केन्द्रीय सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रह चुकी है। भारत में पशु-अधिकारों के प्रश्न को मुख्यधारा में लाने का श्रेय श्रीमती मेनका गांधी को ही जाता है।
विश्व-विख्यात पर्यावरणविद् एवं नवधान्य की संस्थापक-निदेशक, डा. वंदना शिवा जैविक खेती पर ज्यादा जोर देती हैं और देश भर के किसानों को जागरूक कर रही हैं। देहरादून में जन्मीं 58 साल की डा. वंदना शिवा ने पर्यावरण पर दो दर्जन किताबें लिखी हैं। 1970 में वंदना शिवा चिपको आंदोलन से जुड़ी थीं। उसके बाद तो पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई और वंदना शिवा एक दूसरे के पर्याय बन गए। डा. वंदना को भारत में कई जैविक अभियान शुरू करने का श्रेय जाता है। वंदना ने नेटिव सीड्स (मूल बीज) को बचाने और जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 1987 में नवधान्य नामक संगठन की स्थापना की थी।
सुश्री सुनीता नारायण भारत की प्रसिद्ध पर्यावरणविद् है। सुनीता नारायण सन 1982 से विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र से जुड़ी हैं। वर्तमान में वह केंद्र की निदेशक हैं। वे पर्यावरण संचार समाज की निदेशक भी हैं। वे डाउन टू अर्थ नाम की एक अंग्रेजी पत्रिका भी प्रकाशित करती हैं जो पर्यावरण पर केंद्रित है। ग्रीन मैन के नाम से विख्यात हरित ऋषि श्री विजय पाल बघेल का मानना है कि पर्यावरण और जीवन का अनोखा संबंध है। पर्यावरण का ध्यान रखना हर किसी की जिम्मेदारी और अधिकार होना चाहिए। विशेषकर आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण संरक्षण बहुत जरूरी है। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया हुआ है। वह अपने जीवन मंे अब तक देश और दुनिया में पांच करोड़ से अधिक पेड़ लगाकर गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड में नाम दर्ज करा चुके हैं।
श्री चंडीप्रसाद भट्ट भारत के गांधीवादी, पर्यावरणवादी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्हांेने सन् 1964 में उत्तराखण्ड के गोपेश्वर में दशोली ग्राम स्वराज्य संघ की स्थापना की जो कालान्तर में चिपको आंदोलन की मातृ-संस्था बनी। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डा. सौम्या दत्ता का नाम देश के अलग-अलग हिस्सों में विनाशकारी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का विरोध करने वालों की अग्रिम पंक्ति में आता है। पर्यावरणविद् डा. रविकान्त पाठक वर्तमान में स्वीडन की गोथम्बर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के रूप में जलवायु परिवर्तन तथा वायुमण्डलीय विषय पर गहन रिसर्च कर रहे हैं। आपने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरणा लेकर भारत उदय मिशन का गठन किया और इसके माध्यम से ग्रामीण विकास के लिए 2007 से ही सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।
भारतीय किशोरी युगरत्ना श्रीवास्तव ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन के माध्यम से दुनिया के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों के साथ ही आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए विश्व के राजनेताओं से पूछ ही लिया कि ‘‘ये कैसा इंसाफ है कि हमें धरती अच्छी हालत में मिले लेकिन हम उसे आने वाली पीढ़ी के लिए खराब हालत में दें?’’ युगरत्ना ने आगे कहा कि ‘‘अगर धरती पर रहने लायक पर्यावरण ही न रहेगा तो धन, दौलत व तमाम सम्पत्तियाँ धरी की धरी रह जायेगी।’’ युगरत्ना ने धरती को बचाने के लिए दुनिया के लोगों से ऐसे कुछ कदम उठाने की अपील की है जिसका फायदा भावी पीढ़ी तक भी पहुँचे। स्वीडन की बेटी ग्रेटा थनबर्ग ने ग्लोबल वर्मिंग के प्रति यूएन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन मंे सारे विश्व को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से सचेत किया है।
विश्वविख्यात पर्यावरण विशेषज्ञ श्रीमती जेन गुडौल ने चेतावनी दी है कि यदि दुनिया के निवासियों ने एकजुट होकर पर्यावरण को बचाने का प्रभावशाली प्रयत्न नहीं किया तो जलवायु में भारी बदलाव के परिणामस्वरूप 21वीं सदी के अन्त तक छः अरब व्यक्ति मारे जायेंगे। संसार की एक महान पर्यावरण विशेषज्ञ की इस भविष्यवाणी को मानव जाति को हलके से नहीं लेना चाहिए। यह गम्भीर भविष्यवाणी मानव जाति के अस्तित्व को बचाने के लिए समय रहते ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने वाले कारणों जिसमें परमाणु बमों के विस्फोट भी एक प्रमुख कारण हंै, को नियंत्रित करने के लिए प्रभावशाली कदम उठाने के लिए प्रेरित करती है। आज ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी की सतह का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है किन्तु विडम्बना यह है कि हम ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को भली भांति जानते हुए भी लापरवाही बरत रहे हैं और सबसे ज्यादा गैर जिम्मेदारी तो वह देश दिखा रहे हैं जिनकी ग्लोबल वार्मिग में सर्वाधिक हिस्सेदारी है।
भारत ही विश्व में एकता तथा शान्ति स्थापित करेगा। हमारा मानना है कि युद्धों तथा आतंकवाद से धरती को बचाने के लिए भारत को अपनी संस्कृति के आदर्श वसुधैव कुटुम्बकम् तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुरूप एक वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) गठित करने लिए सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक शीघ्र बुलानी चाहिए। साथ ही मानव निर्मित तथा प्राकृतिक अपदाओं से सामाजिक सुरक्षा प्रत्येक वोटर को प्रदान करने के लिए वोटरशिप अधिकार कानून की अविलम्ब आवश्यकता है! वोटरशिप कानून के अन्तर्गत प्रत्येक वोटर को उसके हिस्से की आधी धनराशि उसके खाते में भेजने की मुहिम विश्व परिवर्तन मिशन के संस्थापक विश्वात्मा भरत गांधी द्वारा देश में जोरदार तरीके से चलाया जा रहा है। भारत सरकार को उनके द्वारा भारतीय संसद में दायर याचिका पर चर्चा करवानी चाहिए।
197905 988646Excellent post man, maintain the good function, just shared this with my friendz 650652
Hi there! Do you use Twitter? I’d like to follow you if that would be ok.
I’m definitely enjoying your blog and look forward to new updates.
Hi there to every body, it’s my first visit of this website;
this blog includes awesome and truly excellent stuff designed
for readers.
I’m not that much of a online reader to be
honest but your blogs really nice, keep it up!
I’ll go ahead and bookmark your website to come back down the road.
Many thanks