जी क़े चक्रवर्ती

देश के किसानों के सुनहरे सपनों को संजोने के लिए कुछ विशेष तो छोड़िए कोई भी पुख्ता इंतेजाम किसी भी सरकार द्वारा आज तक नहीं किया गया है। देश का किसान हमेशा से बदहाल रहा है और आज वर्तमान समय तक आते -आते उसे प्रत्येक मौके पर नाउम्मीद ही हासिल हुई है। वर्तमान समय की मौजूदा सरकार के आखिरी बजट से भी किसानों की उम्मीदों को मजबूती प्रदान करने वाला नही कहा जा सकता है। कहने को तो कृषि क्षेत्र के लिए बजट घोषणा में 13 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ ही साथ अनाजों के खरीद की न्यूनतम मूल्यों में थोड़ी बहुत बृद्धि अवश्य की गई है लेकिन जो नकाफी है।
यहां यह भी देखने वाली बात है कि किसानों को मौजूदा सत्र के बजट में सरकारी खरीद मूल्यों में किये गए बढ़ोतरी का लाभ उन्हें कैसे और किस प्रकार मिलेगा, यह सबसे अहम प्रश्न है।
किसानों को उन की उपज की लागत का ड़ेढ गुना दाम दिलाने की घोषणा तो कर दिया गया है, लेकिन लागत की गणना का नुसख़ा नहीं बदला गया है। मौजूदा समय के कृषि क्षेत्र में विकास की दर न्यूनतम स्थिति एवं केंद्र सरकार की नीतियां खेती किसानी करने वालों के लिए संकट पैदा करने वाली ही बात साबित होती नजर आरही है। मौजूदा वर्ष कृषि पर कर्ज 10 फीसदी देने की घोषणा किया गया है एवं किसानों की आय को दोगुना करने की बातें की गई है।
तपती धूप में कड़ी मेहनत करके अच्छी फसल पैदा करने वाला किसान अपने अनाज की बिक्री के मोर्चे पर लाचार हो जाता है। आगे आने वाले दिनों में खेतों में होने वाली खरीफ की फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना ज्यादा देने जैसा वादा भी किया गया है। यह फसल अगले अक्टूबर या नबम्बर माह तक बाजार तक आजायेगी और उसी के बाद लोकसभ चुनाव की घोषणा भी होना है ऐसे में यह लगता है कि आगामी वर्ष 2019 में होने वाले चुनाव को ध्यान में रख कर इस तरह की घोषणा की गई है।
कृषि क्षेत्र के विकास हेतु उसके बुनियादी ढांचे को चुस्त-दुरुस्त करने की कोई फौरी योजना सरकार के पास नहीं है, जबकि किसानों को राहत मिलने की उम्मीदें वर्ष 2022 तक की गई हैं। बिजली, पानी वेयरहाउस, शीतग्रह एवं अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों की किसानों को उपलब्धता के बिना किसानों की आय में दोगुनी बढ़ोत्तरी किस प्रकार से होगी यह एक चिन्तनीय विषय है। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि जब हम वर्ष 2022 में स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ मना रहे होंगे, तब तक हमारे किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी।
हमारे देश के ग्रामीण अंचलों में एक कहावत प्रचलित यह है कि किसान कर्ज में ही जन्म लेता है और कर्ज चुकाते-चुकाते वह मर जाता है। जाहिर सी बात है कि सपने आसमान पर हैं, लेकिन हकीकत में किसान जमीन में धस्ता चला जा रहा है।
भारत की आधे से अधिक आबादी की जीवनरेखा खेती ही है, जो हमारे देश के कुल कार्यशक्ति का 48.9 फीसदी है। सपनों के ‘न्यू इंडिया’ एवं वास्तविक हकीकत के भारत के बीच देश के किसान खड़े है, जो देश के गांवों में की जाने वाली खेती के दम पर निर्भर हैं। हमारे देश की सरकारें यहां के बाजार में दामो में उछाल एवं ठहराव को लेकर अधिक गंभीर दिखाई देती हैं लेकिन फसलों की पैदावार में हुई इजाफे से बाजार में आनजो की कीमतों में हैआई गिरावटों को लेकर अब तक किसी सरकार की कोई ठोस योजना न तो बनी है और नही बना पाई है।

मौजूदा समय मे हमारे देश के कृषि मंत्री यह बात कह रहे हैं कि खेती और किसानों के हितों को ध्यान में रख कर वर्तमान सरकार ने ठोस कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय कृषि बाजार के दम पर फसलों की वाजिब कीमतें मिलने से लेकर फसल बीमा योजनाओं के द्वारा किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया है इसी बात को ध्यान में रखते हुए 14 अप्रैल, 2016 से देश मे राष्ट्रीय कृषि बाजार जो इंटेटनेट पर आधारित पोर्टल का शुभारम्भ किया गया है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि हमारे देश के कितने किसान हिंदी भाषा से लेकर अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अच्छी तरह रखते है विशेष कर उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों के किसानों की हालत इतनी खस्ता हाल है कि उनको अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटियों का इंतजाम करना बहुत भरी पड़ता है। कमोवेश देश के दूसरे राज्यों की भी हाल यही हैं।
जिसके उदाहरण स्वरूप अभी हाल ही में देश के महाराष्ट्र राज्य में फल एवं सब्जियों की उचित मूल्य न मिलने के कारण उग्र किसानों ने सड़क पर उन्हें फेंक कर अपने जानवरों तक के दूध भी सड़कों में बहाया गया, वहीं छत्तीसगढ़ राज्य में टमाटर की बंपर पैदावारी होने के बाद कोई खरीदार नहीं मिलने के कारण महज 50 पैसे प्रति किलोग्राम टमाटरों को बेचने के लिए किसानों को मजबूर होना पड़ा था ऐसे में उन्होंने सैकड़ों टन टमाटर सड़कों पर फेंक दिया था।
दूसरी तरफ देश के तेलंगाना राज्य में वर्ष 2010 में मिर्च का भाव 12,000 रुपए प्रति क्विंटल का दम मिल रहा था, जो वर्ष 2017 -18 में घट कर प्रति क्विंटल 2000 रुपए तक पहुंच गया था जिसका कारण यहां पर उक्त वर्ष में मिर्च की अच्छी फसल होने के कारण ऐसा हुआ था।
जैसा कि वर्ष 2022 तक सरकार किसानों की खेती से होने वाली आमदनी को दोगुना करने की बात कह रही है। इस बात के मध्ये नजर यह कहना पड़ता है कि अगले पांच वर्षों तक खेती किसानी क्षेत्र में यदि 14 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर ली जाए तो शायद ऐसा हो सकता है।
भारत देश मे की जाने वाली परंपरागत खेती को यदि हम कृषि उपकरणों से जोड़ कर किसानों के फायदे की बात करें तो भारत के अड़तीस प्रतिशत बड़े किसान, अठ्ठारह प्रतिशत मझोले किसान एवं केवल एक प्रतिशत सीमांत या छोटे किसान कृषि मशीनरी या ट्रैक्टर का इस्तेमाल कर पाते हैं।
देश में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए बहुत बड़े स्तर पर किसानों को कृषि उपकरण एवं प्रशिक्षण दिए जाने की आवश्यकता है। फसल पर किसानों को लोन देने की प्रत्येक सरकार कोशिश अवश्य रहती है, लेकिन कृषि औजारें महंगे होने के कारण उसको खरीद पाना छोटे या मझोले कास्तकारों के लिए प्रायः दुष्कर होता है।
पिछले दो दशकों से अधिक समय से ऐसा देखने मे आया है कि प्रतिदिन पूरे देश मे 2052 किसान आजीविका की खोज में देश के विभिन्न शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर हैं। किसानों के गाँव छोड़ कर शहरों में पलायन करने की बातें सम्पूर्ण देश में एक विकराल समस्या के रूप उभर कर सामने आने लगी है कियूंकि खेती की लागत में मौजूदा समय अत्याधिक बढ़ोत्तरी हो जाने एवं खड़ी फसलों के नुकसान हो जाने के डर के कारण हमारे देश भारत में अमूमन हर आधा घंटे में एक किसान अपना प्राण त्याग देता है। किसानों की बेहतर स्थिति को ले कर कोई भी राज्य आश्वस्त नजर नहीं आता है।
स्वतंत्र भारत में किसानों के कल्याण के लिए हरित क्रांति ने एक समय संजीवनी की तरह काम किया, जिसने उन दिनों किसानों की जिंदगी को एक मजबूत सहारा दिया। इस के बावजूद देश में कर्जमाफी जैसे लोकलुभावन चुनावी नारों के अलावा खेती, किसानों के लिए कैसे फायदे का व्यापार बने, इसके लिए किसी भी तरह की कोई टिकाऊ नीति या रणनीति नहीं बनाई गयी।