जी के चक्रवर्ती
अचानक कोरोना महामारी के हमारे देश मे फैलने से हम देश की राजधानी की सीमाओं पर बैठे हुये आंदोलनरत किसानों को हमे भूलने पर मजबूर हुए हैं इसलिये आपको याद दिलाते चलें कि किसानों द्वारा शुरू किये गये आंदोलन के शुरूआती दौर में केंद्र सरकार ने किसानों से बातचीत का प्रस्ताव भेज कर उनसे दिल्ली में13 अक्तूबर और फिर 14 नवंबर वर्ष 2020 को बातचीत किया जरूर था, लेकिन केंद्र सरकार और किसानों के मध्य बात न बनने के कारण केंद्र सरकार द्वारा बनाये गये, तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर 26 नवंबर वर्ष 2020 से देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन का दौर शुरू हुआ लेकिन आज इस आंदोलन को 6 महीनों से भी अधिक समय के गुजर जाने के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा किसानो की मांगें नही मानने के कारण आज भी दिल्ली सिमा पर किसान आंदोलनरत हैं।
आज देश मे चल रहे कोरोना महामारी में भी जिस तरह की कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुये देश के किसान आंदोलनरत है वह निश्चित रूप से काबीले तारीफ है। यह अलग बात है की इस दौरान हम सब का ध्यान दिल्ली बॉर्डर पर धरने पर बैठे आंदोलित किसान से विरत अवश्य हुआ है लेकिन आज भी कोरोना महामारी काल में भी अपनी जान और परिवार के लोगों की परवाह किये बिना जिस तरह हजारों की संख्या में किसान दिल्ली वर्डर पर धरने पर डटे हुए हैं।
यह तो कहिये यह किसानों का आंदोलन है नही तो यदि कोई और आंदोलन होता तो न जाने कब का समाप्त हो चुका होता और कोरोना महामारी के दौर शुरू होने से पहले ही सब अपने अपने घरों को चले गये होते। आज फिर से एक बार किसान नेता अपने आंदोलन की दशा दिशा तलाश कर उसे नया रूप देने में लगे हैं, तो दूसरी ओर हमे यह भी कहना पड़ता है कि किसान आज भी अपने स्थान पर यथा स्थिति बनाये हुये हैं और रहें भी क्यों न जिस आंदोलन के कारण उनके अनेकों साथी पहले ही उनका साथ छोड़ कर मृत्यु के आगोश में समा चुकें हैं।
अगर इस आंदोलन को बिना कृषि कानून वापसी कराए ही आंदोलन बीच मे ही रोका या समाप्त कर दिये जाने से उन बलिदानी किसानों की आत्मा को शांती नही मिलेगी क्योंकि जिस कारण से यह आंदोलन को खड़ा किया गया था उसका उद्देश्य अभी भी पूरा नही हुआ है और दूसरी बात यह है कि किसान आंदोलन दिगभ्रमित हो कर या धैर्य खो कर इतने दिनों के पश्चात समाप्त कर दिये जाने वाली बात कहीं से भी औचितपुर्ण नही कहला सकता है।







