सुमन सिंह
समझा जाता है कि डच ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा सत्रहवीं सदी में एम्स्टर्डम लाए गए मुगल शैली के चित्रों से प्रभाव ग्रहण कर इस कलाकार ने इन रेखांकनों की रचना की। वैसे स्वयं मेरे लिए भी यह जानकारी नई ही थी, दरअसल एक कार्यक्रम के सिलसिले में ग्वालियर में किरण सरना जी से मुलाकात हो पायी। डॉ.किरन सरना जी वनस्थली विद्यापीठ में कला अध्यापक हैं, उनके सान्निध्य में यूं तो कई महत्वपूर्ण जानकारियों से अवगत हो पाया, खासकर राजस्थान के भित्तिचित्रण परंपरा और तकनीक से संबंधित। विदित हो कि किरण जी ने भित्तिचित्रण विषय पर ‘भारतीय भित्तिचित्रण परंपरा का संवाहक केंद्र: वनस्थली’ नामक पुस्तक की रचना भी की है।
बहरहाल बात करें रेम्ब्रांट के भारत प्रेम की तो जानकारी मिलती है कि इस कलाकार के पास भारतीय वस्तुओं का एक अच्छा खासा संग्रह भी था जिसमें भारतीय स्त्री-पुरुष की वेषभूषा वाले वस्त्र भी हैं। अब यह तो शोध का विषय है कि इस महान डच कलाकार को भारतीय लघुचित्रण परंपरा की अनुकृति करना क्यों भाया। किन्तु यह हमारे लिए सोचने की बात है कि युरोपीय प्रभाव में आकर हमने जिस पारंपरिक चित्रण शैली को ठुकरा दिया, उसे रेम्ब्रांट ने क्यों अपनाया। क्योंकि यह भी उल्लेख मिलता है कि रेम्ब्रांट द्वारा बनाये गए बाद के चित्रों के संयोजन में यह प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगत है।