लखनऊ। दिवाली खत्म होने के बाद देश का एक और खूबसूरत त्यौहार आज से शुरू हो रहा है। सूर्य उपासना के चार दिवसीय छठ पर्व की शुरुआत मंगलवार को नहाय-खाय संग हो गयी। महापर्व को लेकर शहर में उत्साह का माहौल है। घरों में चहल-पहल देखी जा रही है। बाजारों में रौनक छाई है। महिलाएं खरीदारी में जुटी हैं। गोमती के घाटों पर रौनक बढ़ गई है।
हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है। छठ के दौरान सूर्य देव की पूजा-उपासना की जाती है। इस पर्व की शुरूआत नहाय खाय से होती है। नहाय खाय कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इसके अगले दिन खरना मनाया जाता है। वहीं, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। जबकि, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। उगते सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पूजा का समापन होता है।
व्रती खरना पूजा के बाद लगातर 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं। छठ पूजा कैलेंडर छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर नहाय खाय (मंगलवार) छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर खरना (बुधवार) छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर संध्या अर्घ्य (गुरुवार) छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर उषा अर्घ्य (शुक्रवार) छठ पूजा शुभ मुहूर्त वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 07 नवंबर को देर रात 12 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और 08 नवंबर को देर रात 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी। अत 07 नवंबर को संध्याकाल का अर्ध्य दिया जाएगा। इसके अगले दिन यानी 08 नवंबर को सुबह का अर्घ्य दिया जाएगा।
कब है नहाय खाय
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय खाय होता है।
इस दिन व्रती गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान के बाद सूर्य देव की पूजा करते हैं। इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। भोजन में चावल दाल और लौकी की सब्जी ग्रहण करती हैं। पंचांग गणना के अनुसार, 05 नवंबर को नहाय खाय है। नहाय खाय का महत्व नहाय- खाय से छठ पूजा की शुरूआत होती है। नहाय खाय जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि इस दिन स्नान करके भोजन करने का विधान है। नहाय खाय के दिन व्रत करने वाली महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं । यहि नदी में नहाना संभव न हो ते घर पर भी नहा सकते हैं। इसके बाद व्रती महिलाएं भात, चना दाल और लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं।
कब है खरना
लोक आस्था महापर्व के दूसरे दिन यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को खरना मनाया जाता है। इस दिन व्रती दिन भर निर्जला उपवास रखती हैं। संध्याकाल में स्नान-ध्यान कर छठी मैया के निमित्त पूजा करती हैं। पूजा के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करती हैं। इसके बाद निर्जला व्रत की शुरूआत होती है। इस वर्ष 06 नवंबर को खरना है। कब दिया जाएगा अर्घ्य कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी 07 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानी 08 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य जाएगा।
छठ पूजा का पर्व सूर्य देव को धन्यवाद देने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। लोग इस दौरान सूर्य देव की बहन छठी मईया की भी पूजा करते हैं। वहीं, इस पावन पर्व को लेकर कई कथाएं भी प्रचलित हैं, जिनमें से एक का जिक्र आज हम करेंगे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब कुष्ट रोग से पीड़ित थे, जिसके चलते मुरलीधर ने उन्हें सूर्य आराधना की सलाह दी। कालांतर में साम्ब ने सूर्य देव की विधिवत व सच्चे भाव से पूजा की। भगवान सूर्य की उपासना के फलस्वरूप साम्ब को कुष्ट रोग से मुक्ति मिल गई। इसके बाद उन्होंने 12 सूर्य मंदिरों का निर्माण करवाया था। इनमें सबसे प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर है, जो ओडिशा में है। इसके अलावा, एक मंदिर बिहार के औरंगाबाद में है।
इस मंदिर को देवार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चिरकाल में जब देवताओं और असुरों के मध्य युद्ध हुआ, तो इस युद्ध में देवताओं को हार का सामना करना पड़ा। उस समय देव माता अदिति ने इसी स्थान पर (देवार्क सूर्य मंदिर) पर संतान प्राप्ति हेतु छठी मैया की कठिन तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर छठी मईया ने अदिति को तेजस्वी पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। कालांतर में छठी मईया के आशीर्वाद से आदित्य भगवान का अवतार हुआ। आदित्य भगवान ने देवताओं का प्रतिनिधित्व कर देवताओं को असुरों पर विजय दिलाई। तभी से पुत्र प्राप्ति, संतान व परिवार की सुरक्षा हेतु छठ पूजा की जाती है, जिसके शुभ फल से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और जीवन सुखमय रहता है।