जनता, व्यापारी, ग्रामीण कर रहे हैं आन्दोलन और सरकार चुपचाप देख रही तमाशा
लखनऊ, 11 सितम्बर 2019: उपभोक्ता परिषद का कहना है कि प्रदेश के घरेलू व आम विद्युत उपभोक्ताओं की दरों में औसत 12 प्रतिशत की बिजली दर वृद्धि कल से जहां पूरे प्रदेश में लागू हो जायेगी। वहीं उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिये आयोग में उपभोक्ता परिषद द्वारा दाखिल पुनर्विचार प्रत्यावेदन और ऊर्जा मंत्री के माध्यम से सरकार को सौंपे ज्ञापन पर जिस प्रकार से सभी चुप्पी साधे हैं। उससे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश के घरेलू उपभोक्ता ग्रामीण किसान व आम जनता से किसी का लेना देना नहीं है, जो अपने आप में बड़ा सवाल है।
उन्होंने कहा कि पहली बार ऐसा हो रहा है कि ग्रामीण अनमीटर्ड विद्युत उपभोक्ताओं की दरों में 25 प्रतिशत की वृद्धि किसान की दरों में लगभग 14 प्रतिशत की वृद्धि शहरी घरेलू की दरों में 12 से 15 प्रतिशत की वृद्धि और अन्य श्रेणी के विद्युत उपभोक्ताओं की दरों में व्यापक वृद्धि के चलते जहां कल से उपभोक्ताओं के लिये बहुत भारी पड़ने वाला है। वहीं ऊर्जा क्षेत्र के इतिहास के पन्नों में एक काला अध्याय जुड़ गया कि जब टैरिफ आदेश में यह लिखा गया है कि उदय व ट्रूअप के अन्तर्गत प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का प्रदेश की बिजली कम्पनियों पर वर्ष 2017-18 तक 13337 करोड़ निकल रहा है। इसके बावजूद भी सरकार व पावर कार्पोरेशन के दबाव में उपभोक्ता की दरों में आयोग ने व्यापक बढ़ोत्तरी की है।
उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा मामला यहीं तक सीमित नहीं रहा, बढ़ोत्तरी करते वक्त आयोग ने यह भी नहीं देखा कि जहां बिजली कम्पनियों के अनुमोदित अतिरिक्त राजस्व जो बिजली दर बढ़ोत्तरी से प्राप्त होगा, वह 3593 करोड़ होता है लेकिन उससे भी अधिक रू0 3872 करोड़ राजस्व के एवज में टैरिफ वृद्धि कर दी। यानि कि ऊर्जा इतिहास में यह भी पहली बार हुआ कि बिजली कम्पनियों को वर्ष 2019-20 के लिये जो अनुमानित राजस्व अनुमोदित किया गया वह रू0 279 करोड़ अधिक है। यानि कि बिना मांग बढ़ोत्तरी की बरसात। जो आयोग के निर्णय पर हमेशा प्रश्नचिन्ह उठायेगा।
उन्होंने कहा कि पूरे प्रदेश में किसान ग्रामीण व्यापारी व आम जनमानस आन्दोलित है लेकिन सरकार चुपचाप तमाशा देख रही है। आयोग भी पावर कार्पोरेशन की हां में हां मिला रहा है। जो यह सिद्ध करता है कि पावर कार्पोरेशन की अक्षमता का खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। कभी भी ऐसा नहीं हुआ जब आम जनसुनवाई में उपभोक्ताओं ने तर्क आधारित बातें रखी और सबूत पेश किये। इसके बावजूद भी आयोग ने अपने तरीके से ऐसा निर्णय ले लिया जो उपभोक्ताओं के लिये कष्टकारी साबित होगा। उपभोक्ता परिषद चुप बैठने वाला नहीं है। जल्द ही वह अपने तरीके से संवैधानिक लड़ाई और तेज करेगा।