बदलते शहरीकरण में सबकुछ बदला लेकिन उस दौर की बात ही कुछ और थी बेहद यादगार दिन थे वह!
पहले जब गांव में राईस मिलें या आटा चक्कियां नही थीं तो घर-घर जांता,चकरी, ओखल-मूसल तथा ढेँका हुआ करते थे। घर की औरतें 2 बजे रात से ही सुबह बनाने के लिए चावल कूटना और आटा पीसना शुरू कर देती थीं।इन कार्यों को करने के लिए घर की औरतें बाकायदा कुटाई, पिसाई का गीत बनाये हुए थीं और पूरे लय से गाती थीं।
आंटा चक्की:
पहले के ज़माने में जब आंटा चक्की नहीं होती थी तो घर में ही पत्थर की चक्की से आंटा पीसा जाता था। इसी पर चावल व लड्डू बनाने के लिए बाजरा भी पीस लिया जाता था। इससे घर की महिलाओं का शारीरिक स्वास्थ भी अच्छा बना रहता था और पड़ोस की महिलाये भी आपस में बैठकर गावं चर्चा करती थी। आजकल तो मोबाइल पर ही हालचाल की इतिश्री हो जाती है!
जरा बूझिये और बताइएं क्या है यह………….?
कुंए से पानी भरने का प्रचलन लगभग समाप्त ही हो गया। इस यंत्र का निर्माण व उपयोग भी।


संकलन: अरुण कुमार तिवारी