भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य का रिश्ता जन्म भर का होता है लेकिन रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण यह दिन विशेषताएँ लिये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
रक्षाबंधन त्यौहार के मनाने के इतिहास में झांके तो इस त्यौहार की मनाने की शुरुआत आज से लगभग 6 हजार साल पहले मानी जाती है। इसके कई तरह के साक्ष्य इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। रक्षाबंधन मनाने की पहली शुरुआत मुगल कालीन के संस्कृति में साक्ष्य के रूप में रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ के मध्य देखने को मिलता हैं। मध्यकालीन युग में भारत के राजपूत व मुस्लिमों के बीच संग्राम और संघर्ष का दौर चलता रहा।

रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी। हुमायूँ ने उनकी मर्यादा को समझते हुए उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
यह घटना तो मुगलकालीन है लेकिन प्राचीन धर्म-ग्रन्थ हिंदू पुराण कथाओं के अनुसार वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग उल्लिखित मिलता है। इस कथानुसार राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
विष्णु जी वामन ब्राह्मण का भेष बनाकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए भिक्षा स्वरूप वामन ने उनसे मात्र तीन पग भूमि की देने की मांग उनके समक्ष रखी। राजा बलि के गुरु वामन रूप में भगवान विष्णु की चाल को समझ गये थे तो उन्होंने पूरे तीन पग भूमि वामन को न देने की बात राजा बलि से कहा लेकिन गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास पहुंच कर उन्हें रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। उस दिन से प्रतिवर्ष पूर्णिमा तिथि के अनुसार रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा।
हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता आज के परिपेक्ष्य में कहीं और अधिक है। राखी का बांधना केवल भाई-बहन के बीच के रिश्ता मात्र नहीं रह गया है बल्कि राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
- प्रस्तुति: जी के चक्रवर्ती








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