अलका शुक्ला
नमो भगवत्यै दशपाप हरायै गंगायै नारयण्यै रेवत्यै,
शक्तिवायै अम़तायै विश्वस्वरूपिण्यै नंदिन्यै ते नमो नमः।
विश्व की सबसे पवित्र नदी गंगा! जिसकी पवित्रता के आगे विज्ञान भी नतमस्तक है। मानव के कई रोगों को हरने के साथ एक बड़े भूभाग को सिंचित कर तथा अपने कई निर्मल गुणों के लिये जाने जानी वाली यह नदी, सनातन धर्म के बीच सनातन काल से ही माँ का दर्जा पाये हुए है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पूर्वजों के क्रमशः कठिन तप के बाद ही भागीरथ जी को स्वर्ग से गंगा जी को धरा में लाने का श्रेय मिला। यह दिन ज्येष्ठ शुक्ल दशमी था और तेरहवाँ नक्षत्र, हस्त नक्षत्र था। पुराणों के अनुसार जिस दिन गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था उस दिन दस शुभ योग बने हुए थे और इनके कारण मनुष्य के दस पापों का नाश होता है। इसलिए इस दिन को दशहरा कहा जाता है। गंगा दशहरा के दिन ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर योग, आनंद योग, व्यतिपात योग, कन्या का चंद्र, वृषभ का सूर्य इन दस योगों में मनुष्य गंगा स्नान करके पापों से छूट जाता है।
इस वर्ष ऐसा संयोग 16 जून 2024 को बन रहा है। विजयदशमी वाले दशहरे में रावण रूपी दस बुराईयों के अंत करने का प्रेरणादायक क्षण होता है। जिसे हम त्योहार के रूप में मना कर, बुराईयों के त्याग की बात सीखते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ, शायद ऐसे ही कुछ त्योहारों से प्रेरित होकर प्रति वर्ष विशेष दिवसों का क्रियान्वयन करता है। जिसे सनातन धर्म के साथ अन्य धर्मों में भी कुछ विशेष पलों को प्रतिवर्ष त्योहारों के रूप में मनाया जाता है।
इस भूलोक के लिये निर्मल पावन गंगा नदी देवलोक का महाप्रसाद ही है। हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु से ठीक पूर्व गंगा जल की कुछ बूंदें मुंह में डालना मोक्ष का पर्याय माना जाता है। जब पतित पावनी गंगा माँ का जल निर्मल था, मानव जनित प्रदूषण का अस्तित्व न था, तब कई जीवाणुजनित रोगों को ठीक करने का इसमें अद्भूत गुण भी था। और गंगोत्री के जल में आज भी है। इन्हीं गुणों के चलते ऋषि-मुनियों ने इसके जल को अमृत का दर्जा दिया। इसके जल में स्नान करने से जीवन के सभी संतापों से मुक्ति मिलती है।
सरकारी प्रयास के साथ इस पवित्र नदी को स्वच्छ बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सब की भी है। किसी भी प्रकार से इसे दूषित न करने का संकल्प लेना होगा। अन्य नदियों की स्वच्छता भी बनाये रखने के लिये हमें जमीन पर कार्य करने होंगे। क्योंकि नदियाँ जीवनदायनी होती हैं। नदियों के जल को स्वच्छ रखने के लिये कई अन्य धर्मों में भी कहा गया है। विश्वव्यापी कोरोना जैसे महामारी के इस दौर में प्रकृति के साफ-सुथरे होने के साथ कई नदियों का जल भी बहुत स्वच्छ हो गया है। नदियों में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा है। इससे यह जाहिर होता है कि यदि सरकारें दृढ़ निश्चयी हों तो नदियों का बहुत आसानी से प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है। कुछ ज्यादा पैसों के लिये बालू माफिया भी नदियों के अस्तित्व को मिटाने पर तुले हुए हैं। महामारी का यह दौर यह बता रहा है कि यदि प्रकृति का ही विनाश करते रहेंगे तो भला धरा पर जीवन कैसे होगा? यदि प्रकृति अपने को रिचार्ज करने उतरी तो मानव सभ्यता का ही लोप हो सकता है। प्रकृति का दोहन अंधाधुंध न हो कर संतुलित होना चाहिए। इसके लिये सरकारों को ठोस नियम लागू करने चाहिए।
गंगा दशहरा तन के साथ-साथ मन की शुद्धि का पर्व भी है, इसलिए इस दिन गंगाजी में स्नान करते हुए अपनी पूर्व में की हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए और भविष्य में कोई भी बुरा कार्य नहीं करने का संकल्प लेना चाहिए। जिन क्षेत्रों में अन्य नदियाँ बह रही हैं व गंगा नदी दूर है यहाँ तक आने में कोई असमर्थ है तो अपने आसपास की बहने वाली नदियों में स्नान कर अपने दस पापों को दूर करने के लिये क्षमा गंगा माँ से अवश्य माँगनी चाहिए।
वैज्ञानिक कारण:
गंगा दशहरा का पर्व भारत में तब आता है जब सूर्य दक्षिणायन होने को होता है अर्थात कर्क संक्राति के नजदीक का समय होता है। गंगा स्नान का महत्व तब भी है जब सूर्य उत्तरायण होने को होता है अर्थात मकर संक्राति के पास का समय।
विषुवत रेखा से साढ़े तेईस डिग्री ऊपर की ओर कर्क रेखा तथा नीचे की ओर मकर रेखा पर सूर्य के चमकने का परिवर्तन ही संक्रांति है। इस अध्यात्म प्रधान देश के ऋषि-मुनियों को बहुत पहले से ही विज्ञान का विस्तृत ज्ञान जरूर था। इस बात को समय-समय पर विश्व भी स्वीकार करता है। दोनों संक्रांतियों के पास गंगा में स्नान के बहुत से वैज्ञानिक कारण भी हो सकते हैं जो हमें परोक्ष रूप में प्राप्त होते हैं। विज्ञान भी आज यह मानता है कि नदी में स्नान करते वक्त सूर्य को अर्घ्य देने पर शरीर में बहुत से सकारात्मक प्रभाव देखे जाते हैं। सूर्य से ही हमारा सौरमंडल संचालित है और सूर्य के दक्षिणायन और उत्तरायण के पास का वक्त जरूर कुछ बहुत सी सकारात्मक ऊर्जा देता है। जल में स्नान करते वक्त अर्घ्य देने का वैज्ञानिक कारण ही है कि सूर्य का प्रकाश बहते पावन गंगा जल से अपवर्तित होकर ही शरीर पर पड़े, या और भी अन्य नदियों के बहते जल के साथ भी इसके प्रभाव को देखा जा सकता है। इस पर प्रभावी शोध की कमी सी है क्योंकि यह बहुत समय साध्य भी हो सकता है। इन पवित्र दिनों को एक बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के जैसे ही गंगा दशहरा के दिन भी गंगा के तट पर बड़े मेलों का आयोजन होता है। गंगा अपने पथ पर चलते हुए जहां सागर में मिलती है उस स्थान को गंगा सागर कहा जाता है और गंगा सागर कर्क रेखा के बहुत ही नजदीक है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु डुबकी लगाने पहुंचते हैं।
कैसे करें गंगा दशमी का पूजन:
गंगा दशमी के दिन गंगा में स्नान करने का महत्व है, लेकिन इस बार यह संभव नहीं हो पाए तो अपने घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें। इस दौरान गंगा मैया का मानसिक स्मरण करें। इसके बाद शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर मां गंगा की मूर्ति का पूजन करें। गंगा स्रोत को पढ़ने के साथ ही भगवान विष्णू, शिव जी, राजा भगीरथ, हिमालय का पूजन भी किया जाता है। इस दिन गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करने से समस्त प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं।
गंगा दशहरा का महत्व:
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गंगा मां की आराधना करने से व्यक्ति को दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। गंगा दशहरा के दिन भक्तों को मां गंगा की पूजा-अर्चना के साथ दान-पुण्य भी करना चाहिए। गंगा दशहरा के दिन सत्तू, मटका, सूती वस्त्र और हाथ का पंखा दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है।
इस मंत्र से करें मां गंगा की आराधना:
नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:
अर्थ – हे भगवती, दस पाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिव, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी, नंदनी को को मेरा नमन।