कोरोना संकट काल में इस समय जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो बुरी तरह से प्रभावित नहीं हो रहा हो। महामारी ने सभी को मुंह छुपाने के लिए विवश कर दिया है और लोग उसी हिसाब से जी भी रहे हैं। ऐसी ही एक खबर बताती है कि कोरोना महामारी ने भारत के करोड़ों लोगों को गरीबी में धकेल दिया है। कोविड 19 को रोकने के लिए लगाए गए लॉक डाउन से लाखों श्रमिकों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा है।
मालूम हो कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद गरीब वर्ग की हालत और खराब होने की आशंका जताई जा रही है। यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कोविड१९ के बढ़ते मामलों के बीच लागू लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों के चलते बेरोजगारी दर चार महीने के उच्च स्तर आठ फीसदी पर पहुंच गई।
कोरोना की दूसरी लहर के बाद तमाम रेटिंग एजेंसियों ने भारत के विकास को लेकर जारी अपने अपने अनुमान को घटा दिया है। इस तरह यह बात स्पष्ट होती है कि तमाम तरह के एहतियाती उपाय अपनाए जाने के बावजूद कोरोना का असर भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न पक्षों पर पड़ा है। इसमें श्रमिकों की बेरोजगारी का मामला महत्वपूर्ण है। यह मुद्दा पिछले साल भी सामने आया था और इस बार भी सामने आ रहा है।
सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि श्रमिकों का कम से कम नुकसान हो। यह सही है कि इस समय कोरोना के कारण लॉकडाउन की जरूरत पड़ रही है तो ऐसे में यह बात भी देखनी होगी कि श्रमिकों की किस प्रकार मदद की जा सकती है। इसके लिए सरकार आर्थिक पैकेज की तैयारी भी करनी होगी ताकि इन श्रमिकों के नुकसान को सीमित किया जा सके। इसके अलावा भोजनादि की व्यवस्था करना भी आवश्यक होगा।