भारत में जांच एजेंसियों पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। खासकर विपक्ष इस मामले में तमाम आरोप लगाता रहा है। इनमें एजेंसियों पर अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप प्रमुख है। हालांकि इस बारे में सरकार का यही कहना रहा है कि जांच एजेंसियों पर किसी तरह का दबाव नहीं है और वे स्वतंत्रता के साथ काम कर रही हैं लेकिन इस बारे में विपक्ष के आरोप ज्यों के त्यों हैं। अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है।
विपक्ष ने अदालत से कहा है कि गिरफ्तारी और हिरासत को लेकर केंद्रीय जांच एजेंसियों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाएं। अब चौदह विपक्षी दल इस मामले को लेकर एकजुट हुए हैं तो सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली है। इस तरह अब विपक्षी दल जो बाहर बयान दिया करते थे कि उन्हें सबक सिखाने के इरादे से सरकार केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है, वे अब सर्वोच्च न्यायालय के संवैधानिक दिशा निर्देश का इंतजार करेंगे।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले कुछ सालों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए जांच एजेंसियां काफी सक्रिय नजर आने लगी हैं जिसके चलते लगातार छापे पड़ रहे हैं और भ्रष्टाचार के मामलों में जांचें तेज हो गई हैं। मगर खुद जांच एजेंसियों की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक छापों और कार्रवाइयों की तुलना में दोषियों की पहचान बहुत कम हो पाई है। बाकी में लोगों को बेमतलब परेशानी और बदनामी उठानी पड़ी है। ऐसे में विपक्षी दलों की नाराजगी निराधार नहीं कही जा सकती।
फिर यह भी स्पष्ट है कि केवल विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता है। उन नेताओं के मामलों में जांचें ठंडे बस्ते में डाल दी गई हैं। जो पहले विपक्ष में थे मगर फिर सत्तापक्ष में आ गए। ताजा याचिका विशेष रूप से जांच एजेंसियों के कामकाज के तरीके को लेकर दायर की गई है जिसमें वे मनमाने ढंग से गिरफ्तारियां करतीं, हिरासत में लेतीं और फिर लोगों को बेवजह प्रताड़ित करती हैं। ऐसे में कोर्ट के फैसले का इंतजार रहेगा।