बरसात में ख़ास बात: अनुराग प्रकाश
बरसात के मौसम में तराई के जंगलो के दो मुख्य वन उत्पाद हैं , कटरूआ और धरती के फूल जो जंगल में पाए जाते हैं । जिनको खोजने के लिए ग्रामीण जंगल के अंदर चोरी छिपे जाते हैं।
कुछ ग्रामीण चोरी छुपे जंगल के काफी अंदर तक घुसकर अपनी जान जोखिम मे डालकर इसे लाकर बाजार मे ऊंची कीमतों पर बेचते हैं। जिन जंगलो में बाघ , तेंदुआ, भालू व हाथी विचरण करते हो उन जंगलो में पैदल घुस कर लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर जंगल से लाकर इन्हें बेचते है।
ये उत्पाद हिरनों , भालुओ और जंगली सुअरो का भोजन है। धरती के फूल तो दीमकों की बाम्बी में ही निकलते हैं। जब लोग इन्हें निकालने जाते हैं तो वन्य जीवों से टकराव की संभावना बनी रहती है किंतु बाजार में मंहगा बिकने के कारण ग्रामीण खतरा उठाकर भी इसे निकालने जंगल में घुसते है।
लेकिन अच्छी बात यह है कि ये उत्पाद बहुत कम समय के लिए पैदा होते हैं। हर बार जब मै बरसात मे ग्रामीणो से मिलता हू तो उन्हें समझता हूँ कि अपने तथा अपने परिवार के बारे में सोचते हुए ये काम कभी मत करना इसमे हर वक़्त जान का खतरा है और ये अवैध काम भी है पकड़ने जाने पर जेल व जुर्माना तय है।
अपने नेचर स्कूल में बच्चों को छोटी छोटी कविताओ व नाटको के जरिये इन बातों को बताया जाता है जिसे वो अपने घरों में शेयर करते है। मेरे एक टीम मेंबर ने इन पर ये चार लाइन की सुंदर अर्थपूर्ण कविता भी लिखी है।
“चंद कटरुओ की खातिर जंगल मे जाना ठीक नहीं।
बाम्बी से धरती के फूल को खोद के लाना ठीक नहीं।
ये जीवो का चारा है ये चारा उनको चरने दो।
जंगल पर जीवों हक़ है उनका हक ही रहने दो।”