जावेद ने जैसे ही अपनी बीवी रह चुकी शबनम को होटल में देखा, उसकी आंखें चौड़ी हो गईं। वह चौंक गया, यह वही औरत थी जो कभी उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा हुआ करती थी। होटल में बाकी लोग अपने खाने में व्यस्त थे, लेकिन जावेद की निगाहें अब शबनम पर टिकी थीं। तलाक के बाद वे दोनों भले ही कानूनी रूप से अजनबी हो गए थे, लेकिन पांच सालों का रिश्ता, एक ही छत के नीचे बिताए गए दिन और एक ही बिस्तर पर सोई हुई रातें इतनी जल्दी भुला देना आसान नहीं होता।
शबनम अकेले ही अपनी टेबल पर खाना खा रही थी, जबकि जावेद भी दूसरी टेबल पर बैठा था। अचानक शबनम को कुछ याद आया, उसने चम्मच रखी और उठकर जावेद की ओर बढ़ी। उसने बिना किसी हिचकिचाहट के पूछा, “आपने खाने से पहले इंसुलिन का इंजेक्शन लिया है?”
जावेद उसकी आवाज सुनकर एक पल को ठहर गया। उसने धीरे से जवाब दिया, “हाँ, ले लिया है। लेकिन हैरानी की बात है कि तलाक के पांच साल बाद भी तुम्हें मेरी यह बात याद है।”
शबनम हल्की मुस्कान के साथ बोली, “मैं एक औरत हूं, जावेद।”
जावेद ने गहरी सांस ली और धीरे से कहा, “तुम्हारे जाने के बाद किसी ने भी इस तरह मेरा ख्याल नहीं रखा।”
शबनम ने उसकी आंखों में देखा और सवाल किया, “अगर ऐसा था, तो तुमने मुझे तलाक क्यों दिया?”
जावेद ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया, “यह बात तुम जानती हो… हम पांच साल साथ रहे, लेकिन तुम माँ नहीं बन सकी। बच्चा तो हर किसी को चाहिए होता है, शबनम।”
शबनम की आंखें भर आईं। उसने तल्ख लहजे में कहा, “अगर तुम खुद बच्चा पैदा करने के काबिल होते, तो क्या मैं तुम्हें संतान नहीं देती?” फिर बिना कुछ और कहे, वह वापस अपनी टेबल की ओर लौट गई।
जब वे दोनों होटल से बाहर निकले, तो फिर से आमना-सामना हो गया। जावेद ने नरमी से कहा, “चलो, कुछ दूर साथ चलते हैं।”
शबनम ने उसकी ओर देखा और तंज कसा, “तुमने जिंदगीभर का साथ निभाने का वादा किया था, लेकिन तलाक देकर मुझे अकेला छोड़ दिया। अब कुछ कदम साथ चलने से क्या बदल जाएगा?”
जावेद ने सिर झुका लिया और पूछा, “तुम यहां कैसे आई?”
शबनम ने गहरी सांस लेते हुए जवाब दिया, “जब तुमने मुझे तलाक दिया था, तो मैं अपने माँ-बाप के पास लौट गई। लेकिन वे इस सदमे को सहन नहीं कर सके और छह महीने के अंदर ही दोनों चल बसे। मैं उनकी कब्र पर भी नहीं जा सकी, क्योंकि औरतों का कब्रिस्तान में जाना मना था।”
वह रुकी और फिर आगे कहा, “इसके बाद मैं अपने भाई के घर चली गई। भाई कुछ नहीं कहता था, लेकिन उसकी पत्नी मुझसे चिढ़ने लगी थी। वह हर रोज मेरे भाई से कहती कि मेरी दूसरी शादी करा दो, वरना मैं किसी के साथ भाग जाऊंगी। पर तुम्हें शायद पता नहीं कि तलाकशुदा औरत से कोई शादी नहीं करता। सबको कुंवारी लड़की और कुंआरा बदन चाहिए।”
जावेद चुपचाप सुन रहा था। शबनम ने अपनी तकलीफ बयान करते हुए कहा, “आखिरकार, मेरे भाई ने मेरी शादी एक बूढ़े आदमी से करवा दी। वह दिनभर बिस्तर पर पड़ा रहता और मैं उसकी नर्स बनकर उसकी देखभाल करती रहती। खाना खिलाना, दवा देना, बाथरूम ले जाना, यही मेरी ड्यूटी थी।”
फिर उसने कड़वाहट से कहा, “तुमने दूसरी शादी कर ली, तुम्हें फिर से एक कुंवारी लड़की मिल गई। लेकिन तुमने मेरी जिंदगी को आग में झोंक दिया। दूसरी शादी के बाद भी मैं जल रही हूँ। तुमने तलाक देकर मेरे जिस्म का सारा रस निचोड़ लिया, और जब मैं माँ नहीं बन सकी, तो मुझे छोड़ दिया। एक औरत की जिंदगी क्या होती है, इसका तुम्हें जरा भी अंदाजा नहीं।”
उसकी आंखों में आंसू थे। वह पास रखी पत्थर की कुर्सी पर बैठ गई। जावेद एक बुत की तरह खड़ा था, फिर भी उसने वही सवाल दोहराया, “तुम इस शहर में कैसे आई?”
शबनम ने बताया, “मेरा बूढ़ा पति बहुत बीमार है, उसे अस्पताल में भर्ती कराया है।”
जावेद ने हैरानी से पूछा, “उसकी उम्र क्या है?”
“सत्तर साल से भी ज्यादा,” शबनम ने ठंडी आवाज में जवाब दिया।
जावेद की आंखों में अफसोस झलकने लगा।
दूसरे दिन भी वह शाम को उसी होटल के सामने खड़ा रहा, शायद शबनम के इंतजार में। वह आई और बिना कुछ कहे अंदर चली गई। जावेद उसके पीछे-पीछे होटल में गया और उसके पास बैठ गया। उन्होंने औपचारिक बातचीत शुरू की।
“तुम्हारी माँ कैसी हैं?” शबनम ने पूछा।
“ठीक हैं, बस अब बहुत बूढ़ी हो चुकी हैं,” जावेद ने जवाब दिया।
शबनम हंसी और बोली, “मेरी माँ बनने की काबिलियत नहीं थी, तो उन्होंने मेरा तलाक करवा दिया। लेकिन तुम्हारी बहन जरीना को सात साल से बच्चा नहीं हुआ, फिर भी कोई उसे कुछ नहीं कहता, क्योंकि वह उनकी अपनी बेटी है, बहू नहीं।”
जावेद के पास इसका कोई जवाब नहीं था। उसने नजरें झुका लीं।
कुछ देर बाद, उसने कहा, “क्या मेरी माँ से बात करोगी?”
शबनम ने सहमति जताई। जावेद ने फोन लगाया और कहा, “माँ, शबनम आपसे बात करना चाहती है।”
उधर से आवाज आई, “तोबा तोबा, तुम अपनी तलाकशुदा औरत के साथ हो? यह हमारे मजहब के खिलाफ है। मैं उससे बात नहीं करूंगी।”
शबनम ने मुस्कुराकर कहा, “मुझे उनका नंबर दो, मैं खुद बात करूंगी।”
जावेद ने नंबर दिया और शबनम ने फोन मिलाया। उधर से आवाज आई, “कौन?”
शबनम ने ठंडे स्वर में कहा, “मैं आपकी बहू शबनम। आपने मुझे तलाक दिलवा दिया था, जिससे मेरे माता-पिता सदमे में मर गए। अब मैं आपके बेटे को ऐसा तलाक दूंगी कि वह भी आपकी जिंदगी से चला जाएगा।”
फोन कट गया। जावेद का चेहरा सन्न रह गया।
कुछ दिनों तक वे अलग-अलग टेबलों पर बैठकर होटल में आते रहे, लेकिन अब बातों में कड़वाहट आ गई थी।
एक दिन, शबनम जल्दी आई और बाहर पत्थर की बनी कुर्सी पर बैठकर जावेद का इंतजार करने लगी। जब जावेद बाहर आया, तो उसने उसे आवाज दी, “आओ, कहीं दूर पहाड़ों में घूमकर आते हैं। मेरा बूढ़ा पति अस्पताल से डिस्चार्ज हो गया है। मैं अब चली जाऊंगी, और फिर हम कभी नहीं मिलेंगे।”
वे टाइगर हिल की ओर चल पड़े। वहाँ पहाड़ की खतरनाक ढलान थी। शबनम ने कहा, “तुम्हारी तस्वीर लेना चाहती हूँ, ताकि तुम्हारी आखिरी याद मेरे पास रहे। इस ढलान पर खड़े हो जाओ, ताकि पीछे पहाड़ों का नज़ारा अच्छा दिखे।”
जावेद मुस्कराया और खड़ा हो गया।
शबनम उसके पास आई, जैसे सेल्फी लेने वाली हो। तभी उसने जावेद को जोर से धक्का दिया और चिल्लाई, “तलाक… तलाक… तलाक!”
जावेद ढलान से लुढ़कता हुआ नीचे नदी में समा गया।
तीन शब्दों ने एक रिश्ता खत्म किया था, और अब तीन शब्दों ने एक जिंदगी खत्म कर दी।
शबनम के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था। जो दर्द उसने झेला था, वही दर्द अब जावेद की किस्मत बन चुका था।
नदी की लहरें नीचे उफान मार रही थीं, लेकिन जावेद की चीखें कहीं गुम हो चुकी थीं… ठीक वैसे ही, जैसे तलाक के बाद शबनम की जिंदगी गुम हो गई थी।
“इंसाफ कभी-कभी अदालतों में नहीं, बल्कि खुद जिंदगी में ही मिलता है।” शबनम ने एक गहरी सांस ली, अपनी साड़ी ठीक की, और पहाड़ों की ऊंचाई से दूर, हमेशा के लिए अपनी नई जिंदगी की ओर चल पड़ी… .
- प्रो सुधांशु