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    Home»विरोध- प्रदर्शन

    लखनऊ: टीईटी अनिवार्यता के सुप्रीम कोर्ट आदेश के खिलाफ प्राथमिक शिक्षकों का आक्रोश, प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा

    ShagunBy ShagunSeptember 16, 2025 विरोध- प्रदर्शन No Comments4 Mins Read
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    अपर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा, पीएम के नाम संदेश

    लखनऊ, 16 सितंबर 2025: उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ (यूपीपीटीएस) के आह्वान पर आज जनपद लखनऊ में हजारों शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने 1 सितंबर 2025 को एक ऐतिहासिक फैसले में पूरे देश के गैर-माइनॉरिटी स्कूलों के कक्षा 1 से 8 तक के शिक्षकों के लिए टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) को अनिवार्य कर दिया है।

    इस आदेश के तहत, 2011 से पहले नियुक्त इन-सर्विस शिक्षकों को दो वर्ष के भीतर टीईटी पास करना होगा, अन्यथा नौकरी से बर्खास्तगी का खतरा मंडरा रहा है।

    टीईटी अनिवार्यता के सुप्रीम कोर्ट आदेश के खिलाफ प्राथमिक शिक्षकों का आक्रोश, किया प्रदर्शन

    संघ ने इस फैसले को वापस लेने और केंद्र व राज्य सरकार से कानून में संशोधन की मांग की है, विशेष रूप से 2011 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से छूट देने की।

    ज्ञापन सौंपा: अपर जिलाधिकारी को सौंपा पीएम के नाम संदेश

    उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ लखनऊ के बैनर तले जुटे हजारों शिक्षकों ने अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) राकेश कुमार सिंह को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम संबोधित ज्ञापन सौंपा। जिला अध्यक्ष सुधांशु मोहन के नेतृत्व में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें शिक्षकों ने एकजुट होकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को “शिक्षकों के साथ अन्याय” करार दिया।

    ज्ञापन में मुख्य मांगें हैं:

    1. 2011 से पूर्व नियुक्त प्राथमिक शिक्षकों को टीईटी से पूर्ण छूट।
    2. केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कानून में संशोधन, ताकि पुराने शिक्षकों की नौकरी सुरक्षित रहे।
    3. टीईटी को प्रमोशन के लिए अनिवार्य न बनाने की अपील।

    आदेश से लाखों शिक्षकों की आजीविका पर संकट: सुधांशु मोहन

    इस बारे में सुधांशु मोहन ने बताया, “यह आदेश लाखों शिक्षकों की आजीविका पर संकट ला रहा है। 2011 से पहले नियुक्त शिक्षक दशकों से सेवा दे रहे हैं, फिर भी उन्हें दो वर्ष में परीक्षा पास करने का दबाव क्यों? हम प्रधानमंत्री जी से अपील करते हैं कि इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करें।” कार्यक्रम के दौरान शिक्षकों ने नारेबाजी की और बैनर-स्लोगन के माध्यम से अपनी पीड़ा व्यक्त की।

    माध्यमिक शिक्षक संघ का पूर्ण समर्थन

    इस अवसर पर उत्तर प्रदेशीय माध्यमिक शिक्षक संघ (यूपीएमटीएस) के पदाधिकारियों ने पूर्ण सहयोग दिया। महामंत्री डॉ. नरेंद्र वर्मा, प्रवक्ता डॉ. आर.पी. मिश्रा, जिला अध्यक्ष डॉ. आर.के. त्रिवेदी, जिला मंत्री महेश चंद्र सहित ब्लॉक स्तर के पदाधिकारियों ने उपस्थिति दर्ज की। ब्लॉक अध्यक्षों में गोसाईगंज के योगेंद्र सिंह, काकोरी के अजय सिंह, मलिहाबाद के अवधेश कुमार, बक्शी का तालाब की सावित्री मौर्य, माल के प्रदीप सिंह, चिनहट के विजय कुमार, मोहनलालगंज के राम शंकर शुक्ला, सरोजिनी नगर के धीरेंद्र कुमार और उनके मंत्रियों ने भी भाग लिया। जिला कार्यकारिणी और ब्लॉक समितियों के सभी सदस्यों के साथ हजारों शिक्षक-शिक्षिकाएं मौजूद रहीं।

    डॉ. नरेंद्र वर्मा ने कहा, “यह संघर्ष प्राथमिक और माध्यमिक दोनों शिक्षकों का साझा मुद्दा है। हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए एकजुट हैं।”

    आगे की क्या है रणनीति: धरना, रैली और अखिल भारतीय आंदोलन

    टीईटी अनिवार्यता के सुप्रीम कोर्ट आदेश के खिलाफ प्राथमिक शिक्षकों का आक्रोश, किया प्रदर्शन

    सुधांशु मोहन ने घोषणा की कि संघ शीघ्र ही सभी जिला मुख्यालयों पर धरना-प्रदर्शन आयोजित करेगा। इसके अलावा, प्रदेश स्तर पर रैली और अखिल भारतीय स्तर पर बड़ा आंदोलन की योजना है। “हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक मांगें पूरी न हों। शिक्षकों का सम्मान और नौकरी की सुरक्षा सर्वोपरि है,” उन्होंने कहा। यह आंदोलन पूरे उत्तर प्रदेश में एक साथ चल रहा है, जहां सभी जिलाधिकारियों के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजे जा रहे हैं।

    सुप्रीम कोर्ट आदेश का प्रभाव: शिक्षकों में चिंता की लहर

    सुप्रीम कोर्ट की बेंच (जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन) ने 1 सितंबर को दिए फैसले में स्पष्ट किया कि टीईटी पास न करने पर प्रमोशन या नौकरी पर असर पड़ेगा।

    हालांकि, पांच वर्ष से कम सेवा शेष वाले शिक्षकों को छूट दी गई है। माइनॉरिटी संस्थानों को फिलहाल इससे बाहर रखा गया है, लेकिन बड़े बेंच का फैसला लंबित है।

    उत्तर प्रदेश में लाखों शिक्षक प्रभावित हैं, और संघों ने विशेष टीईटी परीक्षा की मांग भी उठाई है। बता दें कि तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी इसी तरह के विरोध हो रहे हैं, जहां 3 लाख शिक्षक चिंतित हैं।

    शिक्षक संगठनों का कहना है कि यह आदेश शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने का प्रयास है, लेकिन पुराने शिक्षकों के साथ अन्यायपूर्ण है। सरकार की ओर से अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन आंदोलन तेज होने के संकेत हैं।

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