उद्धव ठाकरे ने सीएम आवास छोड़ा, शिंदे गठबंधन तोड़ने की शर्त पर कायम
महाराष्ट्र का संकट एकाएक पैदा नहीं हुआ है बल्कि इसकी पटकथा बहुत दिनों से लिखी जा रही थी। विधान परिषद के चुनाव परिणामों ने ही राज्य सरकार के संकट का संकेत दे दिया था। दरअसल महाराष्ट्र की महाविकास अघाडी सरकार जबसे अस्तित्व में आई है, तभी से इसके भविष्य को लेकर अटकलें लगनी शुरू हो गई थीं हालांकि उन तमाम आशंकाओं को धता बताते हुए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने न सिर्फ अपने कार्यकाल का आधा पड़ाव पार किया बल्कि कोरोना जैसी गंभीर महामारी के प्रबंधन में प्रशासकीय कौशल के लिए उनकी सरकार ने कमोबेश सराहना भी बटोरी। लेकिन एकनाथ शिंदे की बगावत के रूप में उन्हें गंभीर आंतरिक चुनौती मिली है और वह इससे कैसे पार पाते हैं, इस पर उनकी सरकार और पार्टी, दोनों का बहुत कुछ निर्भर है।
दरअसल भाजपा और शिवसेना में टकराव की बुनियाद तभी पड़ गई थी जब गठबंधन में चुनाव जीतने के बाद भी शिवसेना ने भाजपा को छोड़कर विरोधी दलों कांग्रेस और राकांपा के साथ सरकार बनाने का फैसला किया था। इससे पहले भाजपा ने राकांपा के साथ मिलकर सरकार भी बनाई पर शरद पवार ने भतीजे अजित पवार की घर वापसी करा कर भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया था।
भाजपा तभी से शिवसेना से राजनीतिक बदला लेने की कोशिश कर रही थी। हाल में राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने शिवसेना के एक प्रत्याशी को हराकर साफ कर दिया था कि उसने महाविकास अघाड़ी में सेंध लगा दी थी। इसके बाद विधान परिषद चुनाव में भी वही कहानी दोहराई गई। खुद उद्धव ठाकरे भी सारे तंत्र के बावजूद भीतरी हलचल को समझ नहीं पाए। अब स्थिति यह है कि 55 सदस्यीय शिवसेना विधायक दल के करीब आधे विधायकों ने बगावत का झंडा बुलंद कर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व को खुली चुनौती दी है। अब देखने की बात यह है कि उद्धव ठाकरे इस बगावत को शांत कर पाने में सफल होते हैं या नहीं। फिलहाल सरकार के सामने संकट तो आ ही गया है।