नवेद शिकोह
लखनऊ के पत्रकार संगठनों द्वारा तीन वर्ष में दिये गये ज्ञापनों और ज्ञापन देते पत्रकारों की तस्वीरों के संकलन के रूप में ‘पत्रकारों की ज्ञापन बुक’ नामक पुस्तक सज धज कर तैयार है। ये पुस्तक मेले में उपलब्ध होगी। सही नेतृत्व के मोहताज पत्रकारों की मजबूरी बयां करती इस पुस्तक में इस बात का खुलासा किया गया है कि तीन साल में 179 बार जो ज्ञापन दिये गये उनकी एक भी मांग पूरी नहीं हुई। फिर भी हौसला तो देखिये कि शहर के दर्जनों पत्रकार संगठनों से जुड़े 40-50 पत्रकार अपने-अपने संगठनों से कम से कम सप्ताह में एक बार किसी ना किसी सत्ताधारी या नौकरशाह इत्यादि को ज्ञापन सौंपने का सिलसिला जारी रखे हैं।
वजह शायद ये है कि इनकी नियत पत्रकारों के हितों की मांगो को पूरा करवाना नहीं होती। ये ज्ञापन देने के बहाने किसी राजनेता/नौकरशाह या राज्यपाल इत्यादि के साथ अर्द्ध गोला बनाकर फोटो खिंचवाने की तमन्ना पूरी कर लेते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य अपनी पहचान बनाकर बतौर पत्रकार नेता अपने निजी काम करवाना है।
ये रिसर्च हैरत में डालने वाला है। किसी भी पेशे से जुड़े किसी भी संगठन का संघर्ष इतना असफल नहीं होता। देर से ही सही ज्यादातर जायज मांगें पूरी होती रहती हैं। लेकिन पत्रकार जिनके कलम से दूसरे क्षेत्रों के संगठनों की मांगोंऔर आन्दोलनों को गति या सफलता मिलती है उन पत्रकार संगठनों की ही सारी मांगे हवा हो जाती हैं।
रिसर्च के मुताबिक लखनऊ में लगभग एक दर्जन पत्रकार संगठन, समितियां और यूनियने सक्रिय हैं। हर महीने- दो महीने के बाद कोई नया संगठन सोशल मीडिया और ज्ञापन बाजी के साथ जन्म ले लेता है।
चालीस-पचास पत्रकार अलग-अलग किसी भी संगठन में सोशल मीडिया के माध्यम से तस्वीरों में नजर आते हैं।
पिछले तीन वर्षों में 179 बार जो ज्ञापन दिये गये उनमें आठ-दस मांगे कामन हैं। यहां तक कि एक संगठन अपने एक ज्ञापन को एक ही सरकारी नुमाइंदों को कई बार देते हैं और फोटो खिंचवाने की ख्वाहिश पूरी कर लेते हैं।
एक ही ज्ञापन की कापी को कई बार भी दिया जाता रहा है।
लेकिन एक भी बार बिना फोटो खिंचवाये ज्ञापन नहीं दिया गया। किसी ज्ञापन का फॉलोअप भी नहीं हुआ। विभिन्न संगठनों के किसी साझा मंच पर भी पत्रकारों की समस्याओं के समाधान के लिए कभी कोई कदम नहीं उठाया गया। बल्कि एक संगठन दूसरे को फर्जी साबित करता रहा है।
पत्रकारों की ज्ञापन बुक में ये तमाम ज्ञापनों और ज्ञापन देते पत्रकारों की तस्वीरें शामिल हैं।
ज्ञापन देते पत्रकारों की 179 तस्वीरों में करीब 30-35 लोग तस्वीरों में बार-बार नजर आ रहे हैं। इनमें कुछ तस्वीरों मे एक दूसरे को ढकेल रहे हैं।
पत्रकारों की सुरक्षा, पेंशन, स्वास्थ्य से जुड़ी पांच-सात मांगे लगभग कामन हैं।
गौरतलब बात ये है कि सरकारों द्वारा पत्रकारों के हित में बहुत सारे फैसले समय समय से लिए जाते रहे हैं। सरकारें पत्रकारों की समस्यायें का समाधान भी करती रही हैं, लेकिन संगठनों के मांग पत्रों/ज्ञापनों वाली मांगे ही लम्बित रह जाती हैं।
इन तमाम कड़वी सच्चाइयों को ही पेश करेगी- ‘पत्रकारों की ज्ञापन बुक’।