गरीबी में पली 17 साल की पूजा पाल बनी एक प्रेरणादायक मिसाल
नीतू सिंह
17 साल की पूजा पाल ने अपनी असाधारण प्रतिभा और जज़्बे से यह साबित कर दिया कि प्रतिभा किसी अमीर-गरीब या झोपड़ी-महल की मोहताज नहीं होती। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में झोपड़ी में रहने वाली पूजा, जो इंटरमीडिएट की छात्रा है, ने धूल रहित थ्रेसर मशीन बनाकर न केवल अपने गांव बल्कि पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
गरीबी के बीच भरी सपनों की उड़ान
पूजा के पिता एक गरीब मजदूर हैं, जो परिवार के साथ एक साधारण झोपड़ी में रहते हैं। आर्थिक तंगी के बावजूद उनके पिता ने हमेशा अपनी बेटी की पढ़ाई और सपनों को प्राथमिकता दी। पूजा बताती हैं, –
“पापा कहते हैं, दो-चार दिन भूखे रह लेंगे, लेकिन तुम पढ़ो और कुछ अच्छा करो। तुम्हारा अच्छा होगा, तो हमारा भी अच्छा होगा।” इस प्रेरणा ने पूजा को न केवल पढ़ाई में अव्वल बनाया, बल्कि एक ऐसी मशीन बनाने के लिए प्रेरित किया जो किसानों की जिंदगी आसान कर सके।
परिचय :
नाम – पूजा पाल
प्रदेश – उत्तर प्रदेश
जिला – बाराबंकी
उम्र – 17 वर्ष
योग्यता – बताना असंभव
उपलब्धि – 17 वर्ष की इस बाल वैज्ञानिक ने किसानों के लिए धूल रहित थ्रेसर बनाया है।
धूल रहित थ्रेसर: किसानों के लिए वरदान
किसानों की समस्याओं को करीब से देखते हुए पूजा ने एक धूल रहित थ्रेसर मशीन डिज़ाइन की, जो फसल कटाई के दौरान धूल और कचरे को कम करती है। यह मशीन न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि किसानों के स्वास्थ्य को भी सुरक्षा प्रदान करती है। बिना किसी बड़ी लैब या महंगे संसाधनों के, पूजा ने अपनी वैज्ञानिक सोच और मेहनत के बल पर यह नवाचार किया। उनकी इस उपलब्धि ने गांव वालों को गर्व से भर दिया, और आज पूजा उनके लिए प्रेरणा की मिसाल बन गई हैं।
सोशल मीडिया पर तारीफों का सैलाब
पूजा की कहानी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। एक यूजर, कनक सिंह, ने लिखा, –
“झोपड़ी में पली-बढ़ी ये होनहार बेटी आज पूरे देश का सिर गर्व से ऊँचा कर रही है! जिस उम्र में ज़्यादातर बच्चे सिर्फ़ सपने देखते हैं, इस बेटी ने किसानों की तकलीफें समझकर धूल रहित थ्रेसर मशीन बना डाली।” उन्होंने आगे कहा, “ना कोई बड़ी लैब, ना कोई महंगे संसाधन, सिर्फ़ जज़्बा, लगन और वैज्ञानिक सोच के साथ कमाल कर दिया। यह नए छात्रों और युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।”
पूजा का सपना: पढ़ाई और रोज़ी-रोटी का संतुलन बनाना
पूजा अपनी उपलब्धि को केवल शुरुआत मानती हैं। वह कहती हैं, “मैं कुछ ऐसा करना चाहती हूँ कि रोज़ी-रोटी भी चलती रहे और पढ़ाई भी होती रहे।” उनकी यह सोच न केवल उनकी परिपक्वता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि वह अपने परिवार और समाज के लिए कुछ बड़ा करना चाहती हैं।
बता दें कि बाराबंकी के विकास खंड सिरौलीगौसपुर के छोटे से गांव अगेहरा की रहने वाली बाल वैज्ञानिक पूजा को भारत सरकार द्वारा संचालित ‘सकुरा हाई स्कूल प्रोग्राम’ के तहत 14 जून से 21 जून तक एक सप्ताह के लिए जापान यात्रा पर भेजा गया था। इस बीच छात्रा पूजा ने इंस्पायर अवार्ड मानक की राष्ट्रीय विजेता बनकर और आईआरआईएस नेशनल फेयर में देश के टॉप 100 विद्यार्थियों में स्थान पाकर उत्तर प्रदेश व भारत का नाम रोशन किया है। सीमित संसाधनों के बावजूद पूजा ने विज्ञान व तकनीक में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर देश के 54 चयनित छात्रों में जगह बना चुकी हैं।
एक प्रेरणादायक मिसाल
पूजा की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो संसाधनों की कमी को अपनी राह का रोड़ा मानते हैं। उनकी मेहनत, लगन और वैज्ञानिक सोच ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी सपना असंभव नहीं। पूजा की इस उपलब्धि को देखते हुए उम्मीद है कि वह भविष्य में और भी बड़े नवाचारों के साथ देश का नाम रोशन करेंगी।







