उपेंद्र राय
नेपाल में जनता के गुस्से और जेन-जेड की अगुवाई वाले आंदोलन ने राजनीतिक भूचाल ला दिया है। संसद भंग होने और पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद, पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की ने 12 सितंबर को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। नेपाल के इतिहास में पहली महिला प्रधानमंत्री बनने वाली कार्की ने 15 सितंबर को अपना मंत्रिमंडल गठित किया, जिसमें वित्त मंत्री रमेश्वर प्रसाद खनाल, ऊर्जा मंत्री कुलमान घिसिंग और गृह मंत्री ओम प्रकाश आर्याल जैसे भ्रष्टाचार-विरोधी छवि वाले नेता शामिल हैं।
यह बदलाव भ्रष्टाचार, विकास की रुकावटों, महंगाई, बेरोजगारी और एकाधिकार के खिलाफ जनाक्रोश का परिणाम है, जिसमें 72 से अधिक लोगों की जान गई। लेकिन इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच भारत की नजरें नेपाल पर टिकी हैं। क्या कार्की सरकार भारत-नेपाल संबंधों को नई मजबूती देगी, या चीन जैसे देशों का प्रभाव इसे चुनौती देगा?
नेपाल का राजनीतिक संकट: जनता की जीत या अस्थिरता की शुरुआत?
नेपाल में 8 सितंबर से शुरू हुए विरोध प्रदर्शन सोशल मीडिया प्रतिबंध से भड़के, लेकिन जल्द ही यह भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता के खिलाफ एक बड़े आंदोलन में बदल गया। काठमांडू में संसद भवन और सरकारी इमारतें जलाकर राख कर दी गईं, और सेना को कर्फ्यू लगाकर नियंत्रण संभालना पड़ा। जेन-जेड कार्यकर्ताओं ने डिस्कॉर्ड जैसे प्लेटफॉर्म पर मतदान कर कार्की को अंतरिम पीएम के लिए चुना, जो संविधान के अनुच्छेद 61 के तहत राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल द्वारा नियुक्त की गईं। 73 वर्षीय कार्की, जो 2016-2017 में नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं, अपनी भ्रष्टाचार-विरोधी फैसलों के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कई मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ फैसले दिए, जो राजनीतिक दलों की आलोचना का कारण बने।
कार्की का मंत्रिमंडल गठन आंदोलनकारियों की मांगों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। वित्त मंत्री खनाल आर्थिक सुधारों के विशेषज्ञ हैं, जबकि घिसिंग ऊर्जा क्षेत्र में नेपाल की बिजली संकट को हल करने के लिए जाने जाते हैं। गृह मंत्री आर्याल कानून-व्यवस्था बहाल करने का दायित्व संभालेंगे। अंतरिम सरकार मार्च 2026 तक नए चुनाव कराने का वादा कर रही है, लेकिन चुनौतियां कम नहीं हैं। भ्रष्टाचार उन्मूलन, क्षतिग्रस्त इमारतों का पुनर्निर्माण, और युवाओं की मांगों को पूरा करना कार्की की प्राथमिकताएं होंगी।
भारत-नेपाल संबंध: ऐतिहासिक मैत्री, लेकिन हाल की किरकिरी
भारत और नेपाल के संबंध सदियों पुराने हैं, जो सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से गहरे जुड़े हैं। 1950 के भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि ने दोनों देशों को खुली सीमा (1,750 किमी से अधिक) और विशेष संबंध प्रदान किए। नेपाल में हिंदू संस्कृति, रामायण-महाभारत की परंपराएं, और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जैसी संस्थाओं का प्रभाव स्पष्ट है। कार्की खुद बीएचयू की पूर्व छात्रा हैं, जहां उन्होंने राजनीति विज्ञान पढ़ा था।
भारत ने हमेशा नेपाल के संकटों में साथ खड़ा रहा है, चाहे 2015 का भूकंप हो या कोविड-19 महामारी। भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो विदेशी निवेश, पर्यटन और जलविद्युत परियोजनाओं में अग्रणी है। हाल ही में, भारत ने नेपाल को 2 लाख मीट्रिक टन गेहूं की कोटा प्रदान की और सीमा प्रबंधन पर संयुक्त कार्य समूह की बैठकें आयोजित कीं।
हालांकि, विगत वर्षों में संबंधों में खटास आई। 2020 में नेपाल के नए नक्शे में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को शामिल करने से विवाद हुआ, जो चीन के प्रभाव को दर्शाता था। ओली सरकार पर चीन की नजदीकी का आरोप लगा, जबकि पाकिस्तान, अमेरिका और रूस जैसे देश भी नेपाल पर नजर रखते हैं। भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति के तहत नेपाल महत्वपूर्ण है, लेकिन बांग्लादेश जैसी घटनाओं से सतर्कता बरतनी पड़ रही है।
कार्की सरकार से भारत की उम्मीदें: सहयोग और संतुलनसुशीला कार्की के प्रधानमंत्री बनने पर भारत ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय ने कहा, “हम नेपाल में नई अंतरिम सरकार का स्वागत करते हैं। एक करीबी पड़ोसी, सहयोगी लोकतंत्र और दीर्घकालिक विकास साझेदार के रूप में, भारत दोनों देशों के कल्याण के लिए निकट सहयोग जारी रखेगा।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कार्की को बधाई दी: “मैं सुशीला कार्की को नेपाल की अंतरिम सरकार की प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। भारत नेपाल के शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए दृढ़तापूर्वक प्रतिबद्ध है।”
भारत की उम्मीदें स्पष्ट हैं: आर्थिक सहयोग: जलविद्युत, व्यापार और सीमा बुनियादी ढांचे पर तेजी से प्रगति। भारत ने पहले ही 551 परियोजनाओं के तहत 1,249 करोड़ नेपाली रुपये का निवेश किया है।
भ्रष्टाचार विरोध: कार्की की छवि भारत की ‘सबका साथ, सबका विकास’ नीति से मेल खाती है। दोनों देश संयुक्त रूप से अवैध व्यापार और ड्रग तस्करी पर सहयोग बढ़ा सकते हैं।
रणनीतिक संतुलन: चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के प्रभाव को कम करना। नेपाल को आत्मनिर्भर बनाते हुए भारत का सच्चा मित्र बनने की मिसाल कायम करनी चाहिए।
सांस्कृतिक बंधन: कार्की का भारत से पुराना नाता (बीएचयू) संबंधों को मजबूत करने का अवसर देता है। हालांकि, चुनौतियां हैं। नेपाल की युवा पीढ़ी चीन और पश्चिमी प्रभावों की ओर झुक सकती है, और सीमा विवाद अनसुलझा है। लेकिन भारत ने विपरीत परिस्थितियों में भी नेपाल का साथ दिया है, जैसे 2023 के ‘सागरमाथा संवाद’ में पर्यावरण सहयोग।
क्या नेपाल भारत की उम्मीदों पर खरा उतरेगा?
सुशीला कार्की की सरकार एक संक्रमणकालीन अवसर है। यदि वे भ्रष्टाचार मिटाकर विकास पर फोकस करेंगी और भारत के साथ सामंजस्य बरतेंगी, तो दोनों देश शांति, सौहार्द और आर्थिक उन्नति के नए अध्याय लिख सकते हैं। नेपाल की जनता ने साबित किया कि वे अवरुद्ध विकास और भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं।
अब समय है कि नई सरकार मोदी के भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर विश्व पटल पर विजय पताका लहराए। लेकिन यदि चीन या अन्य शक्तियों का प्रभाव बढ़ा, तो संबंधों में फिर किरकिरी हो सकती है। भारत को सतर्क रहते हुए सहयोग बढ़ाना होगा। कुल मिलाकर, कार्की का कार्यकाल नेपाल के लिए महिलाओं की सशक्तिकरण और लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक बने, तो भारत-नेपाल मैत्री नई ऊंचाइयों को छूएगी।