संतवाणी : अजीत कुमार सिंह
उत्तम बनने का प्रयत्न करने वाले को देर-सबेर सारा ज्ञान प्राप्त हो जाता है और बिना प्रयत्न के ही वो श्रेष्ठ बन जाता है किन्तु जो श्रेष्ठ बनने का प्रयत्न करता है वो श्रेष्ठ बने या न बने उत्तम कभी नहीं बन पाता श्रेष्ठता का अर्थ है दूसरों से अधिक ज्ञान प्राप्त करना अर्थात मूल्य इस बात का नहीं कि स्वयं कितना ज्ञान प्राप्त किया बल्कि मूल्य इस बात का है कि प्राप्त किया हुआ ज्ञान अन्य लोगों से कितना अधिक है अर्थात श्रेष्ठता की इच्छा ज्ञान प्राप्ति को भी स्पर्धा (प्रतियोगिता) बना देती है।
कुछ समय के लिए तो श्रेष्ठ बना जा सकता है किन्तु सदा के लिए कोई श्रेष्ठ नहीं रह पाता फिर वही असन्तोष पीड़ा और संघर्ष जन्म लेता है किन्तु श्रेष्ठ बनने के बदले, यदि उत्तम बनने का प्रयत्न करें तो क्या होगा उत्तम का अर्थ है कि जितना प्राप्त करने योग्य है वो सब प्राप्त करना किसी से अधिक पाने की इच्छा से नहीं मात्र आत्मा की तृप्ति हेतु कुछ प्राप्त करना उत्तम के मार्ग पर किसी अन्य से प्रतियोगिता नहीं होती, स्वंय अपने आप से प्रतियोगिता होती है अर्थात उत्तम बनने का प्रयत्न करने वाले को देर-सबेर सारा ज्ञान प्राप्त हो जाता है और बिना प्रयत्न के ही वो श्रेष्ठ बन जाता है किन्तु जो श्रेष्ठ बनने का प्रयत्न करता है वो श्रेष्ठ बने या न बने, उत्तम कभी नहीं बन पाता स्वंय विचार कीजिए।







