2009-10 में पंजीकृत अधिष्ठानों के श्रमिकों का पंजीयन मात्र एक हजार था, 2020-21 में हो गया 43.74 लाख
लखनऊ, 19 सितम्बर 2021: उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद श्रमिकों को योजनाओं का लाभ देने के लिए अधिकतम पंजीयन पर जोर दिया गया और उन्हें जागरूक कर पंजीयन कराया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि चार सालों में ही पांच गुना से भी अधिक श्रमिकों का पंजीयन हुआ। 2017-18 में जहां 7,81,640 श्रमिकों का पंजीयन था, वहीं 2020-21 में 43,74,964 श्रमिकों का पंजीयन कराया गया था। यही नहीं 2021-22 में भी अप्रैल से अब तक 10,42,738 श्रमिकों का पंजीयन हो चुका है।
श्रमिकों के पंजीयन के प्रति सरकारों की उदासीनता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 2009-10 में पंजीकृत अधिष्ठानों में कुल पंजीकृत श्रमिकों की संख्या मात्र 1,247 थी। वहीं 2017-18 में पंजीकृत अधिष्ठानों में पंजीकृत श्रमिकों की संख्या 7,81,640 थी। 2018-19 में 6,47,579, 2019-20 में 5,14,406 थी। लेकिन जब कोरोना काल आया तो श्रमिकों को लाभ कैसे पहुंचाया जाय। इसको लेकर सरकार की चिंता बढ़ गयी। इसके बाद पूरे प्रदेश में अभियान चलाया गया। पंजीकृत अधिष्ठानों से अनिवार्य रूप से श्रमिकों के पंजीयन कराने व उन्हें जागरूक करने का काम श्रम विभाग ने किया। इसका नतीजा रहा कि उप्र भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में 43,74,964 श्रमिकों का पंजीयन हो गया।
श्रमिक कल्याण बोर्ड की डाटा के अनुसार प्रदेश में श्रमिकों के लिए चलायी गयी योजनाओं पर 2020-21 में 8,37,74,53,793 रुपये खर्च कर चुकी है। यह रोरा के मद में जम करायी गयी राशि से श्रमिकों के ऊपर किया गया खर्च है। यह मद श्रमिकों द्वारा ही जमा किया गया रुपये होता है। इस बजट का दूसरों के लिए सरकार प्रयोग नहीं कर सकती।