खीसा – आधा भुर्र भाँय जाय:
एक ठी रही फुदकी.. नान्ह भर कै चिरई। वोका कतौं से थोर कै रूई मिलि गा। ऊ सोचिस कि सब मनइन कपड़ा पहिरे रहा थेन, काहे न हमहूं एक ठी झूली-कूली बनवाय लेयी औ शान से पहिरि कै घूमी। तौ ऊ आपन उहै रूई लइ कै धुनिया के लगे पहुँचि गय औ कहत है-
धुनियवा भइया धुन दे,
आधा तोर आधा मोर,
आधा भुर्र भाँय जाय।।
धुनियवा सोचता बा कि ई पिद्दी भर कै चिरई, देखा तौ रूई धुनावै आय बा हमरे लगे। वोका दरेग लागि गय औ चिरइया कै रूई धुन दिहिस। फिर ऊ रूई लइ कै पहुँच गय कपड़ा बीनै वाले बुनिया के लगे औ कहै लाग-
बुनियवा भइया बुन दे,
आधा तोर आधा मोर,
आधा भुर्र भाँय जाय।।
बुनियवौ अपने मन मा सोचै लाग कि ई पिद्दी भर कै फुदकी, देखा तौ कपड़ा बिनावै आय बा हमरे लगे। वहू का दरेग लागि गय औ चिरइया क ताईं कपड़ा बीनि दिहिस। फिरु चिरइया ऊ कपड़ा लइ कै पहुँच गय दर्जी के लगे औ कहै लाग-
दर्जियवा भइया सी दे,
आधा तोर आधा मोर,
आधा भुर्र भाँय जाय।।
तौ दरजियवव वोकर झूली कली सी दिहिस। फिर भइया क बेटवा जियैं, फुदकिया अपने घरे गय, खूब गति कै नहाइस धोइस और नवा नवा आपन झूली कूली पहिरि कै सबका देखावै ताईं निकरि परी.. पहिरि ओढ़ि कै जाइ कै राजा के बँड़ेरी पै बैठिस औ वहीं से कहत बा –
रजवा के कुछ नाय बा
मोरे झूली कूली बा।।
रजवा के कुछ नाय बा
मोरे झूली कूली बा।।
राजा कै नजर वहर गय। देखेन तौ एक ठी फुदकी रहै जवन कपड़ा पहिरे अजब गजब लागत रही। राजा अपने सिपाहिन का हुकुम दिहेने कि जा वोकर झूली कूली छोरि ल्या। फिर सिपाहिन जाइ कै वोका पकरि लिहेन औ वोकर झूली कूली उतार लिहेन।
थोरिक देर बाद चिरइया आइ कै फिरु राजा के बँड़ेरी पै बैठी औ कहत बा –
रजवा कंगाल,
मोर झूली कूली लइ गा।।
रजवा कंगाल,
मोर झूली कूली लइ गा।।
राजा सोचत हयेन कि ई तौ गजब बेइज्जती करत बा, यहीं बैठ कै। वै अपने सिपाहिन से कहेन कि जा लइ जाय कै एकर झूली कूली वापस दै दा। सिपहियै ओकर कपड़ा वापस दै दिहेन.. चिरइया खुस होइ गै औ फिर जाइ कै पहिरि ओढ़ि
कै वापस आइ कै फिरू राजा के बँड़ेरी पै बैठी। वहीं से फिर कहत बा
रजवा डेरान,
मोर झूली कूली दइ गा।।
रजवा डेरान,
मोर झूली कूली दइ गा।।
अबकी दाँव राजा सिपाही का पठयेन औ कहेन कि, “येका काटि कै रसोइया मा दै दा। आज एकर गोश खाबै।” फिर राजा ओका खाय लिहेन। दुसरे दिन जब राजा दिशा मैदान करै बहिरे गयेन तो चिरई पीछे से निकरि कै फुर्र धनी उड़ि गै। थोरिक देर बाद फिरु आइ कै बँड़ेरी पै बैठी औ वहीं से कहत बा –
राज मांस खायेन,
फुदूक निकरि आयेन।
राज मांस खायेन,
फुदूक निकरि आयेन।
राजा का बहुत गुस्सा लाग। जोर से सिपाहिन का बोलायेन औ कहेन कि फिर येका पकरि कै लाव औ काटि कै रसोइया मा पहुँचाय दा.. राजा दोबारा ओका खाय लिहेन।
दुसरे दिन सवेरे राजा फिर दिशा मैदान गयेन। अबकी दाँव वै अपने साथे दुइ ठी तलवार बंद सिपाही लइ गयेन। सिपाहिन से कहेन कि ‘जइसै चिरइया पीछे से निकरै दूनौ ओरी से दूनौ जने जुरतै तरवारी से छपक दिहा।’ सिपाहिन तैयार होइ गै। दूनौ जने ध्यान लगाये हयेन कि कब निकरै कब मारी… पीछे से जइसै चिरई निकरी दूनौ जने रलवाल हँउक दिहेन। चिरइया तो उड़ि गा मुला तववार निसाना चूकि गा औ राजा कै कूल्हा नीचे से छपकि उठा। हाय हाय करत राजा घरे आयेन। थोरिक देर बाद देखत हयेन कि चिरइया आइ कै फिर बँड़ेरी पे बैठी औ बोलै लाग –
राजा मांस खायेन,
फुदूक निकरि आयेन।
अपनी चलन राजा
कुल्हवौ कटायेन।।
राजा मांस खायेन,
फुदूक निकरि आयेन।
अपनी चलन राजा
कुल्हवौ कटायेन।।
राजा कहेन जाय दा येका कमबख्त का। अब अउर नुकसान नाय चाही.. यकरे बाद सब ठीक से रहै लागें।। राज लउटा – पाट लउटा।।
संकलन: अरुण कु तिवारी की वॉल से