संजय झा मस्तान
कई दिनों बाद अपने राइटिंग डेस्क पर बैठ कर मैं लिखने का विचार कर ही रहा था कि मेरी पत्नी ने मुझे देख लिया! ‘ किस बात का संकल्प ले रहे हो ?’ पत्नी का ये तंज़ सुन कर मेरा ध्यान भंग हो गया ! मेरी पत्नी का अनुमान था कि आँख मूँद के मैं व्यंग्य लिखने का संकल्प ले रहा हूँ ! आजकल विपक्ष की तरह मेरी पत्नी मुझे हर बात पर बहस की चुनौती दे देती है!’ घर के इतने काम हैं जिनका संकल्प लेना जरुरी है और तुम व्यंग्य लिखने का संकल्प ले रहे हो? ‘ पत्नी बड़बड़ाती ही चली जा रही थी!
पत्नी के अनुसार पहले विषय चुनना, फिर लिखना और कहीं नहीं छपना ही मेरा व्यंग्य है ! पत्नी के हिसाब से छपने वाला व्यंग्य सिर्फ दिल्ली में लिखा जाता है ! व्यंग्य लिखना मेरे लिए गंभीर कर्म है और मेरा बहुत समय इसमें जाता है पर इससे मुझे एक अधेला भी नहीं मिलता मेरी पत्नी ये भी जानती है ! मेरी पत्नी को लगता है मैं व्यंग्य लिख कर खुद अपमानित होता हूँ ! ‘ व्यंग्य लिखने के लिए संकल्प लेने की क्या जरुरत है ? चुपचाप मेरा दुःख लिख दो सब हंस पड़ेंगे ! ‘ पत्नी का ये ताना सुन कर मेरी आँखें भर आयीं ! आदमी हँसता क्यों है ? ह्रदय में उठा ये सवाल आंसू बन कर बहने लगे ! पत्नी का व्यंग्यबाण निशाने पर लग गया था !
अपनी पत्नी के रूखे व्यंग्य व्यवहार से मैं ऐसे दोराहे पर खड़ा था जहाँ दो रास्ते दो संकल्प की ओर जा रहे थे ! एक रास्ता कभी व्यंग्य न लिखने के संकल्प का था और एक रास्ता कभी पत्नी की बात नहीं मानने का ! मैं कौन सा पथ चूनु यही मेरी उलझन थी ! संकल्प का अर्थ किसी अच्छी बात को करने का दृढ निश्चय करना है ! आज निश्चय से पहले मुझे निर्णय लेना था, संकल्प अभी दूर था और व्यंग्य को पत्नी ने पारिश्रमिक के नाम पर दिल्ली पहुंचा दिया था ! पत्नी व्यंग्य को अपनी सौतन मानती है क्योंकि व्यंग्य में भी हर व्यक्ति, हर समाज, हर संस्था और राष्ट्र की निंदा छुपी है ! जैसे ही मैं व्यंग्य लेख लिखने के लिए बैठता हूँ मेरी पत्नी घर का बजट ले कर सामने आ जाती है ! क्या मेरी पत्नी मुझसे अच्छा व्यंग्य लिख सकती है ? मैं सोचने लगा!’ मुझ पर तंज़ कसने के लिए तुम सब्जेक्ट कहाँ से लाती हो ? ‘
मैंने हिम्मत कर के पूछा! ‘ हाँ जानती हूँ भारत में व्यंग्य का विषय कनाडा से आता है’ जवाब सुन कर पत्नी से जुगलबंदी में चुप रहने की बारी मेरी थी ! बहस में अगर आपकी पत्नी भी व्यक्तिगत हो जाती है और आप इससे आहत होते हैं तो समझिये व्यंग्य आपके वश में नहीं है और आप भी मेरी तरह पत्नी प्रेम में दफ़न हो चुके हैं ! सब जानते ही होंगे किससे कहूं शादी के कब्र में सबका एक ही हाल होता है ! मैं चुपचाप घर से निकल पड़ा, व्यंग्य लिखने का संकल्प अब एक दिन मेरा खाक़ लेगा !
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