यह आदमी कल शनिवार दोपहर से ही पीकर लेटा था। सब लोग आते-जाते देख रहे थे। मैं भी उसी में से एक था। रात को भी देखा और चल दिया। आज सुबह आया तो उसको चद्दर से ढ़ककर अगरबत्तियां जलाई गयी थी। मन द्रवित हो गया।
मधुशाला:
घटक के नीचे उतरने से पहले तूं जलाती है गला
फिर भी लोग लगाते हैं अपने घटक से यह बला।
दो घूंट पीकर हो जाते हैं मस्त,
फिर लड़खड़ाते-लड़खड़ाते हो जाते पस्त।
लोग पीते हैं तुझे गम भुलाने को
लेकिन जिंदगी में तूं बहुत गम लाती है दारू।
चरम पर पहुंचकर तूं काम-धंधा छुड़वाती है,
फिर मौत तक पहुंचकर जिंदगी लेकर चली जाती है।
जिंदगी भी ऐसे लेती तूं कि,
जाते वक्त कोई अपना भी नहीं दिखता पास में।
मौत के दर्द को भी लोग,
हंसकर उड़ा देते हैं परिहास में।
आखिर तुझे क्यों अपनाते हैं लोग,
मुंह में फैलाती दुर्गंध, फिर भी
तुझे गले से नीचे उतार जाते हैं लोग।
दूसरों का तो वो ही जानें,
लेकिन मैं तो तुझे छोड़ के चला।।
घटक के नीचे उतरने से पहले तूं जलाती है गला
फिर भी लोग लगाते हैं गले से यह बला।।
- उपेंद्र नाथ राय ‘घुमंतू’