“तुलसी तृण जलकूल कौ निर्बल निपट निकाज
कै राखै के संग चलै बाँह गहे की लाज ।।”
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तुलसीदास जी कहते हैं कि ‘नदी किनारे की घास बहुत कमजोर होती है। पर यदि कोई डूबता हुआ उसे पकड़ ले तो या तो वह उसे बचा लेती है अन्यथा स्वयं भी डूबते हुए व्यक्ति के साथ बहकर खुद को समाप्त कर लेती है।’
मित्रता का चरम आदर्श यही है कि यदि हमने किसी का हाथ पकड़ा हो तो खुद के अंत होने तक उसे नहीं छोड़ें।।