जी के चक्रवर्ती
10 मार्च 2022 को सम्पन्न हुए देश के पांच राज्यो की विधानसभा चुनावों में भाजपा के शानदार जीत ने बीजेपी की छवि को बरकरार रखते हुए उत्त रप्रदेश में योगी आदित्यनाथ को पुनः सत्ता की बागडोर सौंपा है। खैर यदि हम योगी आदित्यनाथ की इन पांच वर्षों तक के शासन काल की बात करें तो उसे हम बुरा तो नही कह सकते हाँ यह बात अगल है कि हम तो विपक्ष की राजनीति करते हैं तो हमेशा विपक्ष की ही बातें करेंगे, लेकिन जो सत्य है और वह हमेशा सत्य ही रहेगा।
वैसे यह बहुत ही विडंबना की बात है कि देश के पांच राज्यों में अपनी शर्मनाक हार के कारणों की समीक्षा की मांग करने वाले कांग्रेसी नेता अपनी ही पार्टी के नेतृत्व से यह कहने तक का साहस ही नहीं जुटा पा रहें है कि आखिर इस हार के लिए स्वयं गांधी परिवार ही जिम्मेदार है।
आज देश की सबसे पुरानी और बड़ी कांग्रेस पार्टी की अस्तित्व पर ही विराम लगता दिख रहा है। इस पार्टी के उच्चस्तरीय नेताओं में मौजूदा समय मे एकता का घोर अभाव होने के साथ ही साथ पार्टी अध्यक्ष और पार्टी में परिवारवाद के शिकार होने से देश मे अभी सम्पन्न हुये चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जिन-जिन राज्यों में अपने उमीदवार खड़े किये थे वहां के चुनाव परिणामों को देखें तो कांग्रेस को मात्र 2 ही सीटों से संतोष करना पड़ा।
इस चुनाव में कांग्रेस का यह स्लोगन ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ जैसे नारे की तो हवा ही निकाल कर रख दी, जबकि कांग्रेस ने इस चुनाव में विशेषतः महिलाओं पर केंद्रित रखते हुये बड़ी संख्या में महिलाओं को ही टिकट दिया था, लेकिन फिर भी इस बात का किसी तरह का प्रभाव चुनाव परिणामों से सामने निकल कर नही आया, हां पंजाब राज्य के हस्तिनापुर सीट से कांग्रेस की प्रत्याशी अर्चना गौतम पांचवें नमबर पर रह कर इस सीट पर कब्जा कर सकी तो वहीं उत्तर प्रदेश में अकेले कांग्रेस की 40 प्रतिशत तक के महिला उम्मीदवारों में से केवल एक ही उम्मीदवार अराधना मिश्रा ने अपनी सीट को बचाने में सफल रही हैं। यदि हम कांग्रेस को मिली सीटों पर गौर करें तो देखेंगे कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को केवल 2 सीटें मिली, उत्तराखंड में कांग्रेस को 19 सीटें मिली, मणिपुर में कांग्रेस को 5 सीटें मिली, गोवा में कांग्रेस को 11 सीटों पर जीत मिली है , पंजाब में कांग्रेस को 18 सीटें मिली हैं।
इस तरह देश के पांच राज्यों में जीती कुल सीटों की संख्या की बात करें तो कांग्रेस केवल 55 सीटों तक ही सीमित रही। कांग्रेस की शीर्ष नीति निर्धारक इकाई “कोर वर्किंग कमेटी” (CWC) की बैठक भी ऐसे समय हुई जब पंजाब में कांग्रेस ने अपनी सत्ता ही गंवा कर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में करारी हार का सामना करते हुये उसके अधिकतर उम्मीदवारों की तो जमानत तक जब्त हो गयी।
देश के उत्तर प्रदेश राज्य के प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में जहां महिलाओं एवं युवाओं पर केंद्रित कर सघन अभियानों जैसे क्रियाकलापों से जनता के मध्य जाने के बावजूद पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली।
बार-बार कांग्रेस के नेताओं के पार्टी को पुनः ऊपर उठाने के प्रयासों में सबसे पहले पार्टी के अंदुरी फुट और वैमनस्य के कारण पार्टी के सदस्यों के मध्य आपस मे एकजुटता न बन पाने के कारण पार्टी बहुत जोर लगाने के बावजुद प्रत्येक बार वह वोटरों को अपने पाले खिंचने में नाकामियाब रही है, वैसे हो भी कियूँ नही कियूंकि इस समय पार्टी के शीर्ष के धुरंधर नेताओं ने या तो पार्टी छोड़ कर चले गये या जो हैं भी वे परिवारवाद के प्रभाव में आकर दूर खड़े रह कर देखो और इन्तेजार करो कि नीति पर कायम हैं।