लखनऊ के मोहनलालगंज में हुई एक हृदय विदारक घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। एक किसान सुरेश कुमार यादव का इकलौता बेटा, जो कक्षा छह का छात्र था, ऑनलाइन गेमिंग की लत का शिकार होकर अपनी जान गंवा बैठा। इस घटना ने न केवल एक परिवार को तोड़ा, बल्कि डिजिटल दुनिया के अनियंत्रित खतरे और अभिभावकों की अनदेखी के गंभीर परिणामों को उजागर किया है। यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि समाज के लिए एक चेतावनी है कि हमें अपने बच्चों को डिजिटल अपराधों और गेमिंग की लत से बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे।
ऑनलाइन गेमिंग: मनोरंजन या जाल?
सुरेश के बेटे ने अपने पिता के खाते से 13 लाख रुपये ऑनलाइन गेम में खर्च कर दिए। यह राशि, जो एक किसान परिवार की मेहनत और सपनों का प्रतीक थी, एक डिजिटल गेम के भंवर में गायब हो गई। जब इसकी सच्चाई सामने आई, तो बच्चे ने डर और अपराध बोध में अपनी जान ले ली। यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चों को इस हद तक कैसे ले जा रही है?
गौरतलब है कि 2022 में भारत सरकार ने डाटा प्राइवेसी और सुरक्षा के मद्देनजर फ्री फायर जैसे गेम्स पर प्रतिबंध लगाया था। फिर भी, ये गेम्स लिंक और वैकल्पिक रास्तों के जरिए बच्चों की पहुंच में हैं। यह एक गंभीर सवाल उठाता है: क्या हमारी नीतियां और तकनीकी निगरानी इतनी कमजोर है कि प्रतिबंधित गेम्स खुले तौर पर उपलब्ध हैं?
अभिभावकों की जिम्मेदारी और जागरूकता
यह घटना अभिभावकों के लिए एक जोरदार चेतावनी है। डिजिटल युग में बच्चे स्मार्टफोन और इंटरनेट के संपर्क में जल्दी आ रहे हैं, लेकिन क्या हम उन्हें इसके खतरों से अवगत करा रहे हैं? सुरेश के मामले में, यह स्पष्ट है कि बच्चे को न तो ऑनलाइन गेमिंग के वित्तीय जोखिमों की समझ थी और न ही डिजिटल लेनदेन की गंभीरता का अंदाजा। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के डिजिटल व्यवहार पर नजर रखें, उनके फोन और गेमिंग गतिविधियों की निगरानी करें, और पासवर्ड या बैंक खातों की जानकारी साझा करने से बचें। साथ ही, बच्चों को डिजिटल साक्षरता सिखाना जरूरी है, ताकि वे ऑनलाइन जालसाजी और लत के खतरों को समझ सकें।
सरकार और समाज की भूमिका
सरकार ने फ्री फायर जैसे गेम्स पर प्रतिबंध लगाकर सही दिशा में कदम उठाया था, लेकिन इस घटना से साफ है कि नीतियों का कार्यान्वयन कमजोर है। डिजिटल अपराधों पर रोक लगाने के लिए सख्त निगरानी, गेमिंग प्लेटफॉर्म्स पर नियंत्रण, और अवैध लिंक्स को ब्लॉक करने की जरूरत है। इसके साथ ही, स्कूलों में डिजिटल साक्षरता और साइबर सुरक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
समाज को भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और गेमिंग की लत पर खुलकर बात करनी होगी। गेमिंग कंपनियां भी जिम्मेदारी से नहीं बच सकतीं; उन्हें बच्चों को लक्षित करने वाले आकर्षक ऑफर्स और इन-गेम खरीदारी को सीमित करना होगा।
एक नया संकल्प
यह त्रासदी हमें यह सिखाती है कि तकनीक का उपयोग सावधानी और जिम्मेदारी के साथ होना चाहिए। अभिभावकों, स्कूलों, सरकार और समाज को मिलकर बच्चों को डिजिटल दुनिया के खतरों से बचाने की रणनीति बनानी होगी। बच्चों को गेमिंग की लत से दूर रखने के लिए रचनात्मक गतिविधियों, खेलकूद और पारिवारिक संवाद को बढ़ावा देना होगा। सुरेश के बेटे की कहानी एक दुखद अंत है, लेकिन यह हमें एक नया संकल्प लेने का अवसर देती है: हमारे बच्चों को डिजिटल दलदल में डूबने से बचाएं, ताकि कोई और परिवार ऐसी त्रासदी न झेले।आइए, जागरूक बनें, सतर्क रहें, और अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य दें।