(उच्च न्यायालय के स्टेडिंग काउंसिल भारतेन्दू पाठक को समर्पित कविता)
- उपेन्द्र नाथ राय ‘घुमंतू’
अमवा में लागत ह टिकोरा,
गेहुंआ गदराई गईले हो।
भइया चइत क महिना आइ गईले हो।
लतरी क खेतवा बाटे पियरात,
मसूरी खलिहान में आ गइले हो।
भइया चइत क महिना आइ गईले हो।
खेतवा में मिर्चा हो गईले लाल,
प्याज क किसान बाड़ें खुशहाल।
केतने मरिचवा खेतवे में जोताई गइले हो।
भइया चइत क महिना आइ गईले हो।
मटर क फसलिया भई गइले सस्ता,
किसान क हालत हो गइल खस्ता।
जेतना क बेचाइल मटर बजरिया,
ओहसे ढेर लागी गइल तोड़ाई क मजूरिया।।
आंसू गिरत रहे, पइसा लइका के फीस में ही ओरा गइले हो।
अमवा में लागत ह टिकोरा,
गेहुंआ गदराई गईले हो।
भइया चइत क महिना आइ गईले हो।
पियाजे बंधल बाटे आस,
पइसा क लागल बा पियास।।
यदि पियाज क ना आयल रेट,
त किसान भाई सब होई जाई निराश।
निराश केतनो होखे, लेकिन तिहयोर में सब भूला गईले हो।
अमवा क मउराईल देख, चइत में सबकर चेहरा मुस्काई गईले हो।
अमवा में लागत ह टिकोरा,
गेहुंआ गदराई गईले हो।
भइया चइत क महिना आइ गईले हो।