संस्था विजय बेला एक कदम खुशियों की ओर द्वारा 1858 में अमरगढ़ ताल में हुई क्रान्तिकारी घटना पर आधारित नाटक “कथा अमरगढ़ की” का मंचन कर गुमनाम शहीदों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। संगीत नाटक अकादमी के वाल्मीकि रंगशाला में मंचित इस नाटक का लेखन धर्मेंद्र कुमार मौर्य व निर्देशन चन्द्रभाष सिंह का था। देश को आजादी दिलाने में क्रांतिकारियों ने जान की बाजी लगा दी। 1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद आजादी कि आग ऐसी भड़की कि हर और अंग्रेजी हुकूमत को देश से बाहर फेंकने का जोश हर तबके में दिखाई दिखाई दिया।
कलाकारों ने मंच पर जीवंत अभिनय करके सभी का दिल जीत लिया। नाटक कथा अमरगढ़ की 26 नवंबर 1858 में अमरगढ़ ताल में हुई क्रन्तिकारी घटना पर आधारित है जिसमें 80 भारतीयों ने अपनी शहादत दी थी। अंग्रेजों का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था, वे भारतीयों का धन दौलत लूट रहे ही रहे थे लेकिन अब वह बहन बेटियों की इज्जत से भी खेलने लगे थे। अगर अपने मान सम्मान की रक्षा के लिए कोई खड़ा होता तो उसे देशद्रोही बोल कर उसे फांसी पर चढ़ा देते थे या दिनदहाड़े गोली मार देते थे। चारों तरफ अंग्रेजो का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। नानाराव ने अपने छोटे भाई बाला राव को डुमरियागंज की स्थिति सम्भालने को भेजा।
बलाराव, मो. हुसैन व अन्य ग्रमीणों के साथ मिलकर लोगों को अंग्रेजो की खिलाफत करने के लिए इकट्ठा करने लगे। लोगों को अंग्रेजो के जुल्मों सितम से छुटकारा पाने के लिए अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार करने लगे। बलाराव, 26 नवम्बर 1858 को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल बजाने के लिए राप्ती नदी के तट पर एकत्रित होने के लिए आमंत्रित करने लगे।ये सूचना एक अपने ही गद्दार सरीफ़ अली ने जो अंग्रेजो का गुप्तचर था ,22 अक्टूबर को जाकर अंग्रेज अधिकारी को बता दी। अंग्रेज अफसर सजग हो गया तथा विद्रोह को दबाने के लिये मुंबई आर्मी के कमांडर आर्थर ग्रेफोर्ड अपने सेना के साथ तथा मद्रास के कर्नल अपने सेना के साथ, फिरोजपुर कर्नल कैंडल अपने 200 घुड़सवारों के साथ तथा गोरखपुर एवं बंगाल से भी सैनिक डुमरियागंज के लिए कूच किए।
26 नवम्बर को अंग्रेजो के साथ आज़ादी के दीवानों ने खून की होली खेली और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। दुर्भाग्य का विषय ये है कि आज भी अमरगढ़ सहीद स्थल में आर्थर ग्रेफोर्ड सहित अन्य अंग्रेज सिपाहियों की कब्रे सुरक्षित है पर जो देश के लिए मर मिट गए उनका कोई नामों निशाँ नहीं। अमरगढ़ जैसी बहुत सी ऐसी क्रन्तिकारी घटनाए हुई है जिन्हें इतिहास में कोई जगह नहीं मिली।
मंच पर निहारिका कश्यप, जूही कुमारी, प्रणव श्रीवास्तव, विशाल वर्मा, विशाल श्रीवास्तव, अग्नि सिंह, सौरभ शुक्ला, सुन्दरम मिश्र, आशीष सिंह, अनुराग शुक्ला, कोमल प्रजापति, वरुण राव, हरिओम वर्मा, श्रेयांश यादव, रवि विश्वकर्मा, हर्ष गुप्ता, मो. दिलशाद, ज्ञान साहू, रंजीत सिंह, शशांक मिश्रा, साक्षी अवस्थी, श्रेया गुप्ता,नीलम श्रीवास्तव आदि कलाकरों ने अभिनय किया नाटक में जूही कुमारी का सह निर्देशन तथा प्रकाश परिकल्पना सचिन मिश्रा व मुख सज्जा सचिन गुप्ता का था।