नवेद शिकोह
लखनऊ, 19 मई। चीटी से ज्यादा अहमियत है इंसान की। और इंसान से भी ज्यादा एहमियत है उसके इल्म की। जुमे की नमाज की इबादत की बड़ी एहमियत है। हम ख़ुदा की इस इबादत में ख़ुदा के रसूल (यानी खुदा के अस्तित्व का पैगाम देने वाले पैगम्बर) का कई बार नाम लेते हैं। पैगम्बर-ए-ख़ुदा का पैगाम ये कि अगर खुदा की इबादत के दौरान एक चीटी को भी ज़रा सी भी परेशानी हो गयी तो ख़ुदा इस इबादत को कुबूल नहीं करेगा।
समाजवादी पार्टी की एक महिला नेत्री पंखुरी पाठक ने इस बात पर एतराज़ जता दिया कि वो एक्जाम देने जा रहीं थीं। मस्जिद के बाहर सड़क पर नमाज होने के कारण उन्हें सड़क पर फंसा रहना पड़ा। ऐसे में एक्जाम छूट सकता था। उन्होंने कहा कि ये मेरे मौलिक अधिकारों का हनन है।
ये पढ़कर कुछ मुस्लिम भाइयों में गुस्सा दिखा। पंखुरी की ही पोस्ट पर कुछ भाई लोगों ने उन्हें गंदी-गंदी गालियाँ लिखीं।
हांलाकि इस तरह धर्म से जुड़े किसी भी मामले पर जायज सवाल उठाने वालों को अक्सर ज्यादा गालियाँ पड़ती हैं। उन्हें कम ही गालियाँ दी गयीं। शायद इसलिए कि वो समाजवादी पार्टी से ताल्लुक रखती हैं। पंखुरी भाजपा से होतीं तो जेहन और इल्म से जाहिल मुसलमान उन्हें ज्यादा गालियाँ देते। और यदि पंखुरी पाठक पंखुरी ख़ान होतीं तो शायद उनके इस एतराज पर उन्हें गालियाँ नहीं पड़ती। एतराज़ पर ग़ौर किया जाता। या ये भी हो सकता है कि पंखुरी ख़ान को भी एक दो गालियाँ देकर कोई मुसलमान अपनी इबादत में इज़ाफ़ा कर ही लेता।
जुमा की नमाज एक साथ पढ़ने का उद्देश्य जमा होने से जुड़ा है। यानी इबादत के इस बहाने सप्ताह मे एक बार एक दूसरे से मिल सकें। एक दूसरे की खैरियत जाने। मतलब ये कि इस इबादत से सीधा रिश्ता इख़लाक यानी बेहतर आचरण और व्यवहार से जुड़ा है।
ये भी सच है कि जब सब मुसलमान जमा होकर अपने इलाके की मस्जिद में नमाज अदा करते हैं तो मस्जिद छोटी पड़ जाती है। मजबूरी में सड़क पर नमाज पढ़नी पड़ती है।
सच ये भी है कि मस्जिदों की वक्फ की जमीनों पर अवैध कब्जे हो गये हैं। मस्जिदें तंग हो गयी हैं।
लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की हम सड़क पर नमाज पढ़कर सैकड़ों आम इंसानों को परेशान करें। कोई अस्पताल जा रहा हो.. कोई एक्जाम देने रहा हो.. कोई आफिस जा रहा हो.. और उन सबके नुकसान की वजह नमाज बने।
दुनिया के मुसलमानों में हिन्दुस्तान के मुसलमानों को जितनी धार्मिक आजादी मिली है इस्लामी देशों के मुसलमानों को इतनी धार्मिक आजादी मयस्सर नहीं है।
आपको नमाज के लिए जगह कम पड़ रही है तो उसका कोई इंतजाम करें। वक्फ के अवैध कब्जे खाली करवाइए। मस्जिदों के ऊपर फ्लोर बनाइये।
ये मुमकिन ना हो तो सड़क पर नमाज पढ़ना ही एक रास्ता बचा हो तो अपने धार्मिक अधिकारों के लिए सड़क पर नमाज पड़ने की जिला प्रशासन से अनुमति मांगें। ट्राफिक की कोई व्यकल्पि व्यवस्था बन जाती है तो प्रशासन अनुमति देगा। और तब ही आपको 20-25 मिनट के लिए सड़क पर नमाज पढ़ने का जायज हक मिल जायेगा।
यही बात हिन्दू-सिक्खों और ईसाइयों पर भी लागू होती है। यदि उनका कोई धार्मिक आयोजन सड़क पर चलने वाले आम इंसानों को परेशान करता है तो मैं समझता हूं कि वो भी अपने धर्म के मूल्य उद्देश्य को नहीं समझ पायें होंगे।
अंत में पंखुरी पाठक जी से मेरा अनुरोध है कि आपके जायज एतराज पर अगर किसी कथित मुसलमान ने आपको गालियाँ दी हैं तो आप उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज करें। मेरा दावा है कि आपके इस नेक काम में हर असली मुसलमान आपका साथ देगा। लेकिन आप शायद ऐसा नहीं करें। आपको अपने अधिकारों से ज्यादा प्यारा है समझौतावादी राजनीतिक कैरियर। मैंने ये बात इसलिए कही क्योंकि पार्टी के दबाव में आपने सड़क पर नमाज पर आपत्ति जताने वाली अपनी पोस्ट हटा ली है।