एक भी सीट नहीं जीत पाई बसपा, सपा ने सिद्ध किया वही है दूसरे नम्बर की पार्टी
उपेन्द्र नाथ राय
लखनऊ, 24 अक्टूबर 2019: लोकसभा चुनाव के बाद सपा को झटकने वाली मायावती के लिए उप चुनाव में तगड़ा झटका लगा है। इस चुनाव में जनता ने बता दिया है कि प्रदेश में नम्बर दो की पार्टी बसपा नहीं सपा है। इसके साथ ही पहली बार किसी उप चुनाव में भाग्य आजमा रही बसपा के लिए यह चुनाव शुभ संकेत नहीं दिया। इससे उबरना शायद बसपा के लिए आने वाले चुनाव में संभव नहीं होगा। इस चुनाव में भाजपा को एक सीट का नुकसान हुआ है। वहीं एक सीट बसपा ने भी गवां दिया है।
उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले विधानसभा चुनाव परिणामों में भाजपा व सहयोगी अपना दल आठ सीटों पर कब्जा जमाया , वहीं सपा तीन सीट लेकर दूसरे नम्बर की पार्टी रही, जबकि बसपा और कांग्रेस के खाते भी नहीं खुले। बसपा एक मात्र सीट जलालपुर पर आगे चल रही थी लेकिन अंत में सपा ने उसे भी झटक लिया। इस चुनाव परिणाम में भले ही पूरे विपक्ष के लिए एक सबक रहा लेकिन सपाइयों में इस बात की खुशी रही कि लोकसभा चुनाव बाद झटका देने वाली मायावती को जनता ने तगड़ा ढंग से झटक दिया है। इस परिणाम से बसपाइयों में दोपहर बाद से ही चेहरे पर मायूसी आ गयी। वहीं सपा अब इस बात को लेकर खुश है कि आने वाले चुनाव में वही मुख्य विपक्षी पार्टी रहेगी।
मायावती करती रहीं हमला, लेकिन अखिलेश रहे मौन:
सबको याद होगा कि लोकसभा चुनाव के बाद जब आजमगढ़ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव रैली कर रहे थे, उसी समय बसपा प्रमुख मायावती ने प्रेसवार्ता कर सपा से गठबंधन तोड़ने की घोषणा करते हुए विधानसभा उप चुनाव में चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। उस समय मायावती ने कहा था कि अखिलेश नि:संदेह अच्छे हैं लेकिन वे राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं हैं। सपा के कार्यकर्ताओं को अभी बसपा से सीख लेने की जरूरत है। सपा अपने कैडर वोट भी बसपा को ट्रांसफर नहीं कर पाई, जिससे लोकसभा चुनाव में हार हुई। यदि मैं मुलायम सिंह यादव के लोकसभा चुनाव प्रचार में नहीं गयी होती तो वे भी चुनाव हार जाते। आगे उन्होंने कहा था कि जब अखिलेश यादव अपने कैडर को बसपा की तरह मजबूत कर लेंगे तो बसपा समझौते पर विचार कर सकती है।
एक बिरादरी तक समेटना चाहती थी मायावती, लेकिन जनता ने उन्हीं को समेट दिया:
मायावती की प्रेसवार्ता के बाद अखिलेश यादव ने पत्रकारों द्वारा जवाब पूछने पर भी कोई उत्तर नहीं दिया था। इसके एक सप्ताह बाद ही मायावती ने दूसरी प्रेसवार्ता कर यह कहा था कि अखिलेश यादव ने ही फोन कर हमें मुसलमानों को टिकट कम देने के लिए कहा था। इस पर भी अखिलेश यादव ने कोई जवाब नहीं दिया था। इन दोनों वक्तव्यों का मकसद एक था कि सपा को सिर्फ एक खास बिरादरी तक सिमित कर दिया जाय। मुसलमानों को बसपा की तरफ सिफ्ट कर लिया जाय लेकिन इस विधानसभा के उप चुनाव ने उल्टा कर दिया। इसने संदेश दे दिया कि मायावती को ही जनता ने सिमटा दिया, जबकि सपा को हंसने-खेलने के लिए छोड़ दिया।
उप चुनाव में बसपा से 10 प्रतिशत से भी ज्यादा मत सपा मिला सपा को:
इस उप चुनाव में अब तक के परिणामों पर नजर दौड़ाएं तो भाजपा जहां 35.64 प्रतिशत मत पाकर विपक्ष से काफी आगे रही, वहीं सपा 22.61 प्रतिशत वोट पाकर यह दिखा दिया कि पीछे की दौड़ में वहीं दूसरे नम्बर की पार्टी है। यही नहीं तीन सीटों पर जीत दर्ज किया, वहीं बसपा 17.02 प्रतिशत पर सिमट गयी है। उसे एक भी सीट हासिल नहीं हुई। वहीं कांग्रेस भी बढ़त हासिल करते हुए 11.49 प्रतिशत मत पायी। कई चुनावों में 10 प्रतिशत से नीचे ही रहने वाली कांग्रेस के लिए यह खुद में खुश होने के लिए काफी है।
मात्र एक सीट पर दूसरे नम्बर पर बसपा, जबकि सपा ने सात सीटों पर पीछे से लगाई दौड़:
यदि विधानसभावार पहले, दूसरे नम्बर के उम्मीदवारों की बात करें तो बसपा विधानसभा जलालपुर और इगलास से दूसरे नम्बर पर है। वहीं सपा ने तीन सीटों जैदपुर, जलालपुर व रामपुर में जीत हासिल करते हुए छह सीटों पर दूसरे नम्बर पर है। सपा ने घोषी, बहराइच के बलहा, गंगोह, प्रतापगढ़, लखनऊ कैंट, चित्रकूट के मानिकपुर से दूसरे नम्बर पर है। वहीं कानपुर के गोविंदनगर में कांग्रेस के करिश्मा की ठाकुर 32.43 प्रतिशत वोट लेकर दूसरे नम्बर पर हैं।
भाजपा रही एक सीट के नुकसान में:
जिन 11 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए, उनमें 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के पास नौ सीटें थीं, जबकि एक सीट बसपा के जिम्मे और एक सीट पर सपा ने जीत हासिल की थी। इस लिहाज से भाजपा और बसपा को एक-एक सीट का नुकसान हुआ है, जबकि सपा सीटों के फायदे में रही है।