बहुत समय पहले की बात है एक पर्वत प्रदेश में मंदविष नाम का एक बड़ा सा सांप रहता था। एक दिन वह विचार करने लगा कि ऐसा क्या उपाय हो सकता है जिसे बिना परिश्रम किए ही उसकी आजीविका चलती रहे। उसने बहुत सोचा और उसके मन में एक विचार आया। वह पास के मेंढकों से भरे तालाब के पास चला गया।
वहां पहुंचकर वह बड़ी बेचैनी से इधर-उधर घूमने लगा। उसे इस तरह घूमते देखकर तालाब के किनारे एक पत्थर पर बैठे मेंढक को आश्चर्य हुआ तो उससे पूछा- ‘आज क्या बात है मामा शाम हो गई पर तुम भोजन पानी की व्यवस्था नहीं कर रहे हो। सांप बड़े दुखी मन से कहने लगा, क्या करूं बेटा अब मैं बूढ़ा हो चला हूं। मुझे तो अब भोजन की अभिलाषा ही नहीं रह गई है। आज सवेरे ही मैंने भोजन की खोज में निकल पड़ा था। एक सरोवर के तट पर मैंने एक मेंढक को देखा तो मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की सोच ही रहा था कि उसने मुझे देख लिया। पास ही कुछ ब्राह्मण तपस्या में लीन थे। वह उनके बीच जाकर कहीं छिप गया। उसको तो मैंने फिर देखा नहीं पर उसके भ्रम में मैंने ब्राह्मण के पुत्र को काट लिया। जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी।
उसके पिता को इतना बड़ा दुख हुआ और वह शोकाकुल में मुझे श्राप देते हुए बोला ‘दुष्ट सांप, तुमने मेरे पुत्र को बिना किसी अपराध के काटा है। अपने इस अपराध के कारण तुमको मेंढकों का वाहन बनना पड़ेगा। अब मैं बस अपने पाप का प्रायश्चित करना चाहता हूं और तुम लोगों के वाहन बनने के उद्देश्य से ही मैं यहां तुम लोगों के पास आया हूं।
मेंढक सांप की यह बात सुनकर अपने परिजनों के पास गया और उसने वह पूरी बात परिजनों को बता दी। इस तरह से यह बात सब तक पहुंच गयी।
उसके राजा जलपाद को भी इसकी खबर लगी। उसको यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। सबसे पहले वही सांप के पास जाकर उस के फन पर चढ़कर बैठ गया। उसे चढ़ा हुआ देखकर सभी मेंढक सांप की पीठ पर लद गए। सांप ने किसी को कुछ नहीं कहा। मंदविष ने उन्हें तरह-तरह के करतब दिखाए।
सांप की कोमल त्वचा के स्पर्श से जलपाद बहुत ही प्रसन्न हुआ। इस प्रकार एक दिन बीत गया। दूसरे दिन जब वह उनको बैठाकर चला तो उससे चला नहीं गया। उसको देखकर जलपाद मेंढक ने पूछा ‘क्या बात है आज आप चल नहीं पा रहे हैं।
मंदविष बोला हां मैं आज भूखा हूं और इस उम्र में कमजोरी भी बहुत हो जाती है। इसलिए चलने में कठिनाई हो रही है। बोला अगर यह बात है तो आप परेशान ना हो। आप आराम से साधारण कोटि के छोटे छोटे मेंढकों को खा लिया कीजिए और अपनी भूख मिटा लिया कीजिए।
इस प्रकार वह सांप हर रोज बिना किसी परिश्रम के अपना भोजन करने लगा। किंतु जलपाद यह भी नहीं समझ पाया कि अपने क्षणिक सुख के लिए वह अपने वंश का नाश करने का भागी बन रहा है। धीरे-धीरे सांप ने अपनी चालाकी से सारे मेंढकों को खा लिया और उसके बाद एक दिन मंदविष ने जलपाद को भी खा गया। इस तरह मेंढकों का सारा वंश नष्ट हो गया।
इसीलिए कहा जाता है कि अपने हितैषियों की रक्षा करने से हमारी रक्षा होती है।
- नीतू सिंह
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