डॉ दिलीप अग्निहोत्री
नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के दिग्गज और समर्पित नेताओं में शुमार रहे हैं। लेकिन अंतिम समय में उनके प्रति जो उपेक्षा दिखाई गई उसने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव की याद ताजा कर दी। यह तो उचित रहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगे बढ़कर दिवंगत नेता को पूर्ण सम्मान दिया। यह राजकीय सम्मान से भी कहीं ज्यादा था, क्योकि इसमें योगी आदित्यनाथ स्वयं भावनात्मक रूप से सक्रिय थे।
उन्होंने दिल्ली से उनके पार्थिव शरीर को लखनऊ लाने, इसके बाद उत्तरंखण्ड ले जाने का सम्मानजनक इंतजाम किया। इसकी मंत्री स्तरीय जिम्मेदारी निर्धारित की। विधानभवन में व्यवस्था संभालने के लिए स्वयं आगे आ गए। यह पहला अवसर था जब किसी दिवंगत नेता को विधानभवन में इस प्रकार सम्मान अर्पित किया गया।
नारायणदत्त तिवारी ने अपना राजनीतिक सफर सोशलिस्ट पार्टी से शुरू किया था। पहली बार इसी पार्टी से विधायक बने। लेकिन कुछ समय बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। सुख दुख सभी मे कांग्रेस के साथ रहे। उत्तर प्रदेश में मंत्री, तीन बार मुख्यमंत्री,केंद्र में कैबिनेट मंत्री ,आंध्र प्रदेश में राज्यपाल रहे। इस हिसाब से भी वह सम्मान के हकदार थे। एक पार्टी में रहते हुए भी मतभेद होते है, कुछ कार्यो को लेकर नाराजगी होती है, लेकिन मृत्यु के बाद इन सबको भुला दिया जाता है।
इतिहास खुद किसी का मूल्यांकन करता है। उदार चिंतन न होने से इस प्रकार का आचरण किया जाता है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस का यह बयान मान भी लें कि उनके पार्थिव शरीर को पार्टी मुख्यालय में रखने की अपील की गई थी, लेकिन उनके पुत्र रोहित ने इसे नहीं स्वीकार नहीं किया। इसके साथ रोहित की यह बात भी माननी पड़ेगी की आंध्र के राज्यपाल पद से हटने के बाद कांग्रेस ने उनकी कभी सुध नहीं ली थी। कुछ भी हो योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस की कमी को बहुत पीछे छोड़ दिया।