डॉ दिलीप अग्निहोत्री


अमेरिका और भारत के विदेश व रक्षा मन्ततियो की टू प्लस टू वार्ता ऐतिहासिक ही नहीं उपयोगी भी साबित हुई। अमेरिका ने इसकी सफलता के लिए पहले से उपयुक्त माहौल बनाया था। इसका मतलब है कि वह भारत से संबन्ध मजबूत बनाने को विशेष महत्व दे रहा है। इसके दो प्रमुख कारण भी है। पहला यह कि अमेरिका अब अफगानिस्तान में पाकिस्तान की नकारात्मक भूमिका पर नियंत्रण लगाना चाहता है। दूसरा यह कि अमेरिका को यह आशंका है कि पाकिस्तान ,चीन और रूस आपस मे गठबन्धन न बना लें। अमेरिका इस स्थिति के मुकाबले की तैयारी में है।
इस वार्ता में अमेरिका व भारत के रक्षा व विदेश मंत्री शामिल थे।इसके पहले अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की रक्षा सहायता पर रोक लगा दी थी। अमेरिका का कहना था कि पाकिस्तान में आतंकी संघठनों को पनाह मिली हुई है। इस पर रोक लगाने का वह कोई कारगर प्रयास नहीं कर रहा है। अमेरिका के एजेंडे में भारत के रूस और ईरान से होने वाले समझौते भी शामिल थे। लेकिन अमेरिका ने यह पहले साफ कर दिया था कि यह सब संबंधो में बाधक नहीं बनेंगे। वैसे भी किसी अन्य देश से संबंधों पर ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए। रूस और ईरान से अमेरिका के संबन्ध अलग हो सकते है। लेकिन इस आधार पर भारत या किसी अन्य देश से अपेक्षा करना उचित नहीं होगा। भारत की अपनी भी जरूरतें है। उसे तेल व गैस ईरान से लेनी होती है। सामरिक तैयारी के लिए रूस से मिसाइल खरीदनी है। अमेरिका यदि भारत का हित चाहता है तो इस मुद्दे को नजरअंदाज करना होगा।


बताया गया कि दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने पर सहमति बनी है। अमेरिका भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की साझेदारी को बहुत महत्व देता है और यह विषय प्रमुखता के साथ वार्ता में रहा। भारत और अमेरिका ने आज बेहद महत्वपूर्ण संप्रेक्षण समझौते पर हस्ताक्षर किए। अमेरिका परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह अर्थात एनएसजी में भारत की सदस्यता के लिए प्रयास करेगा। दोनों पक्ष कुछ रक्षा समझौतों को अंतिम रूप देने पर भी सहमत है। अमेरिका भारत के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाने का प्रयास कर रहा है जिसे क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य प्रभुत्व के संतुलन के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।
अमेरिका हिन्द महासागर , दक्षिण चीन सागर में चीन के गैरकानूनी विस्तार से चिंतित है। भारत भी इसका विरोध कर चुका है। अमेरिका ने कहा कि समुद्री क्षेत्र की आजादी सुनिश्चित होनी चाहिए और समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करना चाहिए।
भारत ने अमेरिका को सुरक्षा और अपने ईंधन संकट के बारे में जानकारी दी। आतंकवाद, रक्षा सहयोग और व्यापार, पाकिस्तान एच-वन बी वीजा की प्रक्रिया में बदलाव, संचार-सुरक्षा समझौते अर्थात सीओएमसीएएसए पर उपयोगी वार्ता हुई। इससे भारतीय सेना को उच्च अमेरिकी सैन्य तकनीक हासिल करने में आसानी होगी। रूस से भारत ने रक्षा के लिए अहम एस फोर हंड्रेड ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम के लिए चालीस हज़ार करोड़ की डील की है, लेकिन रूस से हथियार ख़रीद पर अमेरिकी प्रतिबंध है। वार्ता से इसका भी समाधान होगा। यह उत्साहजनक है कि अमेरिका ने अपने विदेश मंत्री माइकल पॉमपेओ और रक्षा मंत्री जिम मैटिस को टू प्लस टू वार्ता हेतु नई दिल्ली भेजा। उंसकी इस स्तर की वार्ता केवल आस्ट्रेलिया और जापान के निर्धारित है। भारत ऐसा तीसरा देश है।
इसी क्रम में कुछ दिन पहले अमेरिका ने अपने नब्बे प्रतिशत रक्षा उपकरण भारत को बिना लाइसेंस देने की घोषणा की थी। अमेरिका ने भारत की व्यवहारिक कठिनाई पर ध्यान दिया। पच्चीस प्रतिशत कच्चा तेल ईरान से आयात होता है। रूस से मिसाइल समझौता भी भारत की जरूरत है। अमेरिका ने इसे समझा है। यही कारण है कि इस महत्वपूर्ण वार्ता के सकारात्मक परिणाम हुए है।
Yay google is my queen helped me to find this great internet site!