खड़ी दुपहरी थी। मंत्री जी दौरे पर थे।
सेक्रेटरी से पूंछा: किसान कहीं दिखता है क्या?
“वो रहा … पगडंडी पर जा रहा है” सेक्रेटरी ने बताया।
मंत्री जी बड़ी मुश्किल से जब तक कार से निकलते, पसीने से तर-बतर किसान मंत्री के सामने खड़ा था।
मंत्री किसान से- भाई ये क्या बला है?
हल (जुताई वाला) है हुजूर।
किसका?
मेरा हुजूर।
मतलब तुम समस्या हो? मंत्री मन में बुदबुदाया। फिर कार में आकर घुस गए!
सेक्रेटरी – क्या सोचा सर?
मंत्री देखों कितनी बड़ी समस्या है? इसे न धूप लगती है न ठंड। रूखी-सूखी रोटी खाकर जिन्दा रहता है। बिलकुल प्रेत लगता है। इसे जड़ से खत्म करना पड़ेगा। किसान मरेगा तो उससे हल मिल जायेगा।
इस तरह मंत्री का दौरा समाप्त हो गया।
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