डॉ. जगदीश गांधी
संसार को ‘परिवार बसाने’ एवं ‘पारिवारिक एकता’ का संदेश देने वाले महान संत वैलेन्टाइन के ‘मृत्यु दिवस’ को आज भारतीय समाज में जिस ‘आधुनिक स्वरूप’ में स्वागत किया जा रहा है, उससे हमारी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता प्रभावित हो रही है। संत वैलेन्टाइन ने तो युवा सैनिकों को विवाह करके परिवार बसाने एवं पारिवारिक एकता की प्रेरणा दी थी। इस कारण अविवाहित युवा पीढ़ी का अपने प्रेम का इजहार करने का ‘वैलेन्टाइन डे’ से कोई लेना-देना ही नहीं है। आज वैलेन्टाइन डे के नाम पर समाज पर बढ़ती हुई अनैतिकता ने हमारे समक्ष काफी असमंज्स्य तथा सामाजिक पतन की स्थिति पैदा कर रखी है। वैलेन्टाइन दिवस के बारे में ‘ऑलिया ऑफ जैकोबस’ की किताब में जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि यह दिन रोम के पादरी संत वैलेन्टाइन को समर्पित है।
विवाह के बन्धन को ‘वैलेन्टाइन दिवस’ पूरी तरह से मान्यता देता है:
वैलेन्टाइन डे को मनाने के पीछे की जो कहानी प्रचलित है उसके अनुसार ईसा के जन्म के 269 वर्ष बाद तत्कालीन रोमन शासक क्लाडियस (द्वितीय) किसी भी तरह अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए वह संसार की सबसे ताकतवर सेना को बनाने के लिए जी-जान से जुटा था। राजा के मन में स्वार्थपूर्ण विचार आया कि विवाहित व्यक्ति अच्छे सैनिक नहीं बन सकते हैं। राजा को लगता था कि प्यार और शादी से पुरूषों की बुद्धि और शक्ति दोनों का नाश होता है। इस स्वार्थपूर्ण विचार के आधार पर राजा ने तुरन्त राजाज्ञा जारी करके अपने राज्य के सैनिकों के शादी करने पर पाबंदी लगा दी। राजा का सख्त आदेश था कि यदि कोई सैनिक राजाज्ञा के विरूद्ध शादी करेगा तो उसे मृत्यु दण्ड दिया जायगा और उसका सर धड़ से कलम कर दिया जायेगा।
संत वैलेन्टाइन ने स्वीकार किया था मृत्यु दण्ड:
रोम के एक चर्च के पादरी महान संत वैलेन्टाइन को सैनिकों के शादी करने पर पाबंदी लगाने संबंधी राजा का यह कानून ईश्वरीय इच्छा के विरूद्ध प्रतीत हुआ। कुछ समय बाद उन्होंने महसूस किया कि युवा सैनिक विवाह के अभाव में अपनी शारीरिक इच्छा की पूर्ति गलत ढंग से कर रहे हैं। सैनिकों को गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिए पादरी वैलेन्टाइन ने रात्रि में चर्च खोलकर सैनिकों को विवाह करने के लिए प्रेरित किया। सम्राट को जब यह पता चला तो उसने पादरी वैलेन्टाइन को गिरफ्तार कर माफी मांगने के लिए कहा अन्यथा राजाज्ञा का उल्लघंन करने के लिए मृत्यु दण्ड देने की धमकी दी। सम्राट की धमकी के आगे संत वैलेन्टाइन नहीं झुके और उन्होंने प्रभु निर्मित समाज को बचाने के लिए मृत्यु दण्ड को स्वीकार कर लिया।
पारिवारिक एकता का संदेश दिया था संत वैलेन्टाइन ने:
संत वैलेन्टाइन की मृत्यु के बाद लोगों ने उनके त्याग एवं बलिदान को महसूस करते हुए प्रतिवर्ष 14 फरवरी को उनके ‘शहीद दिवस’ पर उनकी दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थनायें आयोजित करना प्रारम्भ कर दिया। इसलिए ऐसे महान संत के ‘शहीद दिवस’ पर खुशियां मनाकर उनकी भावनाओं का निरादर करना सही नहीं है। वास्तव में वैलेन्टाइन दिवस का वर्तमान स्वरूप भारतीय संस्कृति, जिसे विश्व में सर्वश्रेष्ठ सभ्यता का प्रतीक माना जाता है, के विपरीत है। वास्तव में ‘वैलेन्टाइन डे’ विवाह के पवित्र बन्धन को पूरी तरह से स्वीकारता एवं मान्यता देता है जबकि आज महान संत वैलेन्टाइन की मूल, पवित्र एवं शुद्ध भावना को भुला दिए जाने के कारण यह महान दिवस मात्र युवक-युवतियों के बीच रोमांस के विकृत स्वरूप में देखने को मिल रहा है।
भावी पीढ़ी के प्रति अपराध:
‘वैलेन्टाइन डे’ मनाने को तेजी से प्रोत्साहित करने के पीछे ‘वैलेन्टाइन डे’ कार्डो एवं महंगे उपहारों की ब्रिकी के लिए एक बड़ा बाजार विकसित करना एवं मंहगे होटलों में डिनर के आयोजनों की प्रवृत्तियों को बढ़ाकर अनैतिक ढंग से अधिक से अधिक लाभ कमाने वाली शक्तियां इसके पीछे सक्रिय हैं। विज्ञापन के आज के युग में वैलेन्टाइन बाजार को भुनाने का अच्छा साधन माना जाता है। मल्टीनेशनल कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए अपना बाजार बढ़ाना चाहती हैं और इसके लिए उन्हें युवाओं से बेहतर ग्राहक कहीं नहीं मिल सकता। इसलिए ‘वैलेन्टाइन डे’ के आधुनिक स्वरूप का भारतीय समाज एवं छात्रों में किसी प्रकार का स्वागत नहीं होना चाहिए क्योंकि यह मात्र सस्ती प्रेम भावनाओं को प्रदर्शित करने की छूट कम उम्र में छात्रों को देकर उनकी अनैतिक वृत्ति को बढ़ावा देता है।
ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित करें:
हम संत वैलेन्टाइन के इन विचारों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं कि विवाह के बिना किसी स्त्री-पुरूष में अनैतिक संबंध होने से समाज में नैतिक मूल्यों में गिरावट आ जाएगी और समाज ही भ्रष्ट हो जाएगा। हम सभी जानते हैं कि किसी भी बच्चे के लिए उसका परिवार, स्कूल तथा समाज ये तीन ऐसी पाठशालायें हैं जिनसे ही बालक अपने सम्पूर्ण जीवन को जीने की कला सीखता है। इसलिए एक स्वच्छ व स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए हमारा कर्तव्य है कि हम पूरे विश्व के बच्चों तक संत वैलेन्टाइन के सही विचारों को पहुँचायें जिससे प्रत्येक बालक के हृदय में ईश्वर के प्रति, अपने माता-पिता के प्रति, भाई-बहनों के प्रति और समाज के प्रति भी पवित्र प्रेम की भावना बनी रहे।
पारिवारिक एकता दिवस’ के रूप में प्रतिज्ञा लें:
आइये, वैलेन्टाइन डे पर हम सभी लोग यह प्रतिज्ञा ले कि हम अपने मस्तिष्क से भेदभाव हटाकर सारी मानवजाति से प्रेम करेंगे व समानता की भावना पैदा करेंगे। भारत की संस्कृति व सभ्यता ही आज की जरूरत है। प्रेम तो ईश्वर से होना चाहिए क्योंकि यही जीवन का शाश्वत सत्य है। अगर ईश्वर से हमारा तार कट गया तो कोई अन्य प्रेम हमें नहीं बचा पाएगा। इसलिए हमें वैलेन्टाइन डे पर भाई-बहन का प्रेम, दादा-दादी का प्रेम, नाना-नानी का प्रेम, माता-पिता का प्रेम, गुरूजनों का प्रेम भी शामिल करना चाहिए तभी हम इस त्योहार का सही मूल्यांकन कर सकेंगे। संत वैलेन्टाइन के प्रति सच्ची श्रद्धा यही होगी कि हम 14 फरवरी ‘वैलेन्टाइन डे’ को पवित्र भावना से ‘पारिवारिक एकता दिवस’ के रूप में मनायें और संसार के सभी बच्चों, शिक्षकों एवं अभिभावकों को यह संदेश दें कि सभी लोग एक-दूसरे से समान रूप से प्रेम करें, आदर करें, तभी पारिवारिक एकता के द्वारा शैतानी सभ्यता के स्थान पर सारे विश्व में आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना हो सकेगी।