केम-13 के लिए शुरु हुई तैयारियां
नई दिल्ली / लखनऊ, 8 अप्रैल, 2022: देश की राजधानी दिल्ली में क्लीन इनर्जी मिनिस्टीरियल (केम) इंडस्ट्री और इंडस्ट्री डीप डिकार्बनाइजेशन इनीसिएटिव (आईडीडीआई) द्वारा 4 से 8 अप्रैल 2022 के बीच एक बैठक का आयोजन हो रहा है। यह बैठक सितंबर में अमेरिका के पीट्सबर्ग में आयोजित होने जा रही केम-13 के लिए तैयारी बैठक है। केम-13 में भारत सरकार उद्योग जगत में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं की घोषणा करने जा रही है। पीट्सबर्ग में भारत सरकार केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा सरकारी खरीद में हरित नीति बनाने तथा उसे लागू करने के बारे में अपनी योजनाओं का खुलासा करेगी। इससे बड़े औद्योगिक समूहों द्वारा कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने में मदद मिलेगी।
संसारभर में जितना कार्बन उत्सर्जन होता है उसका दो तिहाई हिस्सा उर्जा क्षेत्र से आता है। इसके अलावा कार्बन उत्सर्जन में भारी उद्योगों द्वारा एक चौथाई से पांचवा हिस्सा होता है। जलवायु परिवर्तन के भीषण प्रकोप से बचने के लिए जरूरी है कि वैज्ञानिकों द्वारा सुझाये गये 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त किया जाए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जरूरी है उद्योग सहित सभी क्षेत्रों में सूक्ष्मता से कार्बन उत्सर्जन को समाप्त किया जाए।
यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब जलवायु परिवर्तन पर गठित सरकारी समिति (आईपीसीसी) की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने का समय है। आईपीसीसी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए उद्योग जगत को तेजी से कदम उठाने होंगे। अगर हमें ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेन्टीग्रेट से नीचे रखना है तो स्टील इंडस्ट्री में तीव्रता से कार्बन उत्सर्जन को कम करना होगा। इस समय संसारभर में सालाना 2 अरब मिट्रिक टन स्टील का उत्पादन हो रहा है। दुनिया के कार्बन उत्सर्जन में अकेले स्टील उद्योग का हिस्सा 7 प्रतिशत के आसपास है। 2020 के मानक पर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेन्टीग्रेट तक सीमित रखने के लिए जरूरी है कि स्टील उद्योग में साल 2030 तक 50 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन को कम किया जाए तभी साल 2050 तक स्टील उद्योग में 95 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य हासिल हो सकेगा।
हालांकि वर्तमान में किये जा रहे अध्ययन बताते हैं कि 2050 तक स्टील उद्योग सालाना 250 अरब मिट्रिक टन तक पहुंच जाएगा। स्टील उद्योग का ये विकास मुख्यत: विकासशील देशों में होगा। ऐसे में भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह भी जरूरी होगा कि वो विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन कायम करते हुए आगे बढें। भारत जैसे विकासशील देशों को जहां एक ओर कार्बन उत्सर्जन को भी कम करना है वही अपनी विकास परक जरूरतों से भी समझौता नहीं करना है।