15 को हिंदी संस्थान में पुरस्कृत लेखक और अन्य रचनाकार रखेंगे विचार, देश भर के बाल रचनाकारों को मिले साहित्य अकादेमी दिल्ली के पुरस्कार
लखनऊ, 14 नवंबर: बाल साहित्य रचने के लिए रचनाकारों को बाल मनोविज्ञान और भाषा विज्ञान को आत्मसात करना चाहिए। आज कार्यशालाओं और अन्य प्रयासों से बच्चों के साहित्य को पठनीय, श्रव्य और दृश्यव्य बनाने की जरूरत है।
ये विचार साहित्य अकादेमी दिल्ली के भागीदारी भवन गोमती नगर में आयोजित इस वर्ष के बाल साहित्य पुरस्कार अर्पण समारोह में मुख्य अतिथि प्रो.सूर्यप्रसाद दीक्षित ने रखे।
दो दिवसीय आयोजन के पहले दिन आज मुख्य अतिथि प्रो.दीक्षित ने विष्णु शर्मा के पंचतंत्र से लेकर द्विवेदी साहित्य युग, 18वीं सदी में लखनऊ में मुंशी नवल किशोर के बाल साहित्य प्रयासों और अवध क्षेत्र के बाल साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि प्रौढ़ जब बच्चे होकर लिखेंगे तभी सार्थक बाल उपजेगा। पराग, नंदन, गुड़िया, चंदामामा जैसी बाल पत्रिकाओं का नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों को रोमांचक खेल, साहसिक यात्राओं, महापुरुषों की जीवनी और प्रेरक प्रसंग आकर्षित करते हैं।
बाल साहित्य समारोह की अध्यक्षता कर रहे अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने बाल साहित्य रचना सबसे बड़ा मिशनरी कार्य बताते हुए कहा कि जो भी लिखने वाला अपनी कलम शुद्ध करना चाहता है, उसे बाल साहित्य ज़रूर रचना चाहिए। एक ऐसा समय था जब बाल साहित्य लिखना बचकाना माना जाता था और हिंदी सहित दक्षिण भारतीय भाषाओं में भी बड़े रचनाकारों ने बाल साहित्य रचना छोड़ दिया था। खुशी है कि अब देश के अधिकांश राज्यों में बच्चों की अलग अकादमियां, पुरस्कार और योजनाएं चलाई जा रही हैं। प्रेरक बाल साहित्य लिखने को कठिन कार्य बताते हुए उन्होंने कहा कि अगर आतंकवादियों को बचपन में अच्छा साहित्य पढ़ने को मिलता तो वह आतंक नहीं इंसानियत अपनाते। वर्ष 2010 में प्रारम्भ किये बाल साहित्य पुरस्कारों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यूरोप में बाल साहित्य और साहित्यकारों का यहां की अपेक्षा बहुत ज्यादा सम्मान है।
पुरस्कार 2024 प्राप्त करने वाले लेखक रंजु हाजरिका- असमिया, दीपान्विता राय- बांग्ला, भार्जिन जेक’भा मोसाहारी- बोडो, बिशन सिंह दर्दी- डोगरी, गिरा पिनाकिन भट्ट- गुजराती, कृष्णमूर्ति बिलिगेरे- कन्नड़, मुजफ्फर हुसैन दिलबर- कश्मीरी, हर्षा सद्गुरु शेटये- कोंकणी, नारायणजी- मैथिली, उन्नी अम्मायंबलम्- मलयालम्, क्षेत्रिमयुम सुवदनी- मणिपुरी, भारत सासणे- मराठी, वसंत थापा- नेपाली, मानस रंजन सामल- ओड़िआ, कुलदीप सिंह दीप- पंजाबी, प्रहलाद सिंह झोरड़ा- राजस्थानी, हर्षदेव माधव- संस्कृत, दुगाई टुडु- संथाली, युमा वासुकि- तमिल और पामिदिमुक्कला चंद्रशेखर आजाद- तेलुगु को ताम्रफलक और 50 हजार रुपये की राशि देकर पुरस्कृत किया गया। समारोह में अंग्रेजी पुरस्कार विजेता नन्दिनीसेन गुप्ता- अंग्रेजी का पुरस्कार उनके प्रतिनिधि ने ग्रहण किया, जबकि देवेन्द्र कुमार- हिन्दी, शम्सुल इस्लाम फारुकी- उर्दू और अंग्रेजी पुरस्कार विजेता नन्दिनी सेन गुप्ता- अंग्रेजी का पुरस्कार उनके प्रतिनिधि ने ग्रहण किया, जबकि देवेन्द्र कुमार- हिन्दी, शम्सुर्रहमान फारुकी- उर्दू और लाल होतचंदानी सिंधी खराब स्वास्थ्य की वजह से नहीं आ पाये। सभी का आभार व्यक्त करते हुए केन्द्रीय साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने बच्चों को अपने समाज का दर्पण बताया।
अमृतलाल नागर की किस्सागोई और आज के बच्चों की रचनात्मक और तार्किक क्षमता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बाल साहित्य रचने के कल्पना की अलग उड़ान चाहिए। इससे पहले स्वागत करते हुए सचिव के श्रीनिवास राव ने कहा कि 70 सालों का साहित्यिक गतिविधियों के इतिहास में पहली बार तहजीब के गढ़ लखनऊ में बाल साहित्य पुरस्कार दिये जा रहे हैं। बाल साहित्य बच्चों को मनोवैज्ञानिक रूप से बच्चों को मजबूत करता है। साथ ही उन्हें कई तरह की पीड़ाओं से निकालता है। उम्मीद है पुरस्कृत रचनाकारों का साहित्य ज्ञान के नवाचार का प्रसार बच्चों में करेगा। इस अवसर पर प्रबुद्ध साहित्य प्रेमियों के संग डा. अमिता दुबे, दयानंद पांडेय, चन्द्रशेखर वर्मा, जाकिर अली रजनीश जैसे साहित्यकारों के संग संस्कृति कर्मी प्रतुल जोशी व अशोक बनर्जी आदि भी मौजूद थे।
आयोजन के दूसरे दिन कल 15 नवंबर को सुबह 10 बजे से निराला सभागार हिन्दी संस्थान में पुरस्कृत बाल साहित्यकारों के साथ ‘लेखक सम्मिलन’ होगा। सम्मिलन में पुरस्कार विजेता अपने वक्तव्य तथा रचनात्मक लेखन के अनुभव कुमुद शर्मा की अध्यक्षता में साझा करेंगे। दोपहर बाद ढाई बजे दूसरे सत्र में ‘बाल लेखन: अतीत, वर्तमान और भविष्य’ विषयक संगोष्ठी होगी। गोष्ठी में विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्यकार विचार व्यक्त करेंगे।